भौतिक इच्छा जलती आग के समान है। यदि आग को निरन्तर घी की बूँदें मिलती रहें तो आग बढ़ती ही जायेगी, और कभी नहीं बुझेगी। अतएव भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करते रहने की नीति से सफलता मिलने वाली नहीं है। आधुनिक सभ्यता में हर व्यक्ति आर्थिक विकास में लगा हुआ है जो भौतिक अग्नि को निरन्तर घी की बूँदें प्रदान करने के तुल्य है। पाश्चात्य देश भौतिक सभ्यता की पराकाष्ठा प्राप्त कर चुके हैं, किन्तु तो भी लोग असन्तुष्ट हैं। असली सन्तोष तो कृष्णभावनामृत है। इसकी पुष्टि भगवद्गीता (५.२९) में हुई है जहाँ कृष्ण यह कहते हैं— भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥
“साधुजन मुझे समस्त यज्ञों, तपस्याओं का चरम लक्ष्य, समस्त लोकों तथा देवताओं का परम प्रभु एवं समस्त जीवों का उपकारी एवं हितैषी जानकर भौतिक कष्टों से शान्ति प्राप्त करते हैं।” अतएव मनुष्य को चाहिए कि कृष्णभावनामृत ग्रहण करे और अनुष्ठानपूर्वक कार्य करते हए कृष्णभावनामृत में प्रगति करे। तभी मनुष्य को शान्ति तथा ज्ञानमय नित्य आनन्दपूर्ण जीवन प्राप्त हो सकता है।