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श्लोक 9.6.37  |
यावत् सूर्य उदेति स्म यावच्च प्रतितिष्ठति ।
तत् सर्वं यौवनाश्वस्य मान्धातु: क्षेत्रमुच्यते ॥ ३७ ॥ |
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शब्दार्थ |
यावत्—जब तक; सूर्य:—सूर्य; उदेति—उदय होता है; स्म—भूतकाल में; यावत्—जब तक; च—भी; प्रतितिष्ठति—रहता है; तत्— उपर्युक्त वस्तुएँ; सर्वम्—सभी; यौवनाश्वस्य—युवनाश्व के पुत्र; मान्धातु:—मान्धाता के; क्षेत्रम्—स्थान; उच्यते—कहलाता है ।. |
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अनुवाद |
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क्षितिज में जहाँ से सूर्य उदय होकर चमकता है और जहाँ सूर्य अस्त होता है वे सारे स्थान युवनाश्व के पुत्र विख्यात मान्धाता के अधिकार में माने जाते हैं। |
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