दिविरथ का पुत्र धर्मरथ हुआ और उसका पुत्र चित्ररथ था जो रोमपाद के नाम से विख्यात था। किन्तु रोमपाद के कोई सन्तान न थी अतएव उसके मित्र महाराज दशरथ ने उसे अपनी पुत्री शान्ता दे दी। रोमपाद ने उसे पुत्री रूप में स्वीकार किया। तत्पश्चात् उस पुत्री ने ऋष्यशृंग से विवाह कर लिया। जब स्वर्गलोक के देवताओं ने वर्षा नहीं की तो ऋष्यशृंग को वेश्याओं के द्वारा आकर्षित करके जंगल से लाया गया और उसे एक यज्ञ सम्पन्न करने के लिए पुरोहित नियुक्त किया गया। ये वेश्याएँ नाचकर तथा संगीत के साथ नाटक करके और उनका आलिंगन तथा पूजन करके उन्हें ले आईं थीं। ऋष्यशृंग के आने के बाद वर्षा हुई। तत्पश्चात् ऋष्यशृंग ने महाराज दशरथ के लिए पुत्र-यज्ञ किया क्योंकि उनका कोई पुत्र न था। इससे महाराज दशरथ को पुत्र-प्राप्ति हुई। ऋष्यशृंग की कृपा से रोमपाद के एक पुत्र चतुरंग हुआ और चतुरंग से पृथुलाक्ष का जन्म हुआ।
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