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श्लोक |
दुष्कर: को नु साधूनां दुस्त्यजो वा महात्मनाम् ।
यै: संगृहीतो भगवान् सात्वतामृषभो हरि: ॥ १५ ॥ |
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शब्दार्थ |
दुष्कर:—कर पाना कठिन; क:—क्या; नु—निस्सन्देह; साधूनाम्—भक्तों का; दुस्त्यज:—छोड़ पाना असम्भव; वा—अथवा; महा- आत्मनाम्—महापुरुषों का; यै:—जिन पुरुषों के द्वारा; सङ्गृहीत:—(भक्ति द्वारा) प्राप्त किया गया; भगवान्—भगवान्; सात्वताम्— शुद्ध भक्तों का; ऋषभ:—नायक; हरि:—भगवान् ।. |
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अनुवाद |
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जिन लोगों ने शुद्ध भक्तों के स्वामी भगवान् को प्राप्त कर लिया है उनके लिए क्या करना असम्भव है और क्या त्यागना असम्भव है? |
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