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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 2: मनु के पुत्रों की वंशावलियाँ  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  9.2.8 
मन्यमानो हतं व्याघ्रं पृषध्र: परवीरहा ।
अद्राक्षीत् स्वहतां बभ्रुं व्युष्टायां निशि दु:खित: ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
मन्यमान:—यह सोचते हुए कि; हतम्—मार डाला गया; व्याघ्रम्—बाघ को; पृषध्र:—मनु पुत्र पृषध्र; पर-वीर-हा—यद्यपि शत्रु को दण्ड देने में समर्थ था; अद्राक्षीत्—देखा; स्व-हताम्—अपने द्वारा मारी गयी; बभ्रुम्—गाय को; व्युष्टायाम् निशि—रात्रि बीत जाने पर (प्रात:काल); दु:खित:—अत्यन्त दुखी हुआ ।.
 
अनुवाद
 
 अपने शत्रु का दमन करने में समर्थ पृषध्र ने प्रात:काल जब देखा कि उसने गाय का वध कर दिया है, यद्यपि रात में उसने सोचा था कि उसने बाघ को मारा है, तो वह अत्यन्त दुखी हुआ।
 
 
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