जब आत्मवान सौभरि मुनि जंगल में चले गये तो उन्होंने कठोर तपस्याएँ की। इस तरह अन्तत: मृत्यु के समय उन्होंने अग्नि में स्वयं को भगवान् की सेवा में लगा दिया।
तात्पर्य
मृत्यु के समय अग्नि स्थूल शरीर को जला डालती है और यदि भौतिक भोग की कोई इच्छा नहीं होती तो सूक्ष्म शरीर का भी अन्त हो जाता है, केवल शुद्ध आत्मा बचा रहता है। इसकी पुष्टि भगवद्गीता में हुई है (त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति )। यदि मनुष्य स्थूल तथा सूक्ष्म दोनों प्रकार के भौतिक देहों के बन्धन से मुक्त होता है और शुद्ध आत्मा बना रहता है तो वह भगवान् की सेवा करने के लिए भगवद्धाम वापस जाता है। त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति—वह भगवद्धाम को वापस जाता है। इस तरह ऐसा लगता है कि सौभरि मुनि को वह पूर्ण अवस्था प्राप्त हुई थी।
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