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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 6: सौभरि मुनि का पतन  »  श्लोक 35-36
 
 
श्लोक  9.6.35-36 
ईजे च यज्ञं क्रतुभिरात्मविद् भूरिदक्षिणै: ।
सर्वदेवमयं देवं सर्वात्मकमतीन्द्रियम् ॥ ३५ ॥
द्रव्यं मन्त्रो विधिर्यज्ञो यजमानस्तथर्त्विज: ।
धर्मो देशश्च कालश्च सर्वमेतद् यदात्मकम् ॥ ३६ ॥
 
शब्दार्थ
ईजे—उसने पूजा की; —भी; यज्ञम्—यज्ञों के स्वामी की; क्रतुभि:—कर्मकाण्डों द्वारा; आत्म-वित्—आत्म-साक्षात्कार के द्वारा पूर्णतया अभिज्ञ; भूरि-दक्षिणै:—ब्राह्मणों को प्रचुर दक्षिणा देकर; सर्व-देव-मयम्—सारे देवताओं से युक्त; देवम्—भगवान् को; सर्व-आत्मकम्—सबों के परमात्मा; अति-इन्द्रियम्—दिव्य रूप से स्थित; द्रव्यम्—अवयव; मन्त्र:—वैदिक स्तोत्रों का उच्चारण; विधि:—विधान; यज्ञ:—पूजन; यजमान:—यज्ञ करने वाला; तथा—सहित; ऋत्विज:—पुरोहित; धर्म:—धार्मिक नियम; देश:— देश; —तथा; काल:—समय; —भी; सर्वम्—हर वस्तु; एतत्—ये सब; यत्—जो है; आत्मकम्—आत्म-साक्षात्कार के लिए उपयुक्त ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् महान् यज्ञों के कल्याणकारी पक्षो से—यथा यज्ञ की सामग्री, वैदिक स्तोत्रों का उच्चारण, विधि-विधान, यज्ञकर्ता, पुरोहित, यज्ञ-फल, यज्ञ-शाला, यज्ञ के समय, इत्यादि से भिन्न नहीं हैं। मान्धाता ने आत्म-साक्षात्कार के नियमों को जानते हुए दिव्य पद पर स्थित परमात्मा स्वरूप उन भगवान् विष्णु की पूजा की जो समस्त देवताओं से युक्त हैं। उसने ब्राह्मणों को भी प्रचुर दान दिया और इस तरह उसने भगवान् की पूजा करने के लिए यज्ञ किया।
 
 
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