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श्लोक 9.7.4  |
त्रसद्दस्यु: पौरुकुत्सो योऽनरण्यस्य देहकृत् ।
हर्यश्वस्तत्सुतस्तस्मात्प्रारुणोऽथ त्रिबन्धन: ॥ ४ ॥ |
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शब्दार्थ |
त्रसद्दस्यु:—त्रसद्दस्यु नामक; पौरुकुत्स:—पुरुकुत्स का पुत्र; य:—जो; अनरण्यस्य—अनरण्य का; देह-कृत्—पिता; हर्यश्व:—हर्यश्व; तत्-सुत:—अनरण्य का पुत्र; तस्मात्—उस (हर्यश्व) से; प्रारुण:—प्रारुण; अथ—तब, प्रारुण से; त्रिबन्धन:—उसका पुत्र त्रिबन्धन ।. |
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अनुवाद |
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पुरुकुत्स का पुत्र त्रसद्दस्यु हुआ जो अनरण्य का पिता था। अनरण्य का पुत्र हर्यश्व हुआ जो प्रारुण का पिता बना। प्रारुण का पुत्र त्रिबन्धन हुआ। |
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