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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 6: सौभरि मुनि का पतन  »  श्लोक 23-24
 
 
श्लोक  9.6.23-24 
धुन्धुमार इति ख्यातस्तत्सुतास्ते च जज्वलु: ।
धुन्धोर्मुखाग्निना सर्वे त्रय एवावशेषिता: ॥ २३ ॥
द‍ृढाश्व: कपिलाश्वश्च भद्राश्व इति भारत ।
द‍ृढाश्वपुत्रो हर्यश्वो निकुम्भस्तत्सुत: स्मृत: ॥ २४ ॥
 
शब्दार्थ
धुन्धु-मार:—धुन्धु को मारने वाला; इति—इस प्रकार; ख्यात:—प्रसिद्ध; तत्-सुता:—उसके पुत्रों ने; ते—उन सभी; —भी; जज्वलु:—जला दिया; धुन्धो:—धुन्धु के; मुख-अग्निना—मुख से निकलती अग्नि से; सर्वे—वे सभी; त्रय:—तीन; एव—केवल; अवशेषिता:—जीवित बचे; दृढाश्व:—दृढ़ाश्व; कपिलाश्व:—कपिलाश्व; —तथा; भद्राश्व:—भद्राश्व; इति—इस प्रकार; भारत—हे महाराज परीक्षित; दृढाश्व-पुत्र:—दृढ़ाश्व का पुत्र; हर्यश्व:—हर्यश्व; निकुम्भ:—निकुम्भ; तत्-सुत:—उसका पुत्र; स्मृत:—विख्यात ।.
 
अनुवाद
 
 हे महाराज परीक्षित, इस कारण से कुवलयाश्व धुन्धुमार कहलाता है। किन्तु उसके तीन पुत्रों को छोडक़र शेष सभी धुन्धु के मुख से निकलने वाली अग्नि से जलकर राख हो गये। बचे हुए पुत्रों के नाम हैं—दृढ़ाश्व, कपिलाश्व तथा भद्राश्व। दृढ़ाश्व के हर्यश्व नामक पुत्र हुआ जिसका पुत्र निकुम्भ नाम से विख्यात है।
 
 
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