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श्लोक 9.7.16  |
रोहितस्तदभिज्ञाय पितु: कर्म चिकीर्षितम् ।
प्राणप्रेप्सुर्धनुष्पाणिररण्यं प्रत्यपद्यत ॥ १६ ॥ |
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शब्दार्थ |
रोहित:—हरिश्चन्द्र का पुत्र; तत्—यह तथ्य; अभिज्ञाय—ठीक से समझकर; पितु:—पिता का; कर्म—काम; चिकीर्षितम्—जिसे वह व्यावहारिक रूप से कर रहा था; प्राण-प्रेप्सु:—जीवन बचाने की इच्छा से; धनु:-पाणि:—अपना धनुष बाण लेते हुए; अरण्यम्— जंगल; प्रत्यपद्यत—चला गया ।. |
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अनुवाद |
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रोहित समझ गया कि उसके पिता उसे बलि का पशु बनाना चाहते हैं। अतएव मृत्यु से बचने के लिए उसने धनुष-बाण से अपने आपको सज्जित किया और वह जंगल में चला गया। |
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