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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 9: अंशुमान की वंशावली  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  9.9.12 
यज्जलस्पर्शमात्रेण ब्रह्मदण्डहता अपि ।
सगरात्मजा दिवं जग्मु: केवलं देहभस्मभि: ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
यत्-जल—जिसका पानी; स्पर्श-मात्रेण—केवल स्पर्श करने से; ब्रह्म-दण्ड-हता:—जो लोग ब्रह्म (आत्म) का अपमान करने के कारण दण्डित हुए; अपि—यद्यपि; सगर-आत्मजा:—सगर के पुत्र; दिवम्—स्वर्गलोक को; जग्मु:—गये; केवलम्—मात्र; देह भस्मभि:—अपने भस्म हुए शरीरों की बची राख से ।.
 
अनुवाद
 
 चूँकि सगर महाराज के पुत्रों ने महापुरुष का अपमान किया था अतएव उनके शरीर का ताप बढ़ गया था और वे जलकर भस्म हो गये थे। किन्तु मात्र गंगाजल के छिडक़ने से वे सभी स्वर्गलोक जाने के पात्र बन गये। अतएव जो लोग गंगा की पूजा करने के लिए गंगाजल का प्रयोग करते हैं उनके विषय में क्या कहा जाए? है?
 
तात्पर्य
 गंगा मइया की पूजा गंगाजल से की जाती है—भक्त थोड़ा सा गंगाजल लेकर पुन: उस गंगा में चढ़ा देता है। जब भक्त गंगा में से जल लेता है तो गंगा मइया की न तो कुछ हानि होती है और न ही, जब भक्त उस जल को गंगा में डाल देता है, कोई वृद्धि होती है, किन्तु इस प्रकार गंगा के आराधक लाभान्वित होते हैं। इसी प्रकार जब भक्त भगवान् को भक्तिपूर्वक पत्रं पुष्पं फलं तोयम् अर्थात् पत्र, फूल, फल तथा जल चढ़ाता है तो हर वस्तु भगवान् की होने से, न तो कोई त्यागने का प्रश्न उठता है और न स्वीकारने का। मनुष्य को मात्र भक्तियोग का लाभ उठाना चाहिए क्योंकि इसका पालन करने से किसी का कुछ जाता नहीं प्रत्युत परमपुरुष की कृपा प्राप्त होती है।
 
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