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उपपर्व: अनुक्रमणिका पर्व |
अध्याय 1: ग्रन्थका उपक्रम, ग्रन्थमें कहे हुए अधिकांश विषयोंकी संक्षिप्त सूची तथा इसके पाठकी महिमा |
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उपपर्व: पर्वसंग्रह पर्व |
अध्याय 2: समन्तपंचकक्षेत्रका वर्णन, अक्षौहिणी सेनाका प्रमाण, महाभारतमें वर्णि त पर्वों और उनके संक्षिप्त विषयोंका संग्रह तथा महाभारतके श्रवण एवं पठनका फल |
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उपपर्व: पौष्य पर्व |
अध्याय 3: जनमेजयको सरमाका शाप, जनमेजयद्वारा सोमश्रवाका पुरोहितके पदपर वरण, आरुणि, उपमन्यु, वेद और उत्तंककी गुरुभक्ति तथा उत्तंकका सर्पयज्ञके लिये जनमेजयको प्रोत्साहन देना |
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उपपर्व: पौलोम पर्व |
अध्याय 4: कथा-प्रवेश |
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अध्याय 5: भृगुके आश्रमपर पुलोमा दानवका आगमन और उसकी अग्निदेवके साथ बातचीत |
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अध्याय 6: महर्षि च्यवनका जन्म, उनके तेजसे पुलोमा राक्षसका भस्म होना तथा भृगुका अग्निदेवको शाप देना |
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अध्याय 7: शापसे कुपित हुए अग्निदेवका अदृश्य होना और ब्रह्माजीका उनके शापको संकुचित करके उन्हें प्रसन्न करना |
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अध्याय 8: प्रमद्वराका जन्म, रुरुके साथ उसका वाग्दान तथा विवाहके पहले ही साँपके काटनेसे प्रमद्वराकी मृत्यु |
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अध्याय 9: रुरुकी आधी आयुसे प्रमद्वराका जीवित होना, रुरुके साथ उसका विवाह, रुरुका सर्पोंको मारनेका निश्चय तथा रुरु-डुण्डुभ-संवाद |
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अध्याय 10: रुरु मुनि और डुण्डुभका संवाद |
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अध्याय 11: डुण्डुभकी आत्मकथा तथा उसके द्वारा रुरुको अहिं साका उपदेश |
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अध्याय 12: जनमेजयके सर्पसत्रके विषयमें रुरुकी जिज्ञासा और पिताद्वारा उसकी पूर्ति |
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उपपर्व: आस्तीक पर्व |
अध्याय 13: जरत्कारुका अपने पितरोंके अनुरोधसे विवाहके लिये उद्यत होना |
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अध्याय 14: जरत्कारुद्वारा वासुकिकी बहिनका पाणिग्रहण |
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अध्याय 15: आस्तीकका जन्म तथा मातृशापसे सर्पसत्रमें नष्ट होनेवाले नागवंशकी उनके द्वारा रक्षा |
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अध्याय 16: कद्रू और विनताको कश्यपजीके वरदानसे अभीष्ट पुत्रोंकी प्राप्ति |
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अध्याय 17: मेरुपर्वतपर अमृतके लिये विचार करनेवाले देवताओंको भगवान् नारायणका समुद्र-मन्थनके लिये आदेश |
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अध्याय 18: देवताओं और दैत्योंद्वारा अमृतके लिये समुद्रका मन्थन, अनेक रत्नोंके साथ अमृतकी उत्पत्ति और भगवान् का मोहिनीरूप धारण करके दैत्योंके हाथसे अमृत ले लेना |
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अध्याय 19: देवताओंका अमृतपान, देवासुरसंग्राम तथा देवताओंकी विजय |
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अध्याय 20: कद्रू और विनताकी होड़, कद्रूद्वारा अपने पुत्रोंको शाप एवं ब्रह्माजीद्वारा उसका अनुमोदन |
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अध्याय 21: समुद्रका विस्तारसे वर्णन |
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अध्याय 22: नागोंद्वारा उच्चैःश्रवाकी पूँछको काली बनाना; कद्रू और विनताका समुद्रको देखते हुए आगे बढ़ना |
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अध्याय 23: पराजित विनताका कद्रूकी दासी होना, गरुडकी उत्पत्ति तथा देवताओंद्वारा उनकी स्तुति |
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अध्याय 24: गरुडके द्वारा अपने तेज और शरीरका संकोच तथा सूर्यके क्रोधजनित तीव्र तेजकी शान्तिके लिये अरुणका उनके रथपर स्थित होना |
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अध्याय 25: सूर्यके तापसे मूर्च्छित हुए सर्पोंकी रक्षाके लिये कद्रूद्वारा इन्द्रदेवकी स्तुति |
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अध्याय 26: इन्द्रद्वारा की हुई वर्षासे सर्पोंकी प्रसन्नता |
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अध्याय 27: रामणीयक द्वीपके मनोरम वनका वर्णन तथा गरुडका दास्यभावसे छूटनेके लिये सर्पोंसे उपाय पूछना |
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अध्याय 28: गरुडका अमृतके लिये जाना और अपनी माताकी आज्ञाके अनुसार निषादोंका भक्षण करना |
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अध्याय 29: कश्यपजीका गरुडको हाथी और कछुएके पूर्वजन्मकी कथा सुनाना, गरुडका उन दोनोंको पकड़कर एक दिव्य वटवृक्षकी शाखापर ले जाना और उस शाखाका टूटना |
