श्री-शुक: उवाच—श्रीशुकदेव गोस्वामी ने कहा; वितथस्य—वितथ (भरद्वाज) का, जिसे भरत ने निराशा की विशेष परिस्थिति में गोद लिया था; सुतात्—पुत्र से; मन्यो:—मन्यु; बृहत्क्षत्र:—बृहत्क्षत्र; जय:—जय; तत:—उससे; महावीर्य:—महावीर्य; नर:—नर; गर्ग:—गर्ग; सङ्कृति:—संकृति; तु—निश्चय ही; नर-आत्मज:—नर का पुत्र ।.
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा: चूँकि मरुत्गणों ने भरद्वाज को लाकर दिया था इसलिए वह वितथ कहलाया। वितथ के पुत्र का नाम मन्यु था जिसके पाँच पुत्र हुए—बृहत्क्षत्र, जय, महावीर्य, नर तथा गर्ग। इन पाँचों में से नर के पुत्र का नाम संकृति था।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