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श्लोक |
तस्य तां करुणां वाचं निशम्य विपुलश्रमाम् ।
कृपया भृशसन्तप्त इदमाहामृतं वच: ॥ ११ ॥ |
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शब्दार्थ |
तस्य—उसका (चण्डाल) का; ताम्—उन; करुणाम्—दयनीय; वाचम्—शब्दों को; निशम्य—सुनकर; विपुल—अत्यधिक; श्रमाम्—थका हुआ; कृपया—दया करके; भृश-सन्तप्त:—अत्यन्त दुखी; इदम्—ये सब; आह—बोला; अमृतम्—मधुर; वच:— शब्द ।. |
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अनुवाद |
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बेचारे थके चण्डाल के दयनीय वचनों को सुनकर दुखित महाराज रन्तिदेव ने इस प्रकार के अमृततुल्य वचन कहे। |
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तात्पर्य |
महाराज रन्तिदेव के शब्द अमृततुल्य थे; अतएव दुखी व्यक्ति की शारीरिक सेवा |
करने के अतिरिक्त वे अपनी वाणी से ही सुनने वाले के जीवन को बचा सकते थे। |
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