हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 6: सौभरि मुनि का पतन  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  9.6.19 
जित्वा पुरं धनं सर्वं सश्रीकं वज्रपाणये ।
प्रत्ययच्छत् स राजर्षिरिति नामभिराहृत: ॥ १९ ॥
 
शब्दार्थ
जित्वा—जीतकर; परम्—दुश्मनों को; धनम्—धन को; सर्वम्—हर वस्तु; स-स्त्रीकम्—उनकी पत्नियों समेत; वज्र-पाणये—इन्द्र को जो वज्र धारण करता है; प्रत्ययच्छत्—लौटाकर दे दिया; स:—वह; राज-ऋषि:—सन्त राजा (पुरञ्जय); इति—इस प्रकार; नामभि:—नामों से; आहृत:—पुकारा जाता था ।.
 
अनुवाद
 
 शत्रु को जीतने के बाद सन्त राजा पुरञ्जय ने वज्रधारी इन्द्र को सब कुछ लौटा दिया जिसमें शत्रु का धन तथा पत्नियाँ सम्मिलित थीं। इसी हेतु वह पुरञ्जय नाम से विख्यात है। इस तरह पुरञ्जय अपने विविध कार्यकलापों के कारण विभिन्न नामों से जाना जाता है।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