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श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  » 
 
 
 
अश्वमेध पर्वअनुगीता पर्ववैष्णवधर्म पर्व
 
 
 
 
उपपर्व: अश्वमेध पर्व
अध्याय 1:  युधिष्ठिरका शोकमग्न होकर गिरना और धृतराष्ट्रका उन्हें समझाना
 
अध्याय 2:  श्रीकृष्ण और व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाना
 
अध्याय 3:  व्यासजीका युधिष्ठिरको अश्वमेध यज्ञके लिये धनकी प्राप्तिका उपाय बताते हुए संवर्त और मरुत्तका प्रसंग उपस्थित करना
 
अध्याय 4:  मरुत्तके पूर्वजोंका परिचय देते हुए व्यासजीके द्वारा उनके गुण, प्रभाव एवं यज्ञका दिग्दर्शन
 
अध्याय 5:  इन्द्रकी प्रेरणासे बृहस्पतिजीका मनुष्यको यज्ञ न करानेकी प्रतिज्ञा करना
 
अध्याय 6:  नारदजीकी आज्ञासे मरुत्तका उनकी बतायी हुई युक्तिके अनुसार संवर्तसे भेंट करना
 
अध्याय 7:  संवर्त और मरुत्तकी बातचीत, मरुत्तके विशेष आग्रहपर संवर्तका यज्ञ करानेकी स्वीकृति देना
 
अध्याय 8:  संवर्तका मरुत्तको सुवर्णकी प्राप्तिके लिये महादेवजीकी नाममयी स्तुतिका उपदेश और धनकी प्राप्ति तथा मरुत्तकी सम्पत्तिसे बृहस्पतिका चिन्तित होना
 
अध्याय 9:  बृहस्पतिका इन्द्रसे अपनी चिन्ताका कारण बताना, इन्द्रकी आज्ञासे अग्निदेवका मरुत्तके पास उनका संदेश लेकर जाना और संवर्तके भयसे पुनः लौटकर इन्द्रसे ब्रह्मबलकी श्रेष्ठता बताना
 
अध्याय 10:  इन्द्रका गन्धर्वराजको भेजकर मरुत्तको भय दिखाना और संवर्तका मन्त्र-बलसे इन्द्रसहित सब देवताओंको बुलाकर मरुत्तका यज्ञ पूर्ण करना
 
अध्याय 11:  श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको इन्द्रद्वारा शरीरस्थ वृत्रासुरका संहार करनेका इतिहास सुनाकर समझाना
 
अध्याय 12:  भगवान् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको मनपर विजय करनेके लिये आदेश
 
अध्याय 13:  श्रीकृष्णद्वारा ममताके त्यागका महत्त्व, काम-गीताका उल्लेख और युधिष्ठिरको यज्ञके लिये प्रेरणा करना
 
अध्याय 14:  ऋषियोंका अन्तर्धान होना, भीष्म आदिका श्राद्ध करके युधिष्ठिर आदिका हस्तिनापुरमें जाना तथा युधिष्ठिरके धर्म-राज्यका वर्णन
 
अध्याय 15:  भगवान् श्रीकृष्णका अर्जुनसे द्वारका जानेका प्रस्ताव करना
 
 
 
उपपर्व: अनुगीता पर्व
अध्याय 16:  अर्जुनका श्रीकृष्णसे गीताका विषय पूछना और श्रीकृष्णका अर्जुनसे सिद्ध, महर्षि एवं काश्यपका संवाद सुनाना
 
अध्याय 17:  काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन
 
अध्याय 18:  जीवके गर्भ-प्रवेश, आचार-धर्म, कर्म-फलकी अनिवार्यता तथा संसारसे तरनेके उपायका वर्णन
 
अध्याय 19:  गुरु-शिष्यके संवादमें मोक्षप्राप्तिके उपायका वर्णन
 
अध्याय 20:  ब्राह्मणगीता—एक ब्राह्मणका अपनी पत्नीसे ज्ञानयज्ञका उपदेश करना
 
अध्याय 21:  दस होताओंसे सम्पन्न होनेवाले यज्ञका वर्णन तथा मन और वाणीकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन
 
