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श्लोक |
ते दैवचोदिता बाला ज्योतिषी कण्टकेन वै ।
अविध्यन्मुग्धभावेन सुस्रावासृक् ततो बहि: ॥ ४ ॥ |
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शब्दार्थ |
ते—उन दोनों; दैव-चोदिता—मानो विधाता द्वारा प्रेरित; बाला—तरुणी ने; ज्योतिषी—बाँबी के भीतर दो जुगुनुओं को; कण्टकेन— काँटे से; वै—निस्सन्देह; अविध्यत्—छेद दिया; मुग्ध-भावेन—बिना जाने; सुस्राव—बाहर निकल आया; असृक्—रक्त; तत:—वहाँ से; बहि:—बाहर ।. |
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अनुवाद |
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मानो विधाता से प्रेरित होकर उस तरुणी ने बिना जाने उन दोनों जुगुनुओं को एक काँटे से छेद दिया जिससे उनमें से रक्त फूटकर बाहर आने लगा। |
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