कृष्ण के प्रेम से अभिभूत उनका मित्र अर्जुन सभी दिशाओं से उनको नमस्कार कर रहा है। वह स्वीकार करता है कि कृष्ण समस्त बल तथा पराक्रम के स्वामी हैं और युद्धभूमि में एकत्र समस्त योद्धाओं से कहीं अधिक श्रेष्ठ हैं। विष्णुपुराण में (१.९.६९) कहा गया है— योऽयं तवागतो देव समीपं देवतागण:।
स त्वमेव जगत्स्रष्टा यत: सर्वगतो भवान् ॥
“आपके समक्ष जो भी आता है, चाहे वह देवता ही क्यों न हो, हे भगवान्! वह आपके द्वारा ही उत्पन्न है।”