भगवान् महान् यज्ञों के कल्याणकारी पक्षो से—यथा यज्ञ की सामग्री, वैदिक स्तोत्रों का उच्चारण, विधि-विधान, यज्ञकर्ता, पुरोहित, यज्ञ-फल, यज्ञ-शाला, यज्ञ के समय, इत्यादि से भिन्न नहीं हैं। मान्धाता ने आत्म-साक्षात्कार के नियमों को जानते हुए दिव्य पद पर स्थित परमात्मा स्वरूप उन भगवान् विष्णु की पूजा की जो समस्त देवताओं से युक्त हैं। उसने ब्राह्मणों को भी प्रचुर दान दिया और इस तरह उसने भगवान् की पूजा करने के लिए यज्ञ किया।
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