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श्री महाभारत  »  पर्व 15: आश्रमवासिक पर्व  » 
 
 
 
आश्रमवास पर्वपुत्रदर्शन पर्वनारदागमन पर्व
 
 
 
 
उपपर्व: आश्रमवास पर्व
अध्याय 1:  भाइयोंसहित युधिष्ठिर तथा कुन्ती आदि देवियोंके द्वारा धृतराष्ट्र और गान्धारीकी सेवा
 
अध्याय 2:  पाण्डवोंका धृतराष्ट्र और गान्धारीके अनुकूल बर्ताव
 
अध्याय 3:  राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिरसे और कुन्ती आदिका दुःखी होना
 
अध्याय 4:  व्यासजीके समझानेसे युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको वनमें जानेके लिये अनुमति देना
 
अध्याय 5:  धृतराष्ट्रके द्वारा युधिष्ठिरको राजनीतिका उपदेश
 
अध्याय 6:  धृतराष्ट्रद्वारा राजनीतिका उपदेश
 
अध्याय 7:  युधिष्ठिरको धृतराष्ट्रके द्वारा राजनीतिका उपदेश
 
अध्याय 8:  धृतराष्ट्रका कुरुजांगल देशकी प्रजासे वनमें जानेके लिये आज्ञा माँगना
 
अध्याय 9:  प्रजाजनोंसे धृतराष्ट्रकी क्षमा-प्रार्थना
 
अध्याय 10:  प्रजाकी ओरसे साम्बनामक ब्राह्मणका धृतराष्ट्रको सान्त्वनापूर्ण उत्तर देना
 
अध्याय 11:  धृतराष्ट्रका विदुरके द्वारा युधिष्ठिरसे श्राद्धके लिये धन माँगना, अर्जुनकी सहमति और भीमसेनका विरोध
 
अध्याय 12:  अर्जुनका भीमको समझाना और युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको यथेष्ट धन देनेकी स्वीकृति प्रदान करना
 
अध्याय 13:  विदुरका धृतराष्ट्रको युधिष्ठिरका उदारतापूर्ण उत्तर सुनाना
 
अध्याय 14:  राजा धृतराष्ट्रके द्वारा मृत व्यक्तियोंके लिये श्राद्ध एवं विशाल दान-यज्ञका अनुष्ठान
 
अध्याय 15:  गान्धारीसहित धृतराष्ट्रका वनको प्रस्थान
 
अध्याय 16:  धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना
 
अध्याय 17:  कुन्तीका पाण्डवोंको उनके अनुरोधका उत्तर
 
अध्याय 18:  पाण्डवोंका स्त्रियोंसहित निराश लौटना, कुन्तीसहित गान्धारी और धृतराष्ट्र आदिका मार्गमें गंगा-तटपर निवास करना
 
अध्याय 19:  धृतराष्ट्र आदिका गंगातटपर निवास करके वहाँसे कुरुक्षेत्रमें जाना और शतयूपके आश्रमपर निवास करना
 
अध्याय 20:  नारदजीका प्राचीन राजर्षि योंकी तपः सिद्धिका दृष्टान्त देकर धृतराष्ट्रकी तपस्याविषयक श्रद्धाको बढ़ाना तथा शतयूपके पूछनेपर धृतराष्ट्रको मिलनेवाली गतिका भी वर्णन करना
 
अध्याय 21:  धृतराष्ट्र आदिके लिये पाण्डवों तथा पुरवासियोंकी चिन्ता
 
अध्याय 22:  माताके लिये पाण्डवोंकी चिन्ता, युधिष्ठिरकी वनमें जानेकी इच्छा, सहदेव और द्रौपदीका साथ जानेका उत्साह तथा रनिवास और सेनासहित युधिष्ठिरका वनको प्रस्थान
 
अध्याय 23:  सेनासहित पाण्डवोंकी यात्रा और उनका कुरुक्षेत्रमें पहुँचना
 
अध्याय 24:  पाण्डवों तथा पुरवासियोंका कुन्ती, गान्धारी और धृतराष्ट्रके दर्शन करना
 
अध्याय 25:  संजयका ऋषियोंसे पाण्डवों, उनकी पत्नियों तथा अन्यान्य स्त्रियोंका परिचय देना
 
अध्याय 26:  धृतराष्ट्र और युधिष्ठिरकी बातचीत तथा विदुरजीका युधिष्ठिरके शरीरमें प्रवेश
 
अध्याय 27:  युधिष्ठिर आदिका ऋषियोंके आश्रम देखना, कलश आदि बाँटना और धृतराष्ट्रके पास आकर बैठना, उन सबके पास अन्यान्य ऋषियोंसहित महर्षि व्यासका आगमन
 
अध्याय 28:  महर्षि व्यासका धृतराष्ट्रसे कुशल पूछते हुए विदुर और युधिष्ठिरकी धर्मरूपताका प्रतिपादन करना और उनसे अभीष्ट वस्तु माँगनेके लिये कहना
 
 
 
उपपर्व: पुत्रदर्शन पर्व
अध्याय 29:  धृतराष्ट्रका मृत बान्धवोंके शोकसे दुःखी होना तथा गान्धारी और कुन्तीका व्यासजीसे अपने मरे हुए पुत्रोंके दर्शन करनेका अनुरोध
 
अध्याय 30:  कुन्तीका कर्णके जन्मका गुप्त रहस्य बताना और व्यासजीका उन्हें सान्त्वना देना
 
अध्याय 31:  व्यासजीके द्वारा धृतराष्ट्र आदिके पूर्वजन्मका परिचय तथा उनके कहनेसे सब लोगोंका गंगा-तटपर जाना
 
अध्याय 32:  व्यासजीके प्रभावसे कुरुक्षेत्रके युद्धमें मारे गये कौरव-पाण्डववीरोंका गंगाजीके जलसे प्रकट होना
 
अध्याय 33:  परलोकसे आये हुए व्यक्तियोंका परस्पर राग-द्वेषसे रहित होकर मिलना और रात बीतनेपर अदृश्य हो जाना, व्यासजीकी आज्ञासे विधवा क्षत्राणियोंका गंगाजीमें गोता लगाकर अपने-अपने पतिके लोकको प्राप्त करना तथा इस पर्वके श्रवणकी महिमा
 
अध्याय 34:  मरे हुए पुरुषोंका अपने पूर्व शरीरसे ही यहाँ पुनः दर्शन देना कैसे सम्भव है, जनमेजयकी इस शंकाका वैशम्पायनद्वारा समाधान
 
अध्याय 35:  व्यासजीकी कृपासे जनमेजयको अपने पिताका दर्शन प्राप्त होना
 
अध्याय 36:  व्यासजीकी आज्ञासे धृतराष्ट्र आदिका पाण्डवोंको विदा करना और पाण्डवोंका सदलबल हस्तिनापुरमें आना
 
 
 
उपपर्व: नारदागमन पर्व
अध्याय 37:  नारदजीसे धृतराष्ट्र आदिके दावानलमें दग्ध हो जानेका हाल जानकर युधिष्ठिर आदिका शोक करना
 
अध्याय 38:  नारदजीके सम्मुख युधिष्ठिरका धृतराष्ट्र आदिके लौकिक अग्निमें दग्ध हो जानेका वर्णन करते हुए विलाप और अन्य पाण्डवोंका भी रोदन
 
अध्याय 39:  राजा युधिष्ठिरद्वारा धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती—इन तीनोंकी हड्डियोंको गंगामें प्रवाहित कराना तथा श्राद्धकर्म करना
 
 
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  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
   
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