श्री-शुक: उवाच—श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा; इत्थम्—इस तरह; गीत-अनुभाव:—जिनकी महिमा का वर्णन किया जाता है; तम्—उस; भगवान्—भगवान्; कपिल:—कपिल ने; मुनि:—महान् साधु; अंशुमन्तम्—अंशुमान से; उवाच—कहा; इदम्—यह; अनुग्राह्य—दयालु होकर; धिया—ज्ञान के मार्ग सहित; नृप—राजा परीक्षित ।.
अनुवाद
हे राजा परीक्षित, जब अंशुमान ने भगवान् का इस प्रकार महिमागायन किया तो महामुनि कपिल ने, जो विष्णु के सशक्त अवतार हैं, उस पर कृपालु होकर उसे ज्ञान का मार्ग बतलाया।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