वदन्ति तत्तत्त्वविदस्तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम्। ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्द्यते ॥ “विद्वान आध्यात्मवादी जो परम सत्य को जानते हैं, इस अद्वय ज्ञान को ब्रह्म, परमात्मा या भगवान् कहते हैं।” अधिकांश आध्यात्मवादी केवल निराकार ब्रह्म या अन्तर्यामी परमात्मा को समझते हैं क्योंकि भगवान् को समझ पाना अत्यन्त कठिन है। भगवान् ने भगवद्गीता (७.३) में कहा है— मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये। यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वत: ॥ “हजारों व्यक्तियों में से कोई एक व्यक्ति सिद्धि के लिए प्रयास करता है और जिन्होंने सिद्धि पा ली है उनमें से मुश्किल से एक मुझे जानता है।” योगी तथा ज्ञानी अर्थात् मायावादी और निर्विशेषवादी परम सत्य को निराकार या अन्तर्यामी रूप में समझ सकते हैं और ऐसे स्वरूपसिद्ध व्यक्ति यद्यपि सामान्य पुरुषों से बढक़र होते हैं फिर भी वे यह नहीं समझ सकते कि परमेश्वर किस तरह एक व्यक्ति हो सकता है। इसीलिए कहा गया है कि अनेक सिद्धों में से जिन्होंने परम सत्य का साक्षात्कार किया है कोई एक सिद्ध नर-रूप (नराकृति ) कृष्ण को समझ सकता है। स्वयं कृष्ण ने इस मनुष्य रूप की व्याख्या विराट रूप प्रदर्शित करने के बाद की है। विराट रूप भगवान् का आदि रूप नहीं है। उनका आदि रूप तो द्विभुज श्यामसुन्दर मुरलीधर का है जो दो हाथों वाले हैं और मुरली बजा रहे हैं (यं श्यामसुन्दरम् अचिन्त्यगुणस्वरूपम् )। भगवान् के स्वरूप उनके अकल्पनीय गुणों के प्रमाण हैं। यद्यपि भगवान् अपने एक श्वास काल में असंख्य ब्रह्माण्डों का पालन करते हैं, किन्तु वे मनुष्य की भाँति वेश धारण किये रहते हैं। किन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि वे हू-बहू मनुष्य हैं। यह उनका आदि रूप है लेकिन चूँकि वे मनुष्य की तरह दिखते हैं अतएव अल्पज्ञानी उन्हें सामान्य मनुष्य मानते हैं। भगवान् कहते हैं (भगवद्गीता ९.११) अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्। परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम् ॥ “जब मैं मनुष्य रूप में अवतरित होता हूँ तो मूर्ख मेरा उपहास करते हैं। वे मेरी दिव्य प्रकृति एवं मेरे परम ईश्वरत्व को नहीं जानते।” भगवान् अपने परं भावम् अर्थात् दिव्य स्वभाव से सारे जीवों के हृदयों में स्थित सर्वव्यापी परमात्मा हैं; फिर भी वे मनुष्य की तरह लगते हैं। मायावादी दर्शन कहता है कि भगवान् मूलत: निराकार हैं, किन्तु जब वे अवतरित होते हैं तो मनुष्य तथा अनेक अन्य रूप धारण करते हैं। किन्तु वस्तुत: वे मूलत: मनुष्य जैसे हैं और निराकार ब्रह्म उनके शरीर की किरणों से युक्त होता है (यस्य प्रभा प्रभवतो जगदण्डकोटि )। |