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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 4: दुर्वासा मुनि द्वारा अम्बरीष महाराज का अपमान  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  9.4.9 
नाभागस्तं प्रणम्याह तवेश किल वास्तुकम् ।
इत्याह मे पिता ब्रह्मञ्छिरसा त्वां प्रसादये ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
नाभाग:—नाभाग ने; तम्—उसको (शिवजी को); प्रणम्य—प्रणाम करके; आह—कहा; तव—तुम्हारा; ईश—हे भगवान्; किल— निश्चय ही; वास्तुकम्—यज्ञशाला की हर वस्तु; इति—इस प्रकार; आह—कहा; मे—मेरे; पिता—पिता ने; ब्रह्मन्—हे ब्राह्मण; शिरसा—सिर के बल नमन करके; त्वाम्—तुमसे; प्रसादये—कृपा की भीख माँगता हूँ ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पश्चात् शिवजी को नमस्कार करने के बाद नाभाग ने कहा : हे पूज्यदेव, इस यज्ञशाला की प्रत्येक वस्तु आपकी है—ऐसा मेरे पिता का मत है। अब मैं विनम्रतापूर्वक आपके समक्ष अपना सिर झुकाकर आपसे कृपा की भीख माँगता हूँ।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