संजय ने धृतराष्ट्र से कहा—हे राजा! भगवान् के मुख से इन वचनों को सुनकर काँपते हुए अर्जुन ने हाथ जोडक़र उन्हें बारम्बार नमस्कार किया। फिर उसने भयभीत होकर अवरुद्ध स्वर में कृष्ण से इस प्रकार कहा।
तात्पर्य
जैसा कि पहले कहा जा चुका है, भगवान् के विश्वरूप के कारण अर्जुन आश्चर्यचकित था, अत: वह कृष्ण को बारम्बार नमस्कार करने लगा और अवरुद्ध कंठ से आश्चर्य से वह कृष्ण की प्रार्थना मित्र के रूप में नहीं, अपितु भक्त के रूप में करने लगा।
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