तस्य—त्रिबन्धन का; सत्यव्रत:—सत्यव्रत; पुत्र:—पुत्र; त्रिशङ्कु:—त्रिशंकु; इति—इस प्रकार; विश्रुत:—विख्यात; प्राप्त:—प्राप्त किया था; चाण्डालताम्—चण्डाल के गुण, जो शूद्र से भी अधम होता है; शापात्—शाप से; गुरो:—अपने गुरु के; कौशिक- तेजसा—कौशिक (विश्वामित्र) की शक्ति से; सशरीर:—इस शरीर सहित; गत:—गया; स्वर्गम्—स्वर्गलोक को; अद्य अपि—आज भी; दिवि—आकाश में; दृश्यते—देखा जा सकता है; पातित:—गिराया जाकर; अवाक्-शिरा:—सिर नीचे किये लटकता हुआ; देवै:—देवताओं की शक्ति से; तेन—विश्वामित्र द्वारा; एव—निस्सन्देह; स्तम्भित:—स्थिर; बलात्—बल से ।.
अनुवाद
त्रिबन्धन का पुत्र सत्यव्रत था जो त्रिशंकु नाम से विख्यात है। चूँकि उसने विवाह-मण्डप से एक ब्राह्मणपुत्री का अपहरण कर लिया था इसलिए उसके पिता ने उसे चण्डाल बनने का शाप दे दिया जो शूद्र से भी नीचे होता है। तत्पश्चात् विश्वामित्र के प्रभाव से वह सदेह स्वर्गलोक गया, किन्तु देवताओं के पराक्रम से वह पुन: नीचे गिर गया। तो भी विश्वामित्र की शक्ति से वह एकदम नीचे नहीं गिरा। आज भी वह आकाश में सिर के बल लटकता देखा जा सकता है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