अध्याय 22:  मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन
 
अध्याय 23:  प्राण, अपान आदिका संवाद और ब्रह्माजीका सबकी श्रेष्ठता बतलाना
 
अध्याय 24:  देवर्षि नारद और देवमतका संवाद एवं उदानके उत्कृष्ट रूपका वर्णन
 
अध्याय 25:  चातुर्होम यज्ञका वर्णन
 
अध्याय 26:  अन्तर्यामीकी प्रधानता
 
अध्याय 27:  अध्यात्मविषयक महान् वनका वर्णन
 
अध्याय 28:  ज्ञानी पुरुषकी स्थिति तथा अध्वर्यु और यतिका संवाद
 
अध्याय 29:  परशुरामजीके द्वारा क्षत्रिय-कुलका संहार
 
अध्याय 30:  अलर्कके ध्यान-योगका उदाहरण देकर पितामहोंका परशुरामजीको समझाना और परशुरामजीका तपस्याके द्वारा सिद्धि प्राप्त करना
 
अध्याय 31:  राजा अम्बरीषकी गायी हुई आध्यात्मिक स्वराज्यविषयक गाथा
 
अध्याय 32:  ब्राह्मण-रूपधारी धर्म और जनकका ममत्वत्याग विषयक संवाद
 
अध्याय 33:  ब्राह्मणका पत्नीके प्रति अपने ज्ञाननिष्ठ स्वरूपका परिचय देना
 
अध्याय 34:  भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा ब्राह्मण, ब्राह्मणी और क्षेत्रज्ञका रहस्य बतलाते हुए ब्राह्मण-गीताका उपसंहार
 
अध्याय 35:  श्रीकृष्णके द्वारा अर्जुनसे मोक्ष-धर्मका वर्णन—गुरु और शिष्यके संवादमें ब्रह्मा और महर्षि योंके प्रश्नोत्तर
 
अध्याय 36:  ब्रह्माजीके द्वारा तमोगुणका, उसके कार्यका और फलका वर्णन
 
अध्याय 37:  रजोगुणके कार्यका वर्णन और उसके जाननेका फल
 
अध्याय 38:  सत्त्वगुणके कार्यका वर्णन और उसके जाननेका फल
 
अध्याय 39:  सत्त्व आदि गुणोंका और प्रकृतिके नामोंका वर्णन
 
अध्याय 40:  महत्तत्त्वके नाम और परमात्मतत्त्वको जाननेकी महिमा
 
अध्याय 41:  अहंकारकी उत्पत्ति और उसके स्वरूपका वर्णन
 
अध्याय 42:  अहंकारसे पंच महाभूतों और इन्द्रियोंकी सृष्टि, अध्यात्म, अधिभूत और अधिदैवतका वर्णन तथा निवृत्तिमार्गका उपदेश
 
अध्याय 43:  चराचर प्राणियोंके अधिपतियोंका, धर्म आदिके लक्षणोंका और विषयोंकी अनुभूतिके साधनोंका वर्णन तथा क्षेत्रज्ञकी विलक्षणता
 
अध्याय 44:  सब पदार्थोंके आदि-अन्तका और ज्ञानकी नित्यताका वर्णन
 
अध्याय 45:  देहरूपी कालचक्रका तथा गृहस्थ और ब्राह्मणके धर्मका कथन
 
अध्याय 46:  ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन
 
अध्याय 47:  मुक्तिके साधनोंका, देहरूपी वृक्षका तथा ज्ञान-खड्गसे उसे काटनेका वर्णन
 
अध्याय 48:  आत्मा और परमात्माके स्वरूपका विवेचन
 
अध्याय 49:  धर्मका निर्णय जाननेके लिये ऋषियोंका प्रश्न
 
अध्याय 50:  सत्त्व और पुरुषकी भिन्नता, बुद्धिमान् की प्रशंसा, पंचभूतोंके गुणोंका विस्तार और परमात्माकी श्रेष्ठताका वर्णन
 
