यद्यपि आप एक हैं, किन्तु आप आकाश तथा सारे लोकों एवं उनके बीच के समस्त अवकाश में व्याप्त हैं। हे महापुरुष! आपके इस अद्भुत तथा भयानक रूप को देखकर सारे लोक भयभीत हैं।
तात्पर्य
इस श्लोक में द्याव्-आ-पृथिव्यो: (धरती तथा आकाश के बीच का स्थान) तथा लोकत्रयम् (तीनों संसार) महत्त्वपूर्ण शब्द हैं, क्योंकि ऐसा लगता है कि न केवल अर्जुन ने इस विश्वरूप को देखा, बल्कि अन्य लोकों के वासियों ने भी इसे देखा। अर्जुन द्वारा विश्वरूप का दर्शन स्वप्न न था। भगवान् ने जिन जिनको दिव्य दृष्टि प्रदान की, उन्होंने युद्धक्षेत्र में उस विश्वरूप को देखा।
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