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अध्याय 30: गरुडका कश्यपजीसे मिलना, उनकी प्रार्थनासे वालखिल्य ऋषियोंका शाखा छोड़कर तपके लिये प्रस्थान और गरुडका निर्जन पर्वतपर उस शाखाको छोड़ना |
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अध्याय 31: इन्द्रके द्वारा वालखिल्योंका अपमान और उनकी तपस्याके प्रभावसे अरुण एवं गरुडकी उत्पत्ति |
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अध्याय 32: गरुडका देवताओंके साथ युद्ध और देवताओंकी पराजय |
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अध्याय 33: गरुडका अमृत लेकर लौटना, मार्गमें भगवान् विष्णुसे वर पाना एवं उनपर इन्द्रके द्वारा वज्र-प्रहार |
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अध्याय 34: इन्द्र और गरुडकी मित्रता, गरुडका अमृत लेकर नागोंके पास आना और विनताको दासीभावसे छुड़ाना तथा इन्द्रद्वारा अमृतका अपहरण |
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अध्याय 35: मुख्य-मुख्य नागोंके नाम |
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अध्याय 36: शेषनागकी तपस्या, ब्रह्माजीसे वर-प्राप्ति तथा पृथ्वीको सिरपर धारण करना |
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अध्याय 37: माताके शापसे बचनेके लिये वासुकि आदि नागोंका परस्पर परामर्श |
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अध्याय 38: वासुकिकी बहिन जरत्कारुका जरत्कारु मुनिके साथ विवाह करनेका निश्चय |
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अध्याय 39: ब्रह्माजीकी आज्ञासे वासुकिका जरत्कारु मुनिके साथ अपनी बहिनको ब्याहनेके लिये प्रयत्नशील होना |
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अध्याय 40: जरत्कारुकी तपस्या, राजा परीक्षित् का उपाख्यान तथा राजाद्वारा मुनिके कंधेपर मृतक साँप रखनेके कारण दुःखी हुए कृशका शृंगीको उत्तेजित करना |
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अध्याय 41: शृंगी ऋषिका राजा परीक्षित् को शाप देना और शमीकका अपने पुत्रको शान्त करते हुए शापको अनुचित बताना |
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अध्याय 42: शमीकका अपने पुत्रको समझाना और गौरमुखको राजा परीक्षित् के पास भेजना, राजाद्वारा आत्मरक्षाकी व्यवस्था तथा तक्षक नाग और काश्यपकी बातचीत |
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अध्याय 43: तक्षकका धन देकर काश्यपको लौटा देना और छलसे राजा परीक्षित् के समीप पहुँचकर उन्हें डँसना |
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अध्याय 44: जनमेजयका राज्याभिषेक और विवाह |
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अध्याय 45: जरत्कारुको अपने पितरोंका दर्शन और उनसे वार्तालाप |
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अध्याय 46: जरत्कारुका शर्तके साथ विवाहके लिये उद्यत होना और नागराज वासुकिका जरत्कारु नामकी कन्याको लेकर आना |
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अध्याय 47: जरत्कारु मुनिका नागकन्याके साथ विवाह, नागकन्या जरत्कारुद्वारा पतिसेवा तथा पतिका उसे त्यागकर तपस्याके लिये गमन |
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अध्याय 48: वासुकि नागकी चिन्ता, बहिनद्वारा उसका निवारण तथा आस्तीकका जन्म एवं विद्याध्ययन |
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अध्याय 49: राजा परीक्षित् के धर्ममय आचार तथा उत्तम गुणोंका वर्णन, राजाका शिकारके लिये जाना और उनके द्वारा शमीक मुनिका तिरस्कार |
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अध्याय 50: शृंगी ऋषिका परीक्षित् को शाप, तक्षकका काश्यपको लौटाकर छलसे परीक्षित् को डँसना और पिताकी मृत्युका वृत्तान्त सुनकर जनमेजयकी तक्षकसे बदला लेनेकी प्रतिज्ञा |
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अध्याय 51: जनमेजयके सर्पयज्ञका उपक्रम |
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अध्याय 52: सर्पसत्रका आरम्भ और उसमें सर्पोंका विनाश |
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अध्याय 53: सर्पयज्ञके ऋत्विजोंकी नामावली, सर्पोंका भयंकर विनाश, तक्षकका इन्द्रकी शरणमें जाना तथा वासुकिका अपनी बहिनसे आस्तीकको यज्ञमें भेजनेके लिये कहना |
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अध्याय 54: माताकी आज्ञासे मामाको सान्त्वना देकर आस्तीकका सर्पयज्ञमें जाना |
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अध्याय 55: आस्तीकके द्वारा यजमान, यज्ञ, ऋत्विज्, सदस्यगण और अग्निदेवकी स्तुति- प्रशंसा |
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अध्याय 56: राजाका आस्तीकको वर देनेके लिये तैयार होना, तक्षक नागकी व्याकुलता तथा आस्तीकका वर माँगना |
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अध्याय 57: सर्पयज्ञमें दग्ध हुए प्रधान-प्रधान सर्पोंके नाम |
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अध्याय 58: यज्ञकी समाप्ति एवं आस्तीकका सर्पोंसे वर प्राप्त करना |
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उपपर्व: अंशावतरण पर्व |
अध्याय 59: महाभारतका उपक्रम |
