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भगवद्-गीता  »  अध्याय 15: पुरुषोत्तम योग  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  15.12 
यदादित्यगतं तेजो जगद्भ‍ासयतेऽखिलम् ।
यच्च‍न्द्रमसि यच्च‍ाग्न‍ौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
यत्—जो; आदित्य-गतम्—सूर्यप्रकाश में स्थित; तेज:—तेज; जगत्—सारा संसार; भासयते—प्रकाशित होता है; अखिलम्—सम्पूर्ण; यत्—जो; चन्द्रमसि—चन्द्रमा में; यत्—जो; —भी; अग्नौ—अग्नि में; तत्—वह; तेज:—तेज; विद्धि—जानो; मामकम्—मुझसे ।.
 
अनुवाद
 
 सूर्य का तेज, जो सारे विश्व के अंधकार को दूर करता है, मुझसे ही निकलता है। चन्द्रमा तथा अग्नि के तेज भी मुझसे उत्पन्न हैं।
 
तात्पर्य
 अज्ञानी मनुष्य यह नहीं समझ पाता कि यह सब कुछ कैसे घटित होता है। लेकिन भगवान् ने यहाँ पर जो कुछ बतलाया है, उसे समझ कर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि तथा बिजली देखता है। उसे यह समझने का प्रयास करना चाहिए कि चाहे सूर्य का तेज हो, या चन्द्रमा, अग्नि अथवा बिजली का तेज, ये सब भगवान् से ही उद्भूत हैं। कृष्णभावनामृत का प्रारम्भ इस भौतिक जगत् में बद्धजीव को उन्नति करने के लिए काफी अवसर प्रदान करता है। जीव मूलत: परमेश्वर के अंश हैं और भगवान् यहाँ पर इंगित कर रहे हैं कि जीव किस प्रकार भगवद्धाम को प्राप्त कर सकते हैं।

इस श्लोक से हम यह समझ सकते हैं कि सूर्य सम्पूर्ण सौर मण्डल को प्रकाशित कर रहा है। ब्रह्माण्ड अनेक हैं और सौर मण्डल भी अनेक हैं। सूर्य, चन्द्रमा तथा लोक भी अनेक हैं, लेकिन प्रत्येक ब्रह्माण्ड में केवल एक सूर्य है। भगवद्गीता में (१०.२१) कहा गया है कि चन्द्रमा भी एक नक्षत्र है (नक्षत्राणामहं शशी)। सूर्य का प्रकाश परमेश्वर के आध्यात्मिक आकाश में आध्यात्मिक तेज के कारण है। सूर्योदय के साथ ही मनुष्य के कार्यकलाप प्रारम्भ हो जाते हैं। वे भोजन पकाने के लिए अग्नि जलाते हैं और फैक्टरियाँ चलाने के लिए भी अग्नि जलाते हैं। अग्नि की सहायता से अनेक कार्य किये जाते हैं। अतएव सूर्योदय, अग्नि तथा चन्द्रमा की चाँदनी जीवों को अत्यन्त सुहावने लगते हैं। उनकी सहायता के बिना कोई जीव नहीं रह सकता। अतएव यदि मनुष्य यह जान ले कि सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि का प्रकाश तथा तेज भगवान् श्रीकृष्ण से उद्भूत हो रहा है, तो उसमें कृष्णभावनामृत का सूत्रपात हो जाता है। चन्द्रमा के प्रकाश से सारी वनस्पतियाँ पोषित होती हैं। चन्द्रमा का प्रकाश इतना आनन्दप्रद है कि लोग सरलता से समझ सकते हैं कि वे भगवान् कृष्ण की कृपा से ही जी रहे हैं। उनकी कृपा के बिना न तो सूर्य होगा, न चन्द्रमा, न अग्नि और सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि के बिना हमारा जीवित रहना असम्भव है। बद्धजीव में कृष्णभावनामृत जगाने वाले ये ही कतिपय विचार हैं।

 
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