अध्याय 51:  तपस्याका प्रभाव, आत्माका स्वरूप और उसके ज्ञानकी महिमा तथा अनुगीताका उपसंहार
 
अध्याय 52:  श्रीकृष्णका अर्जुनके साथ हस्तिनापुर जाना और वहाँ सबसे मिलकर युधिष्ठिरकी आज्ञा ले सुभद्राके साथ द्वारकाको प्रस्थान करना
 
अध्याय 53:  मार्गमें श्रीकृष्णसे कौरवोंके विनाशकी बात सुनकर उत्तंकमुनिका कुपित होना और श्रीकृष्णका उन्हें शान्त करना
 
अध्याय 54:  भगवान् श्रीकृष्णका उत्तंकसे अध्यात्मतत्त्वका वर्णन करना तथा दुर्योधनके अपराधको कौरवोंके विनाशका कारण बतलाना
 
अध्याय 55:  श्रीकृष्णका उत्तंक मुनिको विश्वरूपका दर्शन कराना और मरुदेशमें जल प्राप्त होनेका वरदान देना
 
अध्याय 56:  उत्तंककी गुरुभक्तिका वर्णन, गुरुपुत्रीके साथ उत्तंकका विवाह, गुरुपत्नीकी आज्ञासे दिव्यकुण्डल लानेके लिये उत्तंकका राजा सौदासके पास जाना
 
अध्याय 57:  उत्तंकका सौदाससे उनकी रानीके कुण्डल माँगना और सौदासके कहनेसे रानी मदयन्तीके पास जाना
 
अध्याय 58:  कुण्डल लेकर उत्तंकका लौटना, मार्गमें उन कुण्डलोंका अपहरण होना तथा इन्द्र और अग्निदेवकी कृपासे फिर उन्हें पाकर गुरुपत्नीको देना
 
अध्याय 59:  भगवान् श्रीकृष्णका द्वारकामें जाकर रैवतक पर्वतपर महोत्सवमें सम्मिलित होना और सबसे मिलना
 
अध्याय 60:  वसुदेवजीके पूछनेपर श्रीकृष्णका उन्हें महाभारत-युद्धका वृत्तान्त संक्षेपसे सुनाना
 
अध्याय 61:  श्रीकृष्णका सुभद्राके कहनेसे वसुदेवजीको अभिमन्युवधका वृत्तान्त सुनाना
 
अध्याय 62:  वसुदेव आदि यादवोंका अभिमन्युके निमित्त श्राद्ध करना तथा व्यासजीका उत्तरा और अर्जुनको समझाकर युधिष्ठिरको अश्वमेधयज्ञ करनेकी आज्ञा देना
 
अध्याय 63:  युधिष्ठिरका अपने भाइयोंके साथ परामर्श करके सबको साथ ले धन ले आनेके लिये प्रस्थान करना
 
अध्याय 64:  पाण्डवोंका हिमालयपर पहुँचकर वहाँ पड़ाव डालना और रातमें उपवासपूर्वक निवास करना
 
अध्याय 65:  ब्राह्मणोंकी आज्ञासे भगवान् शिव और उनके पार्षद आदिकी पूजा करके युधिष्ठिरका उस धनराशिको खुदवाकर अपने साथ ले जाना
 
अध्याय 66:  श्रीकृष्णका हस्तिनापुरमें आगमन और उत्तराके मृत बालकको जिलानेके लिये कुन्तीकी उनसे प्रार्थना
 
अध्याय 67:  परीक्षित् को जिलानेके लिये सुभद्राकी श्रीकृष्णसे प्रार्थना
 
अध्याय 68:  श्रीकृष्णका प्रसूतिकागृहमें प्रवेश, उत्तराका विलाप और अपने पुत्रको जीवित करनेके लिये प्रार्थना
 
