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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 23: ययाति के पुत्रों की वंशावली  »  श्लोक 7-10
 
 
श्लोक  9.23.7-10 
सुतो धर्मरथो यस्य जज्ञे चित्ररथोऽप्रजा: ।
रोमपाद इति ख्यातस्तस्मै दशरथ: सखा ॥ ७ ॥
शान्तां स्वकन्यां प्रायच्छद‍ृष्यश‍ृङ्ग उवाह याम् ।
देवेऽवर्षति यं रामा आनिन्युर्हरिणीसुतम् ॥ ८ ॥
नाट्यसङ्गीतवादित्रैर्विभ्रमालिङ्गनार्हणै: ।
स तु राज्ञोऽनपत्यस्य निरूप्येष्टिं मरुत्वते ॥ ९ ॥
प्रजामदाद् दशरथो येन लेभेऽप्रजा: प्रजा: ।
चतुरङ्गो रोमपादात् पृथुलाक्षस्तु तत्सुत: ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
सुत:—पुत्र; धर्मरथ:—धर्मरथ; यस्य—जिसके; जज्ञे—उत्पन्न हुआ; चित्ररथ:—चित्ररथ; अप्रजा:—नि:सन्तान; रोमपाद:—रोमपाद; इति—इस प्रकार; ख्यात:—विख्यात; तस्मै—उसको; दशरथ:—दशरथ; सखा—मित्र; शान्ताम्—शान्ता को; स्व-कन्याम्—अपनी पुत्री; प्रायच्छत्—दे दिया; ऋष्यशृङ्ग:—ऋष्यशृंग ने; उवाह—विवाह कर लिया; याम्—जिससे; देवे—वर्षा के देवता ने; अवर्षति— वर्षा नहीं की; यम्—जिसको (ऋष्यशृंग को); रामा:—वेश्याएँ; आनिन्यु:—ले आईं; हरिणी-सुतम्—हरिणी पुत्र ऋष्यशृंग को; नाट्य-सङ्गीत-वादित्रै:—नाच, गाना तथा वाद्ययंत्रों के द्वारा; विभ्रम—मोहित करके; आलिङ्गन—आलिगंन करके; अर्हणै:—पूजा द्वारा; स:—वह (ऋष्यशृंग); तु—निस्सन्देह; राज्ञ:—महाराज दशरथ से; अनपत्यस्य—सन्तानहीन; निरूप्य—स्थापित करके; इष्टिम्—यज्ञ; मरुत्वते—मरुत्वान नामक देवता की; प्रजाम्—सन्तान; अदात्—प्रदान किया; दशरथ:—दशरथ ने; येन—जिससे (यज्ञ के फलस्वरूप); लेभे—प्राप्त किया; अप्रजा:—निस्संतान होते हुए; प्रजा:—पुत्र; चतुरङ्ग:—चतुरंग; रोमपादात्—चित्ररथ से; पृथुलाक्ष:—पृथुलाक्ष; तु—निस्सन्देह; तत्-सुत:—चतुरंग का पुत्र ।.
 
अनुवाद
 
 दिविरथ का पुत्र धर्मरथ हुआ और उसका पुत्र चित्ररथ था जो रोमपाद के नाम से विख्यात था। किन्तु रोमपाद के कोई सन्तान न थी अतएव उसके मित्र महाराज दशरथ ने उसे अपनी पुत्री शान्ता दे दी। रोमपाद ने उसे पुत्री रूप में स्वीकार किया। तत्पश्चात् उस पुत्री ने ऋष्यशृंग से विवाह कर लिया। जब स्वर्गलोक के देवताओं ने वर्षा नहीं की तो ऋष्यशृंग को वेश्याओं के द्वारा आकर्षित करके जंगल से लाया गया और उसे एक यज्ञ सम्पन्न करने के लिए पुरोहित नियुक्त किया गया। ये वेश्याएँ नाचकर तथा संगीत के साथ नाटक करके और उनका आलिंगन तथा पूजन करके उन्हें ले आईं थीं। ऋष्यशृंग के आने के बाद वर्षा हुई। तत्पश्चात् ऋष्यशृंग ने महाराज दशरथ के लिए पुत्र-यज्ञ किया क्योंकि उनका कोई पुत्र न था। इससे महाराज दशरथ को पुत्र-प्राप्ति हुई। ऋष्यशृंग की कृपा से रोमपाद के एक पुत्र चतुरंग हुआ और चतुरंग से पृथुलाक्ष का जन्म हुआ।
 
 
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