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श्री महाभारत  »  पर्व 3: वन पर्व  » 
 
 
 
अरण्य पर्वकिर्मीरवध पर्वअर्जुनाभिगमन पर्वकैरात पर्व
इन्द्रलोकाभिगमन पर्वनलोपाख्यान पर्वतीर्थयात्रा पर्वजटासुरवध पर्व
यक्षयुद्ध पर्वनिवातकवचयुद्ध पर्वआजगर पर्वमार्कण्डेयसमास्या पर्व
द्रौपदीसत्यभामासंवाद पर्वघोषयात्रा पर्वमृगस्वप्नोद्भव पर्वव्रीहिद्रौणिक पर्व
द्रौपदीहरण पर्वजयद्रथविमोक्षण पर्वरामोपाख्यान पर्वपतिव्रतामाहात्म्य पर्व
कुण्डलाहरण पर्वआरणेय पर्व
 
 
 
 
उपपर्व: अरण्य पर्व
अध्याय 1:  पाण्डवोंका वनगमन, पुरवासियोंद्वारा उनका अनुगमन और युधिष्ठिरके अनुरोध करनेपर उनमेंसे बहुतोंका लौटना तथा पाण्डवोंका प्रमाणकोटितीर्थमें रात्रिवास
 
अध्याय 2:  धनके दोष, अतिथि-सत्कारकी महत्ता तथा कल्याणके उपायोंके विषयमें धर्मराज युधिष्ठिरसे ब्राह्मणों तथा शौनकजीकी बातचीत
 
अध्याय 3:  युधिष्ठिरके द्वारा अन्नके लिये भगवान् सूर्यकी उपासना और उनसे अक्षयपात्रकी प्राप्ति
 
अध्याय 4:  विदुरजीका धृतराष्ट्रको हितकी सलाह देना और धृतराष्ट्रका रुष्ट होकर महलमें चला जाना
 
अध्याय 5:  पाण्डवोंका काम्यकवनमें प्रवेश और विदुरजीका वहाँ जाकर उनसे मिलना और बातचीत करना
 
अध्याय 6:  धृतराष्ट्रका संजयको भेजकर विदुरको वनसे बुलवाना और उनसे क्षमा-प्रार्थना
 
अध्याय 7:  दुर्योधन, दुःशासन, शकुनि और कर्णकी सलाह, पाण्डवोंका वध करनेके लिये उनका वनमें जानेकी तैयारी तथा व्यासजीका आकर उनको रोकना
 
अध्याय 8:  व्यासजीका धृतराष्ट्रसे दुर्योधनके अन्यायको रोकनेके लिये अनुरोध
 
अध्याय 9:  व्यासजीके द्वारा सुरभि और इन्द्रके उपाख्यानका वर्णन तथा उनका पाण्डवोंके प्रति दया दिखलाना
 
अध्याय 10:  व्यासजीका जाना, मैत्रेयजीका धृतराष्ट्र और दुर्योधनसे पाण्डवोंके प्रति सद्भावका अनुरोध तथा दुर्योधनके अशिष्ट व्यवहारसे रुष्ट होकर उसे शाप देना
 
 
 
उपपर्व: किर्मीरवध पर्व
अध्याय 11:  भीमसेनके द्वारा किर्मीरके वधकी कथा
 
 
 
उपपर्व: अर्जुनाभिगमन पर्व
अध्याय 12:  अर्जुन और द्रौपदीके द्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति, द्रौपदीका भगवान् श्रीकृष्णसे अपने प्रति किये गये अपमान और दुःखका वर्णन और भगवान् श्रीकृष्ण, अर्जुन एवं धृष्टद्युम्नका उसे आश्वासन देना
 
अध्याय 13:  श्रीकृष्णका जूएके दोष बताते हुए पाण्डवोंपर आयी हुई विपत्तिमें अपनी अनुपस्थितिको कारण मानना
 
