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उपपर्व: सभाक्रिया पर्व |
अध्याय 1: भगवान् श्रीकृष्णकी आज्ञाके अनुसार मयासुरद्वारा सभाभवन बनानेकी तैयारी |
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अध्याय 2: श्रीकृष्णकी द्वारकायात्रा |
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अध्याय 3: मयासुरका भीमसेन और अर्जुनको गदा और शंख लाकर देना तथा उसके द्वारा अद्भतु सभाका निर्माण |
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अध्याय 4: मयद्वारा निर्मि त सभाभवनमें धर्मराज युधिष्ठिरका प्रवेश तथा सभामें स्थित महर्षि यों और राजाओं आदिका वर्णन |
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उपपर्व: लोकपालसभाख्यान पर्व |
अध्याय 5: नारदजीका युधिष्ठिरकी सभामें आगमन और प्रश्नके रूपमें युधिष्ठिरको शिक्षा देना |
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अध्याय 6: युधिष्ठिरकी दिव्य सभाओंके विषयमें जिज्ञासा |
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अध्याय 7: इन्द्रसभाका वर्णन |
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अध्याय 8: यमराजकी सभाका वर्णन |
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अध्याय 9: वरुणकी सभाका वर्णन |
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अध्याय 10: कुबेरकी सभाका वर्णन |
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अध्याय 11: ब्रह्माजीकी सभाका वर्णन |
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अध्याय 12: राजा हरिश्चन्द्रका माहात्म्य तथा युधिष्ठिरके प्रति राजा पाण्डुका संदेश |
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उपपर्व: राजसूयारम्भ पर्व |
अध्याय 13: युधिष्ठिरका राजसूयविषयक संकल्प और उसके विषयमें भाइयों, मन्त्रियों, मुनियों तथा श्रीकृष्णसे सलाह लेना |
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अध्याय 14: श्रीकृष्णकी राजसूययज्ञके लिये सम्मति |
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अध्याय 15: जरासंधके विषयमें राजा युधिष्ठिर, भीम और श्रीकृष्णकी बातचीत |
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अध्याय 16: जरासंधको जीतनेके विषयमें युधिष्ठिरके उत्साहहीन होनेपर अर्जुनका उत्साहपूर्ण उद् गार |
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अध्याय 17: श्रीकृष्णके द्वारा अर्जुनकी बातका अनुमोदन तथा युधिष्ठिरको जरासंधकी उत्पत्तिका प्रसंग सुनाना |
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अध्याय 18: जरा राक्षसीका अपना परिचय देना और उसीके नामपर बालकका नामकरण होना |
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अध्याय 19: चण्डकौशिक मुनिके द्वारा जरासंधका भविष्यकथन तथा पिताके द्वारा उसका राज्याभिषेक करके वनमें जाना |
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उपपर्व: जरासंधवध पर्व |
अध्याय 20: युधिष्ठिरके अनुमोदन करनेपर श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीमसेनकी मगध-यात्रा |
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अध्याय 21: श्रीकृष्णद्वारा मगधकी राजधानीकी प्रशंसा, चैत्यक पर्वतशिखर और नगाड़ोंको तोड़-फोड़कर तीनोंका नगर एवं राज-भवनमें प्रवेश तथा श्रीकृष्ण और जरासंधका संवाद |
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अध्याय 22: जरासंध और श्रीकृष्णका संवाद तथा जरासंधकी युद्धके लिये तैयारी एवं जरासंधका श्रीकृष्णके साथ वैर होनेके कारणका वर्णन |
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अध्याय 23: जरासंधका भीमसेनके साथ युद्ध करनेका निश्चय, भीम और जरासंधका भयानक युद्ध तथा जरासंधकी थकावट |
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अध्याय 24: भीमके द्वारा जरासंधका वध, बंदी राजाओंकी मुक्ति, श्रीकृष्ण आदिका भेंट लेकर इन्द्रप्रस्थमें आना और वहाँसे श्रीकृष्णका द्वारका जाना |
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उपपर्व: दिग्विजय पर्व |
अध्याय 25: अर्जुन आदि चारों भाइयोंकी दिग्विजयके लिये यात्रा |
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अध्याय 26: अर्जुनके द्वारा अनेक देशों, राजाओं तथा भगदत्तकी पराजय |
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अध्याय 27: अर्जुनका अनेक पर्वतीय देशोंपर विजय पाना |
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अध्याय 28: किम्पुरुष, हाटक तथा उत्तरकुरुपर विजय प्राप्त करके अर्जुनका इन्द्रप्रस्थ लौटना |
