जब बलराम, कृष्ण तथा उनके संगी उपर्युक्त लीलाओं में मस्त थे, तो गौवें बिना रखवाली के मनमाना विचरण करती हुई हरी घास चरने के लालच से वन के सुदूर भाग में पहुँच गईं । सारी बकरियाँ, गायें तथा भैंसे एक वन पार करके दूसरे में पहुँची और फिर इषिकाटवी वन में घुस गईं । यह वन हरी घास से पूर्ण था, अतः वे सभी आकृष्ट हो गई, किन्तु जब वे वहाँ पहुँचीं, तो उन्होंने देखा कि वहाँ दावाग्नि लगी है, अतः वे सब चीत्कार करने लगीं । इधर जब कृष्ण, बलराम तथा उनके संगियों ने अपने पशुओं को नहीं देखा, तो वे सब बहुत चिन्तित हुए । वे गौवों को उनके पदचिह्नों तथा चरी हुई घास का अनुसरण करते हुए ढॅूंढ़ने लगे । सभी बालक ड़रे हुए थे कि उनकी जीविका की साधन रूप गायें खो गई हैं । गायों को खोजने से वे भी थक गए और प्यासे हो गए । किन्तु शीघ्र ही उन्हें अपनी गायों की चीत्कार सुनाई दी । कृष्ण जोर-जोर से गौवों का नाम ले-लेकर बुलाने लगे । किन्तु उस समय तक दावाग्नि ने उन सब को चारों और से घेर लिया था और स्थिति अत्यन्त भयानक हो गई थी । ज्यों-ज्यों वायु तेजी से चलने लगीं त्यों-त्यों लपटें बढने लगीं और ऐसा प्रतीत होने लगा मानो सारी जड़ तथा जंगम वस्तुएँ कालकवलित हो जाएँगी । सारी गौवें तथा बालक अत्यन्त भयभीत हो उठे और वे बलराम की ओर उसी तरह देखने लगे जिस प्रकार मरणासन्न व्यक्ति भगवान् के चित्र की ओर देखता हैं वे पुकार रहे थे, हे कृष्ण ! हे बलराम ! आप बहुत बलवान् हैं । हम इस दहकती अग्नि के ताप से जले जा रहे है । हमें अपने चरणकमलों में शरण दें । हम जानते है कि आप ही इस संकट से हमारी रक्षा कर सकते है । हे प्रिय कृष्ण ! आप हमारे घनिष्ठ मित्र है । यह अच्छा नहीं है । कि हम इस तरह कष्ट उठाएँ । हम सभी आप पर पूरी तरह आश्रित हैं और आप समस्त धर्मों के ज्ञाता हैं । हम आपके अतिरिक्त अन्य किसी को नहीं जानते ।
भगवान् कृष्ण ने अपने मित्रों की आर्तवाणी सुनी और उन पर स्नेहमयी दृष्टि डाली । उन्होंने आँखों से ही अपने मित्रों को बता दिया कि ड़रने का कोई कारण नही हैं तब परम योगी, शक्तिमान ईश्वर श्रीकृष्ण ने तुरन्त ही अग्नि की सारी लपटों का पान कर लिया । इस प्रकार सारी गायें तथा बालक काल के ग्रास से बच गए । सारे बालक भय से प्रायः मूर्च्छित थे, किन्तु जब उन्हें होश आया और उन्होंने अपनी आँखें खोलीं, तो अपने आपको कृष्ण, बलराम तथा गायों के बीच भांडीरवन जंगल में पाया । वे आश्चर्यचकित थे कि वे दहकती अग्नि से बाल-बाल बच गए हैं और उनकी गायें सुरक्षित हैं । उन्होंने मन ही मन सोचा कि कृष्ण कोई सामान्य बालक न होकर देवता है ।
संध्या समय कृष्ण तथा बलराम ग्वालबालों तथा गायों को साथ लिए बाँसुरी बजाते वृन्दावन आए । जब वे सब गाँव पहुँचे, तो गोपियाँ परम प्रसन्न हो गईं । जब कृष्ण वन में होते, तो गोपियाँ सारे दिन उनके विषय में सोचती रहतीं और उनकी अनुपस्थिति में उनका एक-एक क्षण बारह वर्षों की भाँति व्यतीत होता ।
इस प्रकार लीला पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण के अन्तर्गत “दावानल-पान” नामक उन्नीसवें अध्याय का भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुआ ।
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