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श्लोक 9.2.7  |
व्याघ्रोऽपि वृक्णश्रवणो निस्त्रिंशाग्राहतस्तत: ।
निश्चक्राम भृशं भीतो रक्तं पथि समुत्सृजन् ॥ ७ ॥ |
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शब्दार्थ |
व्याघ्र:—बाघ; अपि—भी; वृक्ण-श्रवण:—कान कटा हुआ; निस्त्रिंश-अग्र-आहत:—तलवार की नोंक से कट जाने के कारण; तत:—तत्पश्चात्; निश्चक्राम—(उस स्थान से) भाग निकला; भृशम्—अत्यधिक; भीत:—भयभीत होकर; रक्तम्—रक्त; पथि—रास्ते में; समुत्सृजन्—गिराता हुआ ।. |
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अनुवाद |
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चूँकि तलवार की नोक से बाघ का कान कट गया था अतएव वह अत्यधिक भयभीत था और वह उस स्थान से रास्ते भर कान से खून बहाता हुआ भाग खड़ा हुआ। |
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