|
|
|
श्लोक 9.6.30  |
तत: काल उपावृत्ते कुक्षिं निर्भिद्य दक्षिणम् ।
युवनाश्वस्य तनयश्चक्रवर्ती जजान ह ॥ ३० ॥ |
|
शब्दार्थ |
तत:—तत्पश्चात्; काले—समय; उपावृत्ते—पूरा हो जाने पर; कुक्षिम्—उदर का निचला भाग; निर्भिद्य—भेदकर; दक्षिणम्—दाहिनी ओर का; युवनाश्वस्य—राजा युवनाश्व का; तनय:—पुत्र; चक्रवर्ती—राजा के सारे उत्तम लक्षणों से युक्त; जजान—उत्पन्न किया; ह— भूतकाल में ।. |
|
अनुवाद |
|
तत्पश्चात् कालक्रम से राजा युवनाश्व के उदर के दाहिनी ओर के निचले भाग से चक्रवर्ती राजा के उत्तम लक्षणों से युक्त एक पुत्र उत्पन्न हुआ। |
|
|
|
शेयर करें
 |