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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 6: सौभरि मुनि का पतन  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  9.6.44 
तासां कलिरभूद् भूयांस्तदर्थेऽपोह्य सौहृदम् ।
ममानुरूपो नायं व इति तद्गतचेतसाम् ॥ ४४ ॥
 
शब्दार्थ
तासाम्—सारी राजकुमारियों में; कलि:—कलह तथा वैर; अभूत्—हो गया; भूयान्—अत्यधिक; तत्-अर्थे—सौभरि मुनि को लेकर; अपोह्य—त्यागकर; सौहृदम्—अच्छे सम्बन्ध; मम—मेरे; अनुरूप:—उपयुक्त व्यक्ति; —नहीं; अयम्—यह; व:—तुम्हारा; इति— इस प्रकार; तत्-गत-चेतसाम्—उससे आकृष्ट होकर ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पश्चात् राजकुमारियाँ सौभरि मुनि द्वारा आकृष्ट होकर अपना बहिन का नाता भूल गईं और परस्पर यह कहकर झगडऩे लगीं “यह व्यक्ति मेरे योग्य है, तुम्हारे योग्य नहीं।” इस तरह से उन सबों में काफी विरोध उत्पन्न हो गया।
 
 
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