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अध्याय 60: जनमेजयके यज्ञमें व्यासजीका आगमन, सत्कार तथा राजाकी प्रार्थनासे व्यासजीका वैशम्पायनजीसे महाभारत-कथा सुनानेके लिये कहना |
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अध्याय 61: कौरव-पाण्डवोंमें फूट और युद्ध होनेके वृत्तान्तका सूत्ररूपमें निर्देश |
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अध्याय 62: महाभारतकी महत्ता |
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अध्याय 63: राजा उपरिचरका चरित्र तथा सत्यवती, व्यासादि प्रमुख पात्रोंकी संक्षिप्त जन्मकथा |
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अध्याय 64: ब्राह्मणोंद्वारा क्षत्रियवंशकी उत्पत्ति और वृद्धि तथा उस समयके धार्मि क राज्यका वर्णन; असुरोंका जन्म और उनके भारसे पीड़ित पृथ्वीका ब्रह्माजीकी शरणमें जाना तथा ब्रह्माजीका देवताओंको अपने अंशसे पृथ्वीपर जन्म लेनेका आदेश |
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उपपर्व: सम्भव पर्व |
अध्याय 65: मरीचि आदि महर्षि यों तथा अदिति आदि दक्षकन्याओंके वंशका विवरण |
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अध्याय 66: महर्षि यों तथा कश्यप-पत्नियोंकी संतान-परम्पराका वर्णन |
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अध्याय 67: देवता और दैत्य आदिके अंशावतारोंका दिग्दर्शन |
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अध्याय 68: राजा दुष्यन्तकी अद्भतु शक्ति तथा राज्यशासनकी क्षमताका वर्णन |
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अध्याय 69: दुष्यन्तका शिकारके लिये वनमें जाना और विविध हिं सक वन-जन्तुओंका वध करना |
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अध्याय 70: तपोवन और कण्वके आश्रमका वर्णन तथा राजा दुष्यन्तका उस आश्रममें प्रवेश |
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अध्याय 71: राजा दुष्यन्तका शकुन्तलाके साथ वार्तालाप, शकुन्तलाके द्वारा अपने जन्मका कारण बतलाना तथा उसी प्रसंगमें विश्वामित्रकी तपस्यासे इन्द्रका चिन्तित होकर मेनकाको मुनिका तपोभंग करनेके लिये भेजना |
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अध्याय 72: मेनका-विश्वामित्र-मिलन, कन्याकी उत्पत्ति, शकुन्त पक्षियोंके द्वारा उसकी रक्षा और कण्वका उसे अपने आश्रमपर लाकर शकुन्तला नाम रखकर पालन करना |
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अध्याय 73: शकुन्तला और दुष्यन्तका गान्धर्व विवाह और महर्षि कण्वके द्वारा उसका अनुमोदन |
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अध्याय 74: शकु न्तलाके पुत्रका जन्म, उसकी अद्भतु शक्ति, पुत्रसहित शकु न्तलाका दुष्यन्तके यहाँ जाना, दुष्यन्त-शकुन्तला-संवाद, आकाशवाणीद्वारा शकुन्तलाकी शुद्धिका समर्थन और भरतका राज्याभिषेक |
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अध्याय 75: दक्ष, वैवस्वत मनु तथा उनके पुत्रोंकी उत्पत्ति; पुरूरवा, नहुष और ययातिके चरित्रोंका संक्षेपसे वर्णन |
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अध्याय 76: कचका शिष्यभावसे शुक्राचार्य और देवयानीकी सेवामें संलग्न होना और अनेक कष्ट सहनेके पश्चात् मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त करना |
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अध्याय 77: देवयानीका कचसे पाणिग्रहणके लिये अनुरोध, कचकी अस्वीकृति तथा दोनोंका एक-दूसरेको शाप देना |
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अध्याय 78: देवयानी और शर्मि ष्ठाका कलह, शर्मि ष्ठाद्वारा कुएँमें गिरायी गयी देवयानीको ययातिका निकालना और देवयानीका शुक्राचार्यजीके साथ वार्तालाप |
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अध्याय 79: शुक्राचार्यद्वारा देवयानीको समझाना और देवयानीका असंतोष |
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अध्याय 80: शुक्राचार्यका वृषपर्वाको फटकारना तथा उसे छोड़कर जानेके लिये उद्यत होना और वृषपर्वाके आदेशसे शर्मि ष्ठाका देवयानीकी दासी बनकर शुक्राचार्य तथा देवयानीको संतुष्ट करना |
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अध्याय 81: सखियोंसहित देवयानी और शर्मि ष्ठाका वन-विहार, राजा ययातिका आगमन, देवयानीकी उनके साथ बातचीत तथा विवाह |
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अध्याय 82: ययातिसे देवयानीको पुत्र-प्राप्ति; ययाति और शर्मि ष्ठाका एकान्त मिलन और उनसे एक पुत्रका जन्म |
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अध्याय 83: देवयानी और शर्मि ष्ठाका संवाद, ययातिसे शर्मि ष्ठाके पुत्र होनेकी बात जानकर देवयानीका रूठकर पिताके पास जाना, शुक्राचार्यका ययातिको बूढ़े होनेका शाप देना |
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अध्याय 84: ययातिका अपने पुत्र यदु, तुर्वसु, द्रुह्यु और अनुसे अपनी युवावस्था देकर वृद्धावस्था लेनेके लिये आग्रह और उनके अस्वीकार करनेपर उन्हें शाप देना, फिर अपने पुत्र पूरुको जरावस्था देकर उनकी युवावस्था लेना तथा उन्हें वर प्रदान करना |
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अध्याय 85: राजा ययातिका विषय सेवन और वैराग्य तथा पूरुका राज्याभिषेक करके वनमें जाना |