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अध्याय 29: भीमसेनका पूर्व दिशाको जीतनेके लिये प्रस्थान और विभिन्न देशोंपर विजय पाना |
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अध्याय 30: भीमका पूर्व दिशाके अनेक देशों तथा राजाओंको जीतकर भारी धन-सम्पत्तिके साथ इन्द्रप्रस्थमें लौटना |
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अध्याय 31: सहदेवके द्वारा दक्षिण दिशाकी विजय |
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अध्याय 32: नकुलके द्वारा पश्चिम दिशाकी विजय |
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उपपर्व: राजसूय पर्व |
अध्याय 33: युधिष्ठिरके शासनकी विशेषता, श्रीकृष्णकी आज्ञासे युधिष्ठिरका राजसूययज्ञकी दीक्षा लेना तथा राजाओं, ब्राह्मणों एवं सगे-सम्बन्धियोंको बुलानेके लिये निमन्त्रण भेजना |
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अध्याय 34: युधिष्ठिरके यज्ञमें सब देशके राजाओं, कौरवों तथा यादवोंका आगमन और उन सबके भोजन-विश्राम आदिकी सुव्यवस्था |
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अध्याय 35: राजसूययज्ञका वर्णन |
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उपपर्व: अर्घाभिहरण पर्व |
अध्याय 36: राजसूययज्ञमें ब्राह्मणों तथा राजाओंका समागम, श्रीनारदजीके द्वारा श्रीकृष्ण- महिमाका वर्णन और भीष्मजीकी अनुमतिसे श्रीकृष्णकी अग्रपूजा |
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अध्याय 37: शिशुपालके आक्षेपपूर्ण वचन |
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अध्याय 38: युधिष्ठिरका शिशुपालको समझाना और भीष्मजीका उसके आक्षेपोंका उत्तर देना |
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अध्याय 39: सहदेवकी राजाओंको चुनौती तथा क्षुब्ध हुए शिशुपाल आदि नरेशोंका युद्धके लिये उद्यत होना |
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उपपर्व: शिशुपालवध पर्व |
अध्याय 40: युधिष्ठिरकी चिन्ता और भीष्मजीका उन्हें सान्त्वना देना |
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अध्याय 41: शिशुपालद्वारा भीष्मकी निन्दा |
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अध्याय 42: शिशुपालकी बातोंपर भीमसेनका क्रोध और भीष्मजीका उन्हें शान्त करना |
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अध्याय 43: भीष्मजीके द्वारा शिशुपालके जन्मके वृत्तान्तका वर्णन |
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अध्याय 44: भीष्मकी बातोंसे चिढ़े हुए शिशुपालका उन्हें फटकारना तथा भीष्मका श्रीकृष्णसे युद्ध करनेके लिये समस्त राजाओंको चुनौती देना |
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अध्याय 45: श्रीकृष्णके द्वारा शिशुपालका वध, राजसूययज्ञकी समाप्ति तथा सभी ब्राह्मणों, राजाओं और श्रीकृष्णका स्वदेशगमन |
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उपपर्व: द्यूत पर्व |
अध्याय 46: व्यासजीकी भविष्यवाणीसे युधिष्ठिरकी चिन्ता और समत्वपूर्ण बर्ताव करनेकी प्रतिज्ञा |
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अध्याय 47: दुर्योधनका मयनिर्मि त सभाभवनको देखना और पग-पगपर भ्रमके कारण उपहासका पात्र बनना तथा युधिष्ठिरके वैभवको देखकर उसका चिन्तित होना |
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अध्याय 48: पाण्डवोंपर विजय प्राप्त करनेके लिये शकुनि और दुर्योधनकी बातचीत |
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अध्याय 49: धृतराष्ट्रके पूछनेपर दुर्योधनका अपनी चिन्ता बताना और द्यूतके लिये धृतराष्ट्रसे अनुरोध करना एवं धृतराष्ट्रका विदुरको इन्द्रप्रस्थ जानेका आदेश |
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अध्याय 50: दुर्योधनका धृतराष्ट्रको अपने दुःख और चिन्ताका कारण बताना |
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अध्याय 51: युधिष्ठिरको भेंटमें मिली हुई वस्तुओंका दुर्योधनद्वारा वर्णन |
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अध्याय 52: युधिष्ठिरको भेंटमें मिली हुई वस्तुओंका दुर्योधनद्वारा वर्णन |
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अध्याय 53: दुर्योधनद्वारा युधिष्ठिरके अभिषेकका वर्णन |
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अध्याय 54: धृतराष्ट्रका दुर्योधनको समझाना |
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अध्याय 55: दुर्योधनका धृतराष्ट्रको उकसाना |