अध्याय 14:  द्यूतके समय न पहुँचनेमें श्रीकृष्णके द्वारा शाल्वके साथ युद्ध करने और सौभविमानसहित उसे नष्ट करनेका संक्षिप्त वर्णन
 
अध्याय 15:  सौभनाशकी विस्तृत कथाके प्रसंगमें द्वारकामें युद्धसम्बन्धी रक्षात्मक तैयारियोंका वर्णन
 
अध्याय 16:  शाल्वकी विशाल सेनाके आक्रमणका यादव-सेनाद्वारा प्रतिरोध, साम्बद्वारा क्षेमवृद्धिकी पराजय, वेगवान् का वध तथा चारुदेष्णद्वारा विविन्ध्यदैत्यका वध एवं प्रद्युम्नद्वारा सेनाको आश्वासन
 
अध्याय 17:  प्रद्युम्न और शाल्वका घोर युद्ध
 
अध्याय 18:  मूर्च्छावस्थामें सारथिके द्वारा रणभूमिसे बाहर लाये जानेपर प्रद्युम्नका अनुताप और इसके लिये सारथिको उपालम्भ देना
 
अध्याय 19:  प्रद्युम्नके द्वारा शाल्वकी पराजय
 
अध्याय 20:  श्रीकृष्ण और शाल्वका भीषण युद्ध
 
अध्याय 21:  श्रीकृष्णका शाल्वकी मायासे मोहित होकर पुनः सजग होना
 
अध्याय 22:  शाल्ववधोपाख्यानकी समाप्ति और युधिष्ठिरकी आज्ञा लेकर श्रीकृष्ण, धृष्टद्युम्न तथा अन्य सब राजाओंका अपने-अपने नगरको प्रस्थान
 
अध्याय 23:  पाण्डवोंका द्वैतवनमें जानेके लिये उद्यत होना और प्रजावर्गकी व्याकुलता
 
अध्याय 24:  पाण्डवोंका द्वैतवनमें जाना
 
अध्याय 25:  महर्षि मार्कण्डेयका पाण्डवोंको धर्मका आदेश देकर उत्तर दिशाकी ओर प्रस्थान
 
अध्याय 26:  दल्भपुत्र बकका युधिष्ठिरको ब्राह्मणोंका महत्त्व बतलाना
 
अध्याय 27:  द्रौपदीका युधिष्ठिरसे उनके शत्रुविषयक क्रोधको उभाड़नेके लिये संतापपूर्ण वचन
 
अध्याय 28:  द्रौपदीद्वारा प्रह्लाद-बलि-संवादका वर्णन—तेज और क्षमाके अवसर
 
अध्याय 29:  युधिष्ठिरके द्वारा क्रोधकी निन्दा और क्षमा-भावकी विशेष प्रशंसा
 
अध्याय 30:  दुःखसे मोहित द्रौपदीका युधिष्ठिरकी बुद्धि, धर्म एवं ईश्वरके न्यायपर आक्षेप
 
अध्याय 31:  युधिष्ठिरद्वारा द्रौपदीके आक्षेपका समाधान तथा ईश्वर, धर्म और महापुरुषोंके आदरसे लाभ और अनादरसे हानि
 
अध्याय 32:  द्रौपदीका पुरुषार्थको प्रधान मानकर पुरुषार्थ करनेके लिये जोर देना
 
अध्याय 33:  भीमसेनका पुरुषार्थकी प्रशंसा करना और युधिष्ठिरको उत्तेजित करते हुए क्षत्रिय- धर्मके अनुसार युद्ध छेड़नेका अनुरोध
 
अध्याय 34:  धर्म और नीतिकी बात कहते हुए युधिष्ठिरकी अपनी प्रतिज्ञाके पालनरूप धर्मपर ही डटे रहनेकी घोषणा
 
अध्याय 35:  दुःखित भीमसेनका युधिष्ठिरको युद्धके लिये उत्साहित करना
 
अध्याय 36:  युधिष्ठिरका भीमसेनको समझाना, व्यासजीका आगमन और युधिष्ठिरको प्रतिस्मृतिविद्याप्रदान तथा पाण्डवोंका पुनः काम्यकवनगमन
 
