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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 6: सौभरि मुनि का पतन  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  9.6.47 
यद्गार्हस्थ्यं तु संवीक्ष्य सप्तद्वीपवतीपति: ।
विस्मित: स्तम्भमजहात् सार्वभौमश्रियान्वितम् ॥ ४७ ॥
 
शब्दार्थ
यत्—जो; गार्हस्थ्यम्—गृहस्थ जीवन को; तु—लेकिन; संवीक्ष्य—देखकर; सप्त-द्वीप-वती-पति:—सात द्वीप वाले समस्त जगत का राजा मान्धाता; विस्मित:—आश्चर्यचकित; स्तम्भम्—गौरवशाली पद के कारण घमंड; अजहात्—त्याग दिया; सार्व-भौम—सारे जगत का सम्राट; श्रिया-अन्वितम्—सभी प्रकार के ऐश्वर्यों से युक्त ।.
 
अनुवाद
 
 सप्तद्वीपमय जगत के राजा मान्धाता ने जब सौभरि मुनि के घरेलू ऐश्वर्य को देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गये। उन्होंने जगत के सम्राट के रूप में अपनी झूठी प्रतिष्ठा छोड़ दी।
 
तात्पर्य
 हर एक को अपने पद का गर्व होता है, किन्तु यहाँ पर एक विचित्र अनुभव हुआ। सम्पूर्ण जगत के एक सम्राट ने सौभरि मुनि के ऐश्वर्य को देखकर भौतिक सुखों में अपने आपको पराजित अनुभव किया।
 
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