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अध्याय 56: धृतराष्ट्र और दुर्योधनकी बातचीत, द्यूतक्रीड़ाके लिये सभानिर्माण और धृतराष्ट्रका युधिष्ठिरको बुलानेके लिये विदुरको आज्ञा देना |
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अध्याय 57: विदुर और धृतराष्ट्रकी बातचीत |
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अध्याय 58: विदुर और युधिष्ठिरकी बातचीत तथा युधिष्ठिरका हस्तिनापुरमें जाकर सबसे मिलना |
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अध्याय 59: जूएके अनौचित्यके सम्बन्धमें युधिष्ठिर और शकुनिका संवाद |
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अध्याय 60: द्यूतक्रीड़ाका आरम्भ |
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अध्याय 61: जूएमें शकुनिके छलसे प्रत्येक दाँवपर युधिष्ठिरकी हार |
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अध्याय 62: धृतराष्ट्रको विदुरकी चेतावनी |
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अध्याय 63: विदुरजीके द्वारा जूएका घोर विरोध |
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अध्याय 64: दुर्योधनका विदुरको फटकारना और विदुरका उसे चेतावनी देना |
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अध्याय 65: युधिष्ठिरका धन, राज्य, भाइयों तथा द्रौपदी-सहित अपनेको भी हारना |
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अध्याय 66: विदुरका दुर्योधनको फटकारना |
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अध्याय 67: प्रातिकामीके बुलानेसे न आनेपर दुःशासनका सभामें द्रौपदीको केश पकड़कर घसीटकर लाना एवं सभासदोंसे द्रौपदीका प्रश्न |
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अध्याय 68: भीमसेनका क्रोध एवं अर्जुनका उन्हें शान्त करना, विकर्णकी धर्मसंगत बातका कर्णके द्वारा विरोध, द्रौपदीका चीरहरण एवं भगवान् द्वारा उसकी लज्जारक्षा तथा विदुरके द्वारा प्रह्लादका उदाहरण देकर सभासदोंको विरोधके लिये प्रेरित करना |
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अध्याय 69: द्रौपदीका चेतावनीयुक्त विलाप एवं भीष्मका वचन |
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अध्याय 70: दुर्योधनके छल-कपटयुक्त वचन और भीमसेनका रोषपूर्ण उद् गार |
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अध्याय 71: कर्ण और दुर्योधनके वचन, भीमसेनकी प्रतिज्ञा, विदुरकी चेतावनी और द्रौपदीको धृतराष्ट्रसे वरप्राप्ति |
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अध्याय 72: शत्रुओंको मारनेके लिये उद्यत हुए भीमको युधिष्ठिरका शान्त करना |
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अध्याय 73: धृतराष्ट्रका युधिष्ठिरको सारा धन लौटाकर एवं समझा-बुझाकर इन्द्रप्रस्थ जानेका आदेश देना |
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उपपर्व: अनुद्यूत पर्व |
अध्याय 74: दुर्योधनका धृतराष्ट्रसे अर्जुनकी वीरता बतलाकर पुनः द्यूतक्रीड़ाके लिये पाण्डवोंको बुलानेका अनुरोध और उनकी स्वीकृति |
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अध्याय 75: गान्धारीकी धृतराष्ट्रको चेतावनी और धृतराष्ट्रका अस्वीकार करना |
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अध्याय 76: सबके मना करनेपर भी धृतराष्ट्रकी आज्ञासे युधिष्ठिरका पुनः जूआ खेलना और हारना |
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अध्याय 77: दुःशासनद्वारा पाण्डवोंका उपहास एवं भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेवकी शत्रुओंको मारनेके लिये भीषण प्रतिज्ञा |
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अध्याय 78: युधिष्ठिरका धृतराष्ट्र आदिसे विदा लेना, विदुरका कुन्तीको अपने यहाँ रखनेका प्रस्ताव और पाण्डवोंको धर्मपूर्वक रहनेका उपदेश देना |
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अध्याय 79: द्रौपदीका कुन्तीसे विदा लेना तथा कुन्तीका विलाप एवं नगरके नर-नारियोंका शोकातुर होना |
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अध्याय 80: वनगमनके समय पाण्डवोंकी चेष्टा और प्रजाजनोंकी शोकातुरताके विषयमें धृतराष्ट्र तथा विदुरका संवाद और शरणागत कौरवोंको द्रोणाचार्यका आश्वासन |
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अध्याय 81: धृतराष्ट्रकी चिन्ता और उनका संजयके साथ वार्तालाप |
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