अध्याय 37:  अर्जुनका सब भाई आदिसे मिलकर इन्द्रकील पर्वतपर जाना एवं इन्द्रका दर्शन करना
 
 
 
उपपर्व: कैरात पर्व
अध्याय 38:  अर्जुनकी उग्र तपस्या और उसके विषयमें ऋषियोंका भगवान् शंकरके साथ वार्तालाप
 
अध्याय 39:  भगवान् शंकर और अर्जुनका युद्ध, अर्जुनपर उनका प्रसन्न होना एवं अर्जुनके द्वारा भगवान् शंकरकी स्तुति
 
अध्याय 40:  भगवान् शंकरका अर्जुनको वरदान देकर अपने धामको प्रस्थान
 
अध्याय 41:  अर्जुनके पास दिक्पालोंका आगमन एवं उन्हें दिव्यास्त्र-प्रदान तथा इन्द्रका उन्हें स्वर्गमें चलनेका आदेश देना
 
 
 
उपपर्व: इन्द्रलोकाभिगमन पर्व
अध्याय 42:  अर्जुनका हिमालयसे विदा होकर मातलिके साथ स्वर्गलोकको प्रस्थान
 
अध्याय 43:  अर्जुनद्वारा देवराज इन्द्रका दर्शन तथा इन्द्रसभामें उनका स्वागत
 
अध्याय 44:  अर्जुनको अस्त्र और संगीतकी शिक्षा
 
अध्याय 45:  चित्रसेन और उर्वशीका वार्तालाप
 
अध्याय 46:  उर्वशीका कामपीड़ित होकर अर्जुनके पास जाना और उनके अस्वीकार करनेपर उन्हें शाप देकर लौट आना
 
अध्याय 47:  लोमश मुनिका स्वर्गमें इन्द्र और अर्जुनसे मिलकर उनका संदेश ले काम्यकवनमें आना
 
अध्याय 48:  दुःखित धृतराष्ट्रका संजयके सम्मुख अपने पुत्रोंके लिये चिन्ता करना
 
अध्याय 49:  संजयके द्वारा धृतराष्ट्रकी बातोंका अनुमोदन और धृतराष्ट्रका संताप
 
अध्याय 50:  वनमें पाण्डवोंका आहार
 
अध्याय 51:  संजयका धृतराष्ट्रके प्रति श्रीकृष्णादिके द्वारा की हुई दुर्योधनादिके वधकी प्रतिज्ञाका वृत्तान्त सुनाना
 
 
 
उपपर्व: नलोपाख्यान पर्व
अध्याय 52:  भीमसेन-युधिष्ठिर-संवाद, बृहदश्वका आगमन तथा युधिष्ठिरके पूछनेपर बृहदश्वके द्वारा नलोपाख्यानकी प्रस्तावना
 
अध्याय 53:  नल-दमयन्तीके गुणोंका वर्णन, उनका परस्पर अनुराग और हंसका दमयन्ती और नलको एक-दूसरेके संदेश सुनाना
 
अध्याय 54:  स्वर्गमें नारद और इन्द्रकी बातचीत, दमयन्तीके स्वयंवरके लिये राजाओं तथा लोकपालोंका प्रस्थान
 
अध्याय 55:  नलका दूत बनकर राजमहलमें जाना और दमयन्तीको देवताओंका संदेश सुनाना
 
अध्याय 56:  नलका दमयन्तीसे वार्तालाप करना और लौटकर देवताओंको उसका सन्देश सुनाना
 
अध्याय 57:  स्वयंवरमें दमयन्तीद्वारा नलका वरण, देवताओंका नलको वर देना, देवताओं और राजाओंका प्रस्थान, नल-दमयन्तीका विवाह एवं नलका यज्ञानुष्ठान और संतानोत्पादन
 
अध्याय 58:  देवताओंके द्वारा नलके गुणोंका गान और उनके निषेध करनेपर भी नलके विरुद्ध कलियुगका कोप
 
