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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 6: सौभरि मुनि का पतन  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  9.6.18 
तस्येषुपाताभिमुखं युगान्ताग्निमिवोल्बणम् ।
विसृज्य दुद्रुवुर्दैत्या हन्यमाना: स्वमालयम् ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
तस्य—उसके (पुरञ्जय के); इषु-पात—तीर फेंकने; अभिमुखम्—के समक्ष; युग-अन्त—युग के अन्त में; अग्निम्—ज्वाला; इव— सदृश; उल्बणम्—भयानक; विसृज्य—आक्रमण करना छोडक़र; दुद्रुवु:—भग गये; दैत्या:—सारे असुर; हन्यमाना:—मारे जाकर (पुरञ्जय द्वारा); स्वम्—अपने; आलयम्—घर को ।.
 
अनुवाद
 
 इन्द्रवाह के अग्नि उगलते तीरों से अपने को बचाने के लिए वे असुर, जो अपनी सेना के मारे जाने के बाद बचे थे, तेजी से अपने-अपने घरों को भाग खड़े हुए क्योंकि यह अग्नि युग के अन्त में उठने वाली प्रलयाग्नि के समान थी।
 
 
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