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अध्याय 86: वनमें राजा ययातिकी तपस्या और उन्हें स्वर्गलोककी प्राप्ति |
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अध्याय 87: इन्द्रके पूछनेपर ययातिका अपने पुत्र पूरुको दिये हुए उपदेशकी चर्चा करना |
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अध्याय 88: ययातिका स्वर्गसे पतन और अष्टकका उनसे प्रश्न करना |
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अध्याय 89: ययाति और अष्टकका संवाद |
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अध्याय 90: अष्टक और ययातिका संवाद |
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अध्याय 91: ययाति और अष्टकका आश्रमधर्मसम्बन्धी संवाद |
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अध्याय 92: अष्टक-ययाति-संवाद और ययातिद्वारा दूसरोंके दिये हुए पुण्यदानको अस्वीकार करना |
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अध्याय 93: राजा ययातिका वसुमान् और शिबिके प्रतिग्रहको अस्वीकार करना तथा अष्टक आदि चारों राजाओंके साथ स्वर्गमें जाना |
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अध्याय 94: पूरुवंशका वर्णन |
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अध्याय 95: दक्ष प्रजापतिसे लेकर पूरुवंश, भरतवंश एवं पाण्डुवंशकी परम्पराका वर्णन |
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अध्याय 96: महाभिषको ब्रह्माजीका शाप तथा शापग्रस्त वसुओंके साथ गंगाकी बातचीत |
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अध्याय 97: राजा प्रतीपका गंगाको पुत्रवधूके रूपमें स्वीकार करना और शान्तनुका जन्म, राज्याभिषेक तथा गंगासे मिलना |
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अध्याय 98: शान्तनु और गंगाका कुछ शर्तोंके साथ सम्बन्ध, वसुओंका जन्म और शापसे उद्धार तथा भीष्मकी उत्पत्ति |
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अध्याय 99: महर्षि वसिष्ठद्वारा वसुओंको शाप प्राप्त होनेकी कथा |
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अध्याय 100: शान्तनुके रूप, गुण और सदाचारकी प्रशंसा, गंगाजीके द्वारा सुशिक्षित पुत्रकी प्राप्ति तथा देवव्रतकी भीष्म-प्रतिज्ञा |
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अध्याय 101: सत्यवतीके गर्भसे चित्रांगद और विचित्रवीर्यकी उत्पत्ति, शान्तनु और चित्रांगदका निधन तथा विचित्रवीर्यका राज्याभिषेक |
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अध्याय 102: भीष्मके द्वारा स्वयंवरसे काशिराजकी कन्याओंका हरण, युद्धमें सब राजाओं तथा शाल्वकी पराजय, अम्बिका और अम्बालिकाके साथ विचित्रवीर्यका विवाह तथा निधन |
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अध्याय 103: सत्यवतीका भीष्मसे राज्यग्रहण और संतानोत्पादनके लिये आग्रह तथा भीष्मके द्वारा अपनी प्रतिज्ञा बतलाते हुए उसकी अस्वीकृति |
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अध्याय 104: भीष्मकी सम्मतिसे सत्यवतीद्वारा व्यासका आवाहन और व्यासजीका माताकी आज्ञासे कुरुवंशकी वृद्धिके लिये विचित्रवीर्यकी पत्नियोंके गर्भसे संतानोत्पादन करनेकी स्वीकृति देना |
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अध्याय 105: व्यासजीके द्वारा विचित्रवीर्यके क्षेत्रसे धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुरकी उत्पत्ति |
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अध्याय 106: महर्षि माण्डव्यका शूलीपर चढ़ाया जाना |
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अध्याय 107: माण्डव्यका धर्मराजको शाप देना |
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अध्याय 108: धृतराष्ट्र आदिके जन्म तथा भीष्मजीके धर्मपूर्ण शासनसे कुरुदेशकी सर्वांगीण उन्नतिका दिग्दर्शन |
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अध्याय 109: राजा धृतराष्ट्रका विवाह |
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अध्याय 110: कुन्तीको दुर्वासासे मन्त्रकी प्राप्ति, सूर्यदेवका आवाहन तथा उनके संयोगसे कर्णका जन्म एवं कर्णके द्वारा इन्द्रको कवच और कुण्डलोंका दान |
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अध्याय 111: कुन्तीद्वारा स्वयंवरमें पाण्डुका वरण और उनके साथ विवाह |
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अध्याय 112: माद्रीके साथ पाण्डुका विवाह तथा राजा पाण्डुकी दिग्विजय |
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अध्याय 113: राजा पाण्डुका पत्नियोंसहित वनमें निवास तथा विदुरका विवाह |
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अध्याय 114: धृतराष्ट्रके गान्धारीसे एक सौ पुत्र तथा एक कन्याकी तथा सेवा करनेवाली वैश्यजातीय युवतीसे युयुत्सु नामक एक पुत्रकी उत्पत्ति |
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अध्याय 115: दुःशलाके जन्मकी कथा |
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अध्याय 116: धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंकी नामावली |
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अध्याय 117: राजा पाण्डुके द्वारा मृगरूपधारी मुनिका वध तथा उनसे शापकी प्राप्ति |