अध्याय 69:  उत्तराका विलाप और भगवान् श्रीकृष्णका उसके मृत बालकको जीवन-दान देना
 
अध्याय 70:  श्रीकृष्णद्वारा राजा परीक्षित् का नामकरण तथा पाण्डवोंका हस्तिनापुरके समीप आगमन
 
अध्याय 71:  भगवान् श्रीकृष्ण और उनके साथियोंद्वारा पाण्डवोंका स्वागत, पाण्डवोंका नगरमें आकर सबसे मिलना और व्यासजी तथा श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको यज्ञके लिये आज्ञा देना
 
अध्याय 72:  व्यासजीकी आज्ञासे अश्वकी रक्षाके लिये अर्जुनकी, राज्य और नगरकी रक्षाके लिये भीमसेन और नकुलकी तथा कुटुम्ब-पालनके लिये सहदेवकी नियुक्ति
 
अध्याय 73:  सेनासहित अर्जुनके द्वारा अश्वका अनुसरण
 
अध्याय 74:  अर्जुनके द्वारा त्रिगर्तोंकी पराजय
 
अध्याय 75:  अर्जुनका प्राग्ज्योतिषपुरके राजा वज्रदत्तके साथ युद्ध
 
अध्याय 76:  अर्जुनके द्वारा वज्रदत्तकी पराजय
 
अध्याय 77:  अर्जुनका सैन्धवोंके साथ युद्ध
 
अध्याय 78:  अर्जुनका सैन्धवोंके साथ युद्ध और दुःशलाके अनुरोधसे उसकी समाप्ति
 
अध्याय 79:  अर्जुन और बभ्रुवाहनका युद्ध एवं अर्जुनकी मृत्यु
 
अध्याय 80:  चित्रांगदाका विलाप, मूर्च्छासे जगनेपर बभ्रुवाहनका शोकोद् गार और उलूपीके प्रयत्नसे संजीवनीमणिके द्वारा अर्जुनका पुनः जीवित होना
 
अध्याय 81:  उलूपीका अर्जुनके पूछनेपर अपने आगमनका कारण एवं अर्जुनकी पराजयका रहस्य बताना, पुत्र और पत्नीसे विदा लेकर पार्थका पुनः अश्वके पीछे जाना
 
अध्याय 82:  मगधराज मेघसन्धिकी पराजय
 
अध्याय 83:  दक्षिण और पश्चिम समुद्रके तटवर्ती देशोंमें होते हुए अश्वका द्वारका, पंचनद एवं गान्धार देशमें प्रवेश
 
अध्याय 84:  शकुनिपुत्रकी पराजय
 
अध्याय 85:  यज्ञभूमिकी तैयारी, नाना देशोंसे आये हुए राजाओंका यज्ञकी सजावट और आयोजन देखना
 
अध्याय 86:  राजा युधिष्ठिरका भीमसेनको राजाओंकी पूजा करनेका आदेश और श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे अर्जुनका संदेश कहना
 
अध्याय 87:  अर्जुनके विषयमें श्रीकृष्ण और युधिष्ठिरकी बातचीत, अर्जुनका हस्तिनापुरमें जाना तथा उलूपी और चित्रांगदाके साथ बभ्रुवाहनका आगमन
 
अध्याय 88:  उलूपी और चित्रांगदाके सहित बभ्रुवाहनका रत्न-आभूषण आदिसे सत्कार तथा अश्वमेधयज्ञका आरम्भ
 
अध्याय 89:  युधिष्ठिरका ब्राह्मणोंको दक्षिणा देना और राजाओंको भेंट देकर विदा करना
 
अध्याय 90:  युधिष्ठिरके यज्ञमें एक नेवलेका उञ्छ-वृत्तिधारी ब्राह्मणके द्वारा किये गये सेरभर सत्तूदानकी महिमा उस अश्वमेधयज्ञसे भी बढ़कर बतलाना
 
