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भगवद्-गीता  »  अध्याय 14: प्रकृति के तीन गुण  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  14.11 
सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते ।
ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
सर्व-द्वारेषु—सारे दरवाजों में; देहे अस्मिन्—इस शरीर में; प्रकाश:—प्रकाशित करने का गुण; उपजायते—उत्पन्न होता है; ज्ञानम्—ज्ञान; यदा—जब; तदा—उस समय; विद्यात्—जानो; विवृद्धम्—बढ़ा हुआ; सत्त्वम्—सतोगुण; इति उत—ऐसा कहा गया है ।.
 
अनुवाद
 
 सतोगुण की अभिव्यक्ति को तभी अनुभव किया जा सकता है, जब शरीर के सारे द्वार ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं।
 
तात्पर्य
 शरीर में नौ द्वार हैं—दो आँखें, दो कान, दो नथुने, मुँह, गुदा तथा उपस्थ। जब प्रत्येक द्वार सत्त्व के लक्षण से दीपित हो जायें, तो समझना चाहिए कि उसमें सतोगुण विकसित हो चुका है। सतोगुण में सारी वस्तुएँ अपनी सही स्थिति में दिखती हैं, सही-सही सुनाई पड़ता है और सही ढंग से उन वस्तुओं का स्वाद मिलता है। मनुष्य का अन्त: तथा बाह्य शुद्ध हो जाता है। प्रत्येक द्वार में सुख के लक्षण उत्पन्न दिखते हैं और यही स्थिति होती है सत्त्वगुण की।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