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अध्याय 118: पाण्डुका अनुताप, संन्यास लेनेका निश्चय तथा पत्नियोंके अनुरोधसे वानप्रस्थ- आश्रममें प्रवेश |
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अध्याय 119: पाण्डुका कुन्तीको पुत्र-प्राप्तिके लिये प्रयत्न करनेका आदेश |
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अध्याय 120: कुन्तीका पाण्डुको व्युषिताश्वके मृत शरीरसे उसकी पतिव्रता पत्नी भद्राके द्वारा पुत्र-प्राप्तिका कथन |
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अध्याय 121: पाण्डुका कुन्तीको समझाना और कुन्तीका पतिकी आज्ञासे पुत्रोत्पत्तिके लिये धर्मदेवताका आवाहन करनेके लिये उद्यत होना |
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अध्याय 122: युधिष्ठिर, भीम और अर्जुनकी उत्पत्ति |
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अध्याय 123: नकुल और सहदेवकी उत्पत्ति तथा पाण्डु-पुत्रोंके नामकरण-संस्कार |
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अध्याय 124: राजा पाण्डुकी मृत्यु और माद्रीका उनके साथ चितारोहण |
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अध्याय 125: ऋषियोंका कुन्ती और पाण्डवोंको लेकर हस्तिनापुर जाना और उन्हें भीष्म आदिके हाथों सौंपना |
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अध्याय 126: पाण्डु और माद्रीकी अस्थियोंका दाह-संस्कार तथा भाई बन्धुओंद्वारा उनके लिये जलांजलिदान |
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अध्याय 127: पाण्डवों तथा धृतराष्ट्रपुत्रोंकी बालक्रीड़ा, दुर्योधनका भीमसेनको विष खिलाना तथा गंगामें ढकेलना और भीमका नागलोकमें पहुँचकर आठ कुण्डोंके दिव्य रसका पान करना |
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अध्याय 128: भीमसेनके न आनेसे कुन्ती आदिकी चिन्ता, नागलोकसे भीमसेनका आगमन तथा उनके प्रति दुर्योधनकी कुचेष्टा |
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अध्याय 129: कृपाचार्य, द्रोण और अश्वत्थामाकी उत्पत्ति तथा द्रोणको परशुरामजीसे अस्त्र- शस्त्रकी प्राप्तिकी कथा |
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अध्याय 130: द्रोणका द्रुपदसे तिरस्कृत हो हस्तिनापुरमें आना, राजकुमारोंसे उनकी भेंट, उनकी बीटा और अँगूठीको कुएँमेंसे निकालना एवं भीष्मका उन्हें अपने यहाँ सम्मानपूर्वक रखना |
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अध्याय 131: द्रोणाचार्यद्वारा राजकुमारोंकी शिक्षा, एकलव्यकी गुरुभक्ति तथा आचार्यद्वारा शिष्योंकी परीक्षा |
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अध्याय 132: अर्जुनके द्वारा लक्ष्यवेध, द्रोणका ग्राहसे छुटकारा और अर्जुनको ब्रह्मशिर नामक अस्त्रकी प्राप्ति |
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अध्याय 133: राजकुमारोंका रंगभूमिमें अस्त्र-कौशल दिखाना |
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अध्याय 134: भीमसेन, दुर्योधन तथा अर्जुनके द्वारा अस्त्र-कौशलका प्रदर्शन |
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अध्याय 135: कर्णका रंगभूमिमें प्रवेश तथा राज्याभिषेक |
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अध्याय 136: भीमसेनके द्वारा कर्णका तिरस्कार और दुर्योधनद्वारा उसका सम्मान |
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अध्याय 137: द्रोणका शिष्योंद्वारा द्रुपदपर आक्रमण करवाना, अर्जुनका द्रुपदको बंदी बनाकर लाना और द्रोणद्वारा द्रुपदको आधा राज्य देकर मुक्त कर देना |
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अध्याय 138: युधिष्ठिरका युवराजपदपर अभिषेक, पाण्डवोंके शौर्य, कीर्ति और बलके विस्तारसे धृतराष्ट्रको चिन्ता |
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अध्याय 139: कणिकका धृतराष्ट्रको कूटनीतिका उपदेश |
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उपपर्व: जतुगृह पर्व |
अध्याय 140: पाण्डवोंके प्रति पुरवासियोंका अनुराग देखकर दुर्योधनकी चिन्ता |
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अध्याय 141: दुर्योधनका धृतराष्ट्रसे पाण्डवोंको वारणावत भेज देनेका प्रस्ताव |
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अध्याय 142: धृतराष्ट्रके आदेशसे पाण्डवोंकी वारणावत-यात्रा |
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अध्याय 143: दुर्योधनके आदेशसे पुरोचनका वारणावत नगरमें लाक्षागृह बनाना |
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अध्याय 144: पाण्डवोंकी वारणावत-यात्रा तथा उनको विदुरका गुप्त उपदेश |
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अध्याय 145: वारणावतमें पाण्डवोंका स्वागत, पुरोचनका सत्कारपूर्वक उन्हें ठहराना, लाक्षागृहमें निवासकी व्यवस्था और युधिष्ठिर एवं भीमसेनकी बातचीत |
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अध्याय 146: विदुरके भेजे हुए खनकद्वारा लाक्षागृहमें सुरंगका निर्माण |
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अध्याय 147: लाक्षागृहका दाह और पाण्डवोंका सुरंगके रास्ते निकल जाना |
