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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 6: सौभरि मुनि का पतन  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  9.6.29 
राज्ञा पीतं विदित्वा वै ईश्वरप्रहितेन ते ।
ईश्वराय नमश्चक्रुरहो दैवबलं बलम् ॥ २९ ॥
 
शब्दार्थ
राज्ञा—राजा द्वारा; पीतम्—पिया गया; विदित्वा—यह जानकर; वै—निस्सन्देह; ईश्वर-प्रहितेन—विधाता द्वारा प्रेरित; ते—उन सबों ने; ईश्वराय—ईश्वर को; नम: चक्रु:—नमस्कार किया; अहो—ओह; दैव-बलम्—दैवी शक्ति; बलम्—वास्तविक बल है ।.
 
अनुवाद
 
 जब ब्राह्मणों को यह ज्ञात हुआ कि ईश्वर द्वारा प्रेरित होकर राजा ने जल पी लिया है तो उन्होंने विस्मित होकर कहा, “ओह! विधाता की शक्ति ही असली शक्ति है। ईश्वर की शक्ति का कोई भी निराकरण नहीं कर सकता।” इस तरह उन्होंने भगवान् को सादर नमस्कार किया।
 
 
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