अध्याय 59:  नलमें कलियुगका प्रवेश एवं नल और पुष्करकी द्यूतक्रीडा, प्रजा और दमयन्तीके निवारण करनेपर भी राजाका द्यूतसे निवृत्त नहीं होना
 
अध्याय 60:  दुःखित दमयन्तीका वार्ष्णेयके द्वारा कुमार-कुमारीको कुण्डिनपुर भेजना
 
अध्याय 61:  नलका जूएमें हारकर दमयन्तीके साथ वनको जाना और पक्षियोंद्वारा आपद्ग्रस्त नलके वस्त्रका अपहरण
 
अध्याय 62:  राजा नलकी चिन्ता और दमयन्तीको अकेली सोती छोड़कर उनका अन्यत्र प्रस्थान
 
अध्याय 63:  दमयन्तीका विलाप तथा अजगर एवं व्याधसे उसके प्राण एवं सतीत्वकी रक्षा तथा दमयन्तीके पातिव्रत्यधर्मके प्रभावसे व्याधका विनाश
 
अध्याय 64:  दमयन्तीका विलाप और प्रलाप, तपस्वियोंद्वारा दमयन्तीको आश्वासन तथा उसकी व्यापारियों-के दलसे भेंट
 
अध्याय 65:  जंगली हाथियोंद्वारा व्यापारियोंके दलका सर्वनाश तथा दुःखित दमयन्तीका चेदिराजके भवनमें सुखपूर्वक निवास
 
अध्याय 66:  राजा नलके द्वारा दावानलसे कर्कोटक नागकी रक्षा तथा नागद्वारा नलको आश्वासन
 
अध्याय 67:  राजा नलका ऋतुपर्णके यहाँ अश्वाध्यक्षके पदपर नियुक्त होना और वहाँ दमयन्तीके लिये निरन्तर चिन्तित रहना तथा उनकी जीवलसे बातचीत
 
अध्याय 68:  विदर्भराजका नल-दमयन्तीकी खोजके लिये ब्राह्मणोंको भेजना, सुदेव ब्राह्मणका चेदिराजके भवनमें जाकर मन-ही-मन दमयन्तीके गुणोंका चिन्तन और उससे भेंट करना
 
अध्याय 69:  दमयन्तीका अपने पिताके यहाँ जाना और वहाँसे नलको ढूँढ़नेके लिये अपना संदेश देकर ब्राह्मणोंको भेजना
 
अध्याय 70:  पर्णादका दमयन्तीसे बाहुकरूपधारी नलका समाचार बताना और दमयन्तीका ऋतुपर्णके यहाँ सुदेव नामक ब्राह्मणको स्वयंवरका संदेश देकर भेजना
 
अध्याय 71:  राजा ऋतुपर्णका विदर्भदेशको प्रस्थान, राजा नलके विषयमें वार्ष्णेयका विचार और बाहुककी अद्भतु अश्वसंचालन-कलासे वार्ष्णेय और ऋतुपर्णका प्रभावित होना
 
अध्याय 72:  ऋतुपर्णके उत्तरीय वस्त्र गिरने और बहेड़ेके वृक्षके फलोंको गिननेके विषयमें नलके साथ ऋतुपर्णकी बातचीत, ऋतुपर्णसे नलको द्यूत-विद्याके रहस्यकी प्राप्ति और उनके शरीरसे कलियुगका निकलना
 
अध्याय 73:  ऋतुपर्णका कुण्डिनपुरमें प्रवेश, दमयन्तीका विचार तथा भीमके द्वारा ऋतुपर्णका स्वागत
 
अध्याय 74:  बाहुक-केशिनी-संवाद
 
अध्याय 75:  दमयन्तीके आदेशसे केशिनीद्वारा बाहुककी परीक्षा तथा बाहुकका अपने लड़के- लड़कियोंको देखकर उनसे प्रेम करना
 