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अध्याय 148: विदुरजीके भेजे हुए नाविकका पाण्डवोंको गंगाजीके पार उतारना |
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अध्याय 149: धृतराष्ट्र आदिके द्वारा पाण्डवोंके लिये शोकप्रकाश एवं जलांजलिदान तथा पाण्डवोंका वनमें प्रवेश |
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अध्याय 150: माता कुन्तीके लिये भीमसेनका जल ले आना, माता और भाइयोंको भूमिपर सोये देखकर भीमका विषाद एवं दुर्योधनके प्रति उनका क्रोध |
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उपपर्व: हिडिम्बवध पर्व |
अध्याय 151: हिडिम्बके भेजनेसे हिडिम्बा राक्षसीका पाण्डवोंके पास आना और भीमसेनसे उसका वार्तालाप |
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अध्याय 152: हिडिम्बका आना, हिडिम्बाका उससे भयभीत होना और भीम तथा हिडिम्बासुरका युद्ध |
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अध्याय 153: हिडिम्बाका कुन्ती आदिसे अपना मनोभाव प्रकट करना तथा भीमसेनके द्वारा हिडिम्बा-सुरका वध |
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अध्याय 154: युधिष्ठिरका भीमसेनको हिडिम्बाके वधसे रोकना, हिडिम्बाकी भीमसेनके लिये प्रार्थना, भीमसेन और हिडिम्बाका मिलन तथा घटोत्कचकी उत्पत्ति |
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अध्याय 155: पाण्डवोंको व्यासजीका दर्शन और उनका एकचक्रा नगरीमें प्रवेश |
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उपपर्व: बकवध पर्व |
अध्याय 156: ब्राह्मणपरिवारका कष्ट दूर करनेके लिये कुन्तीकी भीमसेनसे बातचीत तथा ब्राह्मणके चिन्तापूर्ण उद् गार |
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अध्याय 157: ब्राह्मणीका स्वयं मरनेके लिये उद्यत होकर पतिसे जीवित रहनेके लिये अनुरोध करना |
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अध्याय 158: ब्राह्मण-कन्याके त्याग और विवेकपूर्ण वचन तथा कुन्तीका उन सबके पास जाना |
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अध्याय 159: कुन्तीके पूछनेपर ब्राह्मणका उनसे अपने दुःखका कारण बताना |
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अध्याय 160: कुन्ती और ब्राह्मणकी बातचीत |
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अध्याय 161: भीमसेनको राक्षसके पास भेजनेके विषयमें युधिष्ठिर और कुन्तीकी बातचीत |
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अध्याय 162: भीमसेनका भोजन-सामग्री लेकर बकासुरके पास जाना और स्वयं भोजन करना तथा युद्ध करके उसे मार गिराना |
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अध्याय 163: बकासुरके वधसे राक्षसोंका भयभीत होकर पलायन और नगरनिवासियोंकी प्रसन्नता |
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उपपर्व: चैत्ररथ पर्व |
अध्याय 164: पाण्डवोंका एक ब्राह्मणसे विचित्र कथाएँ सुनना |
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अध्याय 165: द्रोणके द्वारा द्रुपदके अपमानित होनेका वृत्तान्त |
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अध्याय 166: द्रुपदके यज्ञसे धृष्टद्युम्न और द्रौपदीकी उत्पत्ति |
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अध्याय 167: कुन्तीकी अपने पुत्रोंसे पूछकर पंचालदेशमें जानेकी तैयारी |
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अध्याय 168: व्यासजीका पाण्डवोंको द्रौपदीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त सुनाना |
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अध्याय 169: पाण्डवोंकी पंचाल-यात्रा और अर्जुनके द्वारा चित्ररथ गन्धर्वकी पराजय एवं उन दोनोंकी मित्रता |
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अध्याय 170: सूर्यकन्या तपतीको देखकर राजा संवरणका मोहित होना |
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अध्याय 171: तपती और संवरणकी बातचीत |
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अध्याय 172: वसिष्ठजीकी सहायतासे राजा संवरणको तपतीकी प्राप्ति |
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अध्याय 173: गन्धर्वका वसिष्ठजीकी महत्ता बताते हुए किसी श्रेष्ठ ब्राह्मणको पुरोहित बनानेके लिये आग्रह करना |
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अध्याय 174: वसिष्ठजीके अद्भतु क्षमा-बलके आगे विश्वामित्रजीका पराभव |
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अध्याय 175: शक्तिके शापसे कल्माषपादका राक्षस होना, विश्वामित्रकी प्रेरणासे राक्षसद्वारा वसिष्ठके पुत्रोंका भक्षण और वसिष्ठका शोक |
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अध्याय 176: कल्माषपादका शापसे उद्धार और वसिष्ठजीके द्वारा उन्हें अश्मक नामक पुत्रकी प्राप्ति |
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अध्याय 177: शक्तिपुत्र पराशरका जन्म और पिताकी मृत्युका हाल सुनकर कुपित हुए पराशरको शान्त करनेके लिये वसिष्ठजीका उन्हें और्वोपाख्यान सुनाना |
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अध्याय 178: पितरोंद्वारा और्कके क्रोधका निवारण |
