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श्लोक |
ततो बहुरथो नाम पुरुमीढोऽप्रजोऽभवत् ।
नलिन्यामजमीढस्य नील: शान्तिस्तु तत्सुत: ॥ ३० ॥ |
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शब्दार्थ |
तत:—उससे (रिपुञ्जय से); बहुरथ:—बहुरथ; नाम—नामक; पुरुमीढ:—पुरुमीढ, द्विमीढ का छोटा भाई; अप्रज:—नि:सन्तान; अभवत्—हुआ; नलिन्याम्—नलिनी से; अजमीढस्य—अजमीढ की; नील:—नील; शान्ति:—शान्ति; तु—तब; तत्-सुत:—नील का पुत्र ।. |
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अनुवाद |
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रिपुञ्जय का पुत्र बहुरथ हुआ। पुरुमीढ नि:सन्तान था। अजमीढ को अपनी पत्नी नलिनी से नील नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। नील का पुत्र शान्ति था। |
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