अध्याय 76:  दमयन्ती और बाहुककी बातचीत, नलका प्राकट्य और नल-दमयन्ती-मिलन
 
अध्याय 77:  नलके प्रकट होनेपर विदर्भनगरमें महान् उत्सवका आयोजन, ऋतुपर्णके साथ नलका वार्तालाप और ऋतुपर्णका नलसे अश्वविद्या सीखकर अयोध्या जाना
 
अध्याय 78:  राजा नलका पुष्करको जुएमें हराना और उसको राजधानीमें भेजकर अपने नगरमें प्रवेश करना
 
अध्याय 79:  राजा नलके आख्यानके कीर्तनका महत्त्व, बृहदश्व मुनिका युधिष्ठिरको आश्वासन देना तथा द्यूतविद्या और अश्वविद्याका रहस्य बताकर जाना
 
 
 
उपपर्व: तीर्थयात्रा पर्व
अध्याय 80:  अर्जुनके लिये द्रौपदीसहित पाण्डवोंकी चिन्ता
 
अध्याय 81:  युधिष्ठिरके पास देवर्षि नारदका आगमन और तीर्थयात्राके फलके सम्बन्धमें पूछनेपर नारदजी-द्वारा भीष्म-पुलस्त्य-संवादकी प्रस्तावना
 
अध्याय 82:  भीष्मजीके पूछनेपर पुलस्त्यजीका उन्हें विभिन्न तीर्थोंकी यात्राका माहात्म्य बताना
 
अध्याय 83:  कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित अनेक तीर्थोंकी महत्ताका वर्णन
 
अध्याय 84:  नाना प्रकारके तीर्थोंकी महिमा
 
अध्याय 85:  गंगासागर, अयोध्या, चित्रकूट, प्रयाग आदि विभिन्न तीर्थोंकी महिमाका वर्णन और गंगाका माहात्म्य
 
अध्याय 86:  युधिष्ठिरका धौम्य मुनिसे पुण्य तपोवन, आश्रम एवं नदी आदिके विषयमें पूछना
 
अध्याय 87:  धौम्यद्वारा पूर्वदिशाके तीर्थोंका वर्णन
 
अध्याय 88:  धौम्यमुनिके द्वारा दक्षिणदिशावर्ती तीर्थोंका वर्णन
 
अध्याय 89:  धौम्यद्वारा पश्चिम दिशाके तीर्थोंका वर्णन
 
अध्याय 90:  धौम्यद्वारा उत्तर दिशाके तीर्थोंका वर्णन
 
अध्याय 91:  महर्षि लोमशका आगमन और युधिष्ठिरसे अर्जुनके पाशुपत आदि दिव्यास्त्रोंकी प्राप्तिका वर्णन तथा इन्द्रका संदेश सुनाना
 
अध्याय 92:  महर्षि लोमशके मुखसे इन्द्र और अर्जुनका संदेश सुनकर युधिष्ठिरका प्रसन्न होना और तीर्थयात्राके लिये उद्यत हो अपने अधिक साथियोंको विदा करना
 
अध्याय 93:  ऋषियोंको नमस्कार करके पाण्डवोंका तीर्थ-यात्राके लिये विदा होना
 
अध्याय 94:  देवताओं और धर्मात्मा राजाओंका उदाहरण देकर महर्षि लोमशका युधिष्ठिरको अधर्मसे हानि बताना और तीर्थयात्राजनित पुण्यकी महिमाका वर्णन करते हुए आश्वासन देना
 
अध्याय 95:  पाण्डवोंका नैमिषारण्य आदि तीर्थोंमें जाकर प्रयाग तथा गयातीर्थमें जाना और गय राजाके महान् यज्ञोंकी महिमा सुनना
 
अध्याय 96:  इल्वल और वातापिका वर्णन, महर्षि अगस्त्यका पितरोंके उद्धारके लिये विवाह करनेका विचार तथा विदर्भराजका महर्षि अगस्त्यसे एक कन्या पाना
 