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अध्याय 179: और्व और पितरोंकी बातचीत तथा और्वका अपनी क्रोधाग्निको बडवानलरूपसे समुद्रमें त्यागना |
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अध्याय 180: पुलस्त्य आदि महर्षि योंके समझानेसे पराशरजीके द्वारा राक्षससत्रकी समाप्ति |
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अध्याय 181: राजा कल्माषपादको ब्राह्मणी आंगिरसीका शाप |
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अध्याय 182: पाण्डवोंका धौम्यको अपना पुरोहित बनाना |
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उपपर्व: स्वयंवर पर्व |
अध्याय 183: पाण्डवोंकी पंचालयात्रा और मार्गमें ब्राह्मणोंसे बातचीत |
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अध्याय 184: पाण्डवोंका द्रुपदकी राजधानीमें जाकर कुम्हारके यहाँ रहना, स्वयंवरसभाका वर्णन तथा धृष्टद्युम्नकी घोषणा |
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अध्याय 185: धृष्टद्युम्नका द्रौपदीको स्वयंवरमें आये हुए राजाओंका परिचय देना |
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अध्याय 186: राजाओंका लक्ष्यवेधके लिये उद्योग और असफल होना |
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अध्याय 187: अर्जुनका लक्ष्यवेध करके द्रौपदीको प्राप्त करना |
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अध्याय 188: द्रुपदको मारनेके लिये उद्यत हुए राजाओंका सामना करनेके लिये भीम और अर्जुनका उद्यत होना और उनके विषयमें भगवान् श्रीकृष्णका बलरामजीसे वार्तालाप |
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अध्याय 189: अर्जुन और भीमसेनके द्वारा कर्ण तथा शल्यकी पराजय और द्रौपदीसहित भीम- अर्जुनका अपने डेरेपर जाना |
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अध्याय 190: कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिरकी बातचीत, पाँचों पाण्डवोंका द्रौपदीके साथ विवाहका विचार तथा बलराम और श्रीकृष्णकी पाण्डवोंसे भेंट |
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अध्याय 191: धृष्टद्युम्नका गुप्तरूपसे वहाँका सब हाल देखकर राजा द्रुपदके पास आना तथा द्रौपदीके विषयमें द्रुपदका प्रश्न |
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उपपर्व: वैवाहिक पर्व |
अध्याय 192: धृष्टद्युम्नके द्वारा द्रौपदी तथा पाण्डवोंका हाल सुनकर राजा द्रुपदका उनके पास पुरोहितको भेजना तथा पुरोहित और युधिष्ठिरकी बातचीत |
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अध्याय 193: पाण्डवों और कुन्तीका द्रुपदके घरमें जाकर सम्मानित होना और राजा द्रुपदद्वारा पाण्डवोंके शील-स्वभावकी परीक्षा |
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अध्याय 194: द्रुपद और युधिष्ठिरकी बातचीत तथा व्यासजीका आगमन |
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अध्याय 195: व्यासजीके सामने द्रौपदीका पाँच पुरुषोंसे विवाह होनेके विषयमें द्रुपद, धृष्टद्युम्न और युधिष्ठिरका अपने-अपने विचार व्यक्त करना |
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अध्याय 196: व्यासजीका द्रुपदको पाण्डवों तथा द्रौपदीके पूर्वजन्मकी कथा सुनाकर दिव्य दृष्टि देना और द्रुपदका उनके दिव्य रूपोंकी झाँकी करना |
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अध्याय 197: द्रौपदीका पाँचों पाण्डवोंके साथ विवाह |
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अध्याय 198: कुन्तीका द्रौपदीको उपदेश और आशीर्वाद तथा भगवान् श्रीकृष्णका पाण्डवोंके लिये उपहार भेजना |
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उपपर्व: विदुरागमनराज्यलम्भ पर्व |
अध्याय 199: पाण्डवोंके विवाहसे दुर्योधन आदिकी चिन्ता, धृतराष्ट्रका पाण्डवोंके प्रति प्रेमका दिखावा और दुर्योधनकी कुमन्त्रणा |
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अध्याय 200: धृतराष्ट्र और दुर्योधनकी बातचीत, शत्रुओंको वशमें करनेके उपाय |
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अध्याय 201: पाण्डवोंको पराक्रमसे दबानेके लिये कर्णकी सम्मति |
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अध्याय 202: भीष्मकी दुर्योधनसे पाण्डवोंको आधा राज्य देनेकी सलाह |
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अध्याय 203: द्रोणाचार्यकी पाण्डवोंको उपहार भेजने और बुलानेकी सम्मति तथा कर्णके द्वारा उनकी सम्मतिका विरोध करनेपर द्रोणाचार्यकी फटकार |
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अध्याय 204: विदुरजीकी सम्मति—द्रोण और भीष्मके वचनोंका ही समर्थन |
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अध्याय 205: धृतराष्ट्रकी आज्ञासे विदुरका द्रुपदके यहाँ जाना और पाण्डवोंको हस्तिनापुर भेजनेका प्रस्ताव करना |
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अध्याय 206: पाण्डवोंका हस्तिनापुरमें आना और आधा राज्य पाकर इन्द्रप्रस्थ नगरका निर्माण करना एवं भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजीका द्वारकाके लिये प्रस्थान |
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अध्याय 207: पाण्डवोंके यहाँ नारदजीका आगमन और उनमें फूट न हो, इसके लिये कुछ नियम बनानेके लिये प्रेरणा करके सुन्द और उपसुन्दकी कथाको प्रस्तावित करना |