अध्याय 91:  हिं सामिश्रित यज्ञ और धर्मकी निन्दा
 
अध्याय 92:  महर्षि अगस्त्यके यज्ञकी कथा
 
 
 
उपपर्व: वैष्णवधर्म पर्व
अध्याय 93:  युधिष्ठिरका वैष्णवधर्मविषयक प्रश्न और भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा धर्मका तथा अपनी महिमाका वर्णन
 
अध्याय 94:  चारों वर्णोंके कर्म और उनके फलोंका वर्णन तथा धर्मकी वृद्धि और पापके क्षय होनेका उपाय
 
अध्याय 95:  व्यर्थ जन्म, दान और जीवनका वर्णन, सात्त्विक दानोंका लक्षण, दानका योग्य पात्र और ब्राह्मणकी महिमा
 
अध्याय 96:  बीज और योनिकी शुद्धि तथा गायत्री-जपकी और ब्राह्मणोंकी महिमाका और उनके तिरस्कारके भयानक फलका वर्णन
 
अध्याय 97:  यमलोकके मार्गका कष्ट और उससे बचनेके उपाय
 
अध्याय 98:  जल-दान, अन्न-दान और अतिथि-सत्कारका माहात्म्य
 
अध्याय 99:  भूमिदान, तिलदान और उत्तम ब्राह्मणकी महिमा
 
अध्याय 100:  अनेक प्रकारके दानोंकी महिमा
 
अध्याय 101:  पंचमहायज्ञ, विधिवत् स्नान और उसके अंगभूत कर्म, भगवान् के प्रिय पुष्प तथा भगवद् भक्तोंका वर्णन
 
अध्याय 102:  कपिला गौका तथा उसके दानका माहात्म्य और कपिला गौके दस भेद
 
अध्याय 103:  कपिला गौमें देवताओंके निवासस्थानका तथा उसके माहात्म्यका, अयोग्य ब्राह्मणका, नरकमें ले जानेवाले पापोंका तथा स्वर्गमें ले जानेवाले पुण्योंका वर्णन
 
अध्याय 104:  ब्रह्महत्याके समान पापका, अन्नदानकी प्रशंसाका, जिनका अन्न वर्जनीय है, उन पापियोंका, दानके फलका और धर्मकी प्रशंसाका वर्णन
 
अध्याय 105:  धर्म और शौचके लक्षण, संन्यासी और अतिथिके सत्कारके उपदेश, शिष्टाचार, दानपात्र ब्राह्मण तथा अन्नदानकी प्रशंसा
 
अध्याय 106:  भोजनकी विधि, गौओंको घास डालनेका विधान और तिलका माहात्म्य तथा ब्राह्मणके लिये तिल और गन्ना पेरनेका निषेध
 
अध्याय 107:  आपद्धर्म, श्रेष्ठ और निन्द्य ब्राह्मण, श्राद्धका उत्तमकाल और मानव-धर्म-सारका वर्णन
 
अध्याय 108:  अग्निके स्वरूपमें अग्निहोत्रकी विधि तथा उसके माहात्म्यका वर्णन
 
अध्याय 109:  चान्द्रायणव्रतकी विधि, प्रायश्चित्तरूपमें उसके करनेका विधान तथा महिमाका वर्णन
 
अध्याय 110:  सर्वहितकारी धर्मका वर्णन, द्वादशीव्रतका माहात्म्य तथा युधिष्ठिरके द्वारा भगवान् की स्तुति
 
अध्याय 111:  विषुवयोग और ग्रहण आदिमें दानकी महिमा, पीपलका महत्त्व, तीर्थभूत गुणोंकी प्रशंसा और उत्तम प्रायश्चित्त
 
अध्याय 112:  उत्तम और अधम ब्राह्मणोंके लक्षण, भक्त, गौ और पीपलकी महिमा
 
अध्याय 113:  भगवान् के उपदेशका उपसंहार और द्वारकागमन
 
 
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