अध्याय 97:  महर्षि अगस्त्यका लोपामुद्रासे विवाह, गंगाद्वारमें तपस्या एवं पत्नीकी इच्छासे धनसंग्रहके लिये प्रस्थान
 
अध्याय 98:  धन प्राप्त करनेके लिये अगस्त्यका श्रुतर्वा, ब्रध्नश्व और त्रसदस्यु आदिके पास जाना
 
अध्याय 99:  अगस्त्यजीका इल्वलके यहाँ धनके लिये जाना, वातापि तथा इल्वलका वध, लोपामुद्राको पुत्रकी प्राप्ति तथा श्रीरामके द्वारा हरे हुए तेजकी परशुरामजीको तीर्थस्नानद्वारा पुनः प्राप्ति
 
अध्याय 100:  वृत्रासुरसे त्रस्त देवताओंको महर्षि दधीचका अस्थिदान एवं वज्रका निर्माण
 
अध्याय 101:  वृत्रासुरका वध और असुरोंकी भयंकर मन्त्रणा
 
अध्याय 102:  कालेयोंद्वारा तपस्वियों, मुनियों और ब्रह्मचारियों आदिका संहार तथा देवताओंद्वारा भगवान् विष्णुकी स्तुति
 
अध्याय 103:  भगवान् विष्णुके आदेशसे देवताओंका महर्षि अगस्त्यके आश्रमपर जाकर उनकी स्तुति करना
 
अध्याय 104:  अगस्त्यजीका विन्ध्यपर्वतको बढ़नेसे रोकना और देवताओंके साथ सागर-तटपर जाना
 
अध्याय 105:  अगस्त्यजीके द्वारा समुद्रपान और देवताओंका कालेय दैत्योंका वध करके ब्रह्माजीसे समुद्रको पुनः भरनेका उपाय पूछना
 
अध्याय 106:  राजा सगरका सन्तानके लिये तपस्या करना और शिवजीके द्वारा वरदान पाना
 
अध्याय 107:  सगरके पुत्रोंकी उत्पत्ति, साठ हजार सगरपुत्रोंका कपिलकी क्रोधाग्निसे भस्म होना, असमंजसका परित्याग, अंशुमान् के प्रयत्नसे सगरके यज्ञकी पूर्ति , अंशुमान् से दिलीपको और दिलीपसे भगीरथको राज्यकी प्राप्ति
 
अध्याय 108:  भगीरथका हिमालयपर तपस्याद्वारा गंगा और महादेवजीको प्रसन्न करके उनसे वर प्राप्त करना
 
अध्याय 109:  पृथ्वीपर गंगाजीके उतरने और समुद्रको जलसे भरनेका विवरण तथा सगरपुत्रोंका उद्धार
 
अध्याय 110:  नन्दा तथा कौशिकीका माहात्म्य, ऋष्यशृंग मुनिका उपाख्यान और उनको अपने राज्यमें लानेके लिये राजा लोमपादका प्रयत्न
 
अध्याय 111:  वेश्याका ऋष्यशृंगको लुभाना और विभाण्डक मुनिका आश्रमपर आकर अपने पुत्रकी चिन्ताका कारण पूछना
 
अध्याय 112:  ऋष्यशृंगका पिताको अपनी चिन्ताका कारण बताते हुए ब्रह्मचारीरूपधारी वेश्याके स्वरूप और आचरणका वर्णन
 
अध्याय 113:  ऋष्यशृंगका अंगराज लोमपादके यहाँ जाना, राजाका उन्हें अपनी कन्या देना, राजाद्वारा विभाण्डक मुनिका सत्कार तथा उनपर मुनिका प्रसन्न होना
 
अध्याय 114:  युधिष्ठिरका कौशिकी, गंगासागर एवं वैतरणी नदी होते हुए महेन्द्रपर्वतपर गमन
 
अध्याय 115:  अकृतव्रणके द्वारा युधिष्ठिरसे परशुरामजीके उपाख्यानके प्रसंगमें ऋचीक मुनिका गाधि-कन्याके साथ विवाह और भृगुऋषिकी कृपासे जमदग्निकी उत्पत्तिका वर्णन
 