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अध्याय 208: सुन्द-उपसुन्दकी तपस्या, ब्रह्माजीके द्वारा उन्हें वर प्राप्त होना और दैत्योंके यहाँ आनन्दोत्सव |
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अध्याय 209: सुन्द और उपसुन्दद्वारा क्रूरतापूर्ण कर्मोंसे त्रिलोकीपर विजय प्राप्त करना |
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अध्याय 210: तिलोत्तमाकी उत्पत्ति, उसके रूपका आकर्षण तथा सुन्दोपसुन्दको मोहित करनेके लिये उसका प्रस्थान |
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अध्याय 211: तिलोत्तमापर मोहित होकर सुन्द-उपसुन्दका आपसमें लड़ना और मारा जाना एवं तिलोत्तमाको ब्रह्माजीद्वारा वरप्राप्ति तथा पाण्डवोंका द्रौपदीके विषयमें नियम- निर्धारण |
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उपपर्व: अर्जुनवनवास पर्व |
अध्याय 212: अर्जुनके द्वारा ब्राह्मणके गोधनकी रक्षाके लिये नियमभंग और वनकी ओर प्रस्थान |
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अध्याय 213: अर्जुनका गंगाद्वारमें ठहरना और वहाँ उनका उलूपीके साथ मिलन |
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अध्याय 214: अर्जुनका पूर्वदिशाके तीर्थोंमें भ्रमण करते हुए मणिपूरमें जाकर चित्रांगदाका पाणिग्रहण करके उसके गर्भसे एक पुत्र उत्पन्न करना |
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अध्याय 215: अर्जुनके द्वारा वर्गा अप्सराका ग्राहयोनिसे उद्धार तथा वर्गाकी आत्मकथाका आरम्भ |
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अध्याय 216: वर्गाकी प्रार्थनासे अर्जुनका शेष चारों अप्सराओंको भी शापमुक्त करके मणिपूर जाना और चित्रांगदासे मिलकर गोकर्णतीर्थको प्रस्थान करना |
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अध्याय 217: अर्जुनका प्रभासतीर्थमें श्रीकृष्णसे मिलना और उन्हींके साथ उनका रैवतक पर्वत एवं द्वारकापुरीमें आना |
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उपपर्व: सुभद्राहरण पर्व |
अध्याय 218: रैवतक पर्वतके उत्सवमें अर्जुनका सुभद्रापर आसक्त होना और श्रीकृष्ण तथा युधिष्ठिरकी अनुमतिसे उसे हर ले जानेका निश्चय करना |
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अध्याय 219: यादवोंकी युद्धके लिये तैयारी और अर्जुनके प्रति बलरामजीके क्रोधपूर्ण उद् गार |
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उपपर्व: हरणाहरण पर्व |
अध्याय 220: द्वारकामें अर्जुन और सुभद्राका विवाह, अर्जुनके इन्द्रप्रस्थ पहुँचनेपर श्रीकृष्ण आदिका दहेज लेकर वहाँ जाना, द्रौपदीके पुत्र एवं अभिमन्युके जन्म, संस्कार और शिक्षा |
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उपपर्व: खाण्डवदाह पर्व |
अध्याय 221: युधिष्ठिरके राज्यकी विशेषता, कृष्ण और अर्जुनका खाण्डववनमें जाना तथा उन दोनोंके पास ब्राह्मणवेषधारी अग्निदेवका आगमन |
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अध्याय 222: अग्निदेवका खाण्डववनको जलानेके लिये श्रीकृष्ण और अर्जुनसे सहायताकी याचना करना, अग्निदेव उस वनको क्यों जलाना चाहते थे, इसे बतानेके प्रसंगमें राजा श्वेतकिकी कथा |
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अध्याय 223: अर्जुनका अग्निकी प्रार्थना स्वीकार करके उनसे दिव्य धनुष एवं रथ आदि माँगना |
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अध्याय 224: अग्निदेवका अर्जुन और श्रीकृष्णको दिव्य धनुष, अक्षय तरकस, दिव्य रथ और चक्र आदि प्रदान करना तथा उन दोनोंकी सहायतासे खाण्डववनको जलाना |
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अध्याय 225: खाण्डववनमें जलते हुए प्राणियोंकी दुर्दशा और इन्द्रके द्वारा जल बरसाकर आग बुझानेकी चेष्टा |
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अध्याय 226: देवताओं आदिके साथ श्रीकृष्ण और अर्जुनका युद्ध |
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उपपर्व: मयदर्शन पर्व |
अध्याय 227: देवताओंकी पराजय, खाण्डववनका विनाश और मयासुरकी रक्षा |
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अध्याय 228: शार्ङ्गकोपाख्यान—मन्दपाल मुनिके द्वारा जरिता-शार्ङ्गि कासे पुत्रोंकी उत्पत्ति और उन्हें बचानेके लिये मुनिका अग्निदेवकी स्तुति करना |
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अध्याय 229: जरिताका अपने बच्चोंकी रक्षाके लिये चिन्तित होकर विलाप करना |
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अध्याय 230: जरिता और उसके बच्चोंका संवाद |
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अध्याय 231: शार्ङ्गकोंके स्तवनसे प्रसन्न होकर अग्निदेवका उन्हें अभय देना |
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अध्याय 232: मन्दपालका अपने बाल-बच्चोंसे मिलना |
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अध्याय 233: इन्द्रदेवका श्रीकृष्ण और अर्जुनको वरदान तथा श्रीकृष्ण, अर्जुन और मयासुरका अग्निसे विदा लेकर एक साथ यमुनातटपर बैठना |
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