अध्याय 116:  पिताकी आज्ञासे परशुरामजीका अपनी माताका मस्तक काटना और उन्हींके वरदानसे पुनः जिलाना, परशुरामजीद्वारा कार्तवीर्य-अर्जुनका वध और उसके पुत्रोंद्वारा जमदग्नि मुनिकी हत्या
 
अध्याय 117:  परशुरामजीका पिताके लिये विलाप और पृथ्वीको इक्कीस बार निःक्षत्रिय करना एवं महाराज युधिष्ठिरके द्वारा परशुरामजीका पूजन
 
अध्याय 118:  युधिष्ठिरका विभिन्न तीर्थोंमें होते हुए प्रभासक्षेत्रमें पहुँचकर तपस्यामें प्रवृत्त होना और यादवोंका पाण्डवोंसे मिलना
 
अध्याय 119:  प्रभासतीर्थमें बलरामजीके पाण्डवोंके प्रति सहानुभूतिसूचक दुःखपूर्ण उद् गार
 
अध्याय 120:  सात्यकिके शौर्यपूर्ण उद् गार तथा युधिष्ठिरद्वारा श्रीकृष्णके वचनोंका अनुमोदन एवं पाण्डवोंका पयोष्णी नदीके तटपर निवास
 
अध्याय 121:  राजा गयके यज्ञकी प्रशंसा, पयोष्णी, वैदूर्य पर्वत और नर्मदाके माहात्म्य तथा च्यवन-सुकन्याके चरित्रका आरम्भ
 
अध्याय 122:  महर्षि च्यवनको सुकन्याकी प्राप्ति
 
अध्याय 123:  अश्विनीकुमारोंकी कृपासे महर्षि च्यवनको सुन्दर रूप और युवावस्थाकी प्राप्ति
 
अध्याय 124:  शर्यातिके यज्ञमें च्यवनका इन्द्रपर कोप करके वज्रको स्तम्भित करना और उसे मारनेके लिये मदासुरको उत्पन्न करना
 
अध्याय 125:  अश्विनीकुमारोंका यज्ञमें भाग स्वीकार कर लेनेपर इन्द्रका संकटमुक्त होना तथा लोमशजीके द्वारा अन्यान्य तीर्थोंके महत्त्वका वर्णन
 
अध्याय 126:  राजा मान्धाताकी उत्पत्ति और संक्षिप्त चरित्र
 
अध्याय 127:  सोमक और जन्तुका उपाख्यान
 
अध्याय 128:  सोमकको सौ पुत्रोंकी प्राप्ति तथा सोमक और पुरोहितका समानरूपसे नरक और पुण्यलोकोंका उपभोग करना
 
अध्याय 129:  कुरुक्षेत्रके द्वारभूत प्लक्षप्रस्रवण नामक यमुना-तीर्थ एवं सरस्वतीतीर्थकी महिमा
 
अध्याय 130:  विभिन्न तीर्थोंकी महिमा और राजा उशीनरकी कथाका आरम्भ
 
अध्याय 131:  राजा उशीनरद्वारा बाजको अपने शरीरका मांस देकर शरणमें आये हुए कबूतरके प्राणोंकी रक्षा करना
 
अध्याय 132:  अष्टावक्रके जन्मका वृत्तान्त और उनका राजा जनकके दरबारमें जाना
 
अध्याय 133:  अष्टावक्रका द्वारपाल तथा राजा जनकसे वार्तालाप
 
अध्याय 134:  बन्दी और अष्टावक्रका शास्त्रार्थ, बन्दीकी पराजय तथा समंगामें स्नानसे अष्टावक्रके अंगोंका सीधा होना
 
अध्याय 135:  कर्दमिलक्षेत्र आदि तीर्थोंकी महिमा, रैभ्य एवं भरद्वाजपुत्र यवक्रीत मुनिकी कथा तथा ऋषियोंका अनिष्ट करनेके कारण मेधावीकी मृत्यु
 
अध्याय 136:  यवक्रीतका रैभ्यमुनिकी पुत्रवधूके साथ व्यभिचार और रैभ्यमुनिके क्रोधसे उत्पन्न राक्षसके द्वारा उसकी मृत्यु
 
अध्याय 137:  भरद्वाजका पुत्रशोकसे विलाप करना, रैभ्यमुनिको शाप देना एवं स्वयं अग्निमें प्रवेश करना
 
अध्याय 138:  अर्वावसुकी तपस्याके प्रभावसे परावसुका ब्रह्महत्यासे मुक्त होना और रैभ्य, भरद्वाज तथा यवक्रीत आदिका पुनर्जीवित होना
 
अध्याय 139:  पाण्डवोंकी उत्तराखण्ड-यात्रा और लोमशजी-द्वारा उसकी दुर्गमताका कथन
 
अध्याय 140:  भीमसेनका उत्साह तथा पाण्डवोंका कुलिन्दराज सुबाहुके राज्यमें होते हुए गन्धमादन और हिमालय पर्वतको प्रस्थान
 
अध्याय 141:  युधिष्ठिरका भीमसेनसे अर्जुनको न देखनेके कारण मानसिक चिन्ता प्रकट करना एवं उनके गुणोंका स्मरण करते हुए गन्धमादन पर्वतपर जानेका दृढ़ निश्चय करना
 
अध्याय 142:  पाण्डवोंद्वारा गंगाजीकी वन्दना, लोमशजीका नरकासुरके वध और भगवान् वाराहद्वारा वसुधाके उद्धारकी कथा कहना
 
अध्याय 143:  गन्धमादनकी यात्राके समय पाण्डवोंका आँधी-पानीसे सामना
 
अध्याय 144:  द्रौपदीकी मूर्छा, पाण्डवोंके उपचारसे उसका सचेत होना तथा भीमसेनके स्मरण करनेपर घटोत्कचका आगमन
 
अध्याय 145:  घटोत्कच और उसके साथियोंकी सहायतासे पाण्डवोंका गन्धमादन पर्वत एवं बदरिकाश्रममें प्रवेश तथा बदरीवृक्ष, नर-नारायणाश्रम और गंगाका वर्णन
 
अध्याय 146:  भीमसेनका सौगन्धिक कमल लानेके लिये जाना और कदलीवनमें उनकी हनुमान् जीसे भेंट
 
अध्याय 147:  श्रीहनुमान् और भीमसेनका संवाद
 
अध्याय 148:  हनुमान् जीका भीमसेनको संक्षेपसे श्रीरामका चरित्र सुनाना
 
अध्याय 149:  हनुमान् जीके द्वारा चारों युगोंके धर्मोंका वर्णन
 
अध्याय 150:  श्रीहनुमान् जीके द्वारा भीमसेनको अपने विशाल रूपका प्रदर्शन और चारों वर्णोंके धर्मोंका प्रतिपादन
 
अध्याय 151:  श्रीहनुमान् जीका भीमसेनको आश्वासन और विदा देकर अन्तर्धान होना
 
अध्याय 152:  भीमसेनका सौगन्धिक वनमें पहुँचना
 
अध्याय 153:  क्रोधवश नामक राक्षसोंका भीमसेनसे सरोवरके निकट आनेका कारण पूछना
 
अध्याय 154:  भीमसेनके द्वारा क्रोधवश नामक राक्षसोंकी पराजय और द्रौपदीके लिये सौगन्धिक कमलोंका संग्रह करना
 
अध्याय 155:  भयंकर उत्पात देखकर युधिष्ठिर आदिकी चिन्ता और सबका गन्धमादनपर्वतपर सौगन्धिकवनमें भीमसेनके पास पहुँचना
 
अध्याय 156:  पाण्डवोंका आकाशवाणीके आदेशसे पुनः नर-नारायणाश्रममें लौटना
 
 
 
उपपर्व: जटासुरवध पर्व
अध्याय 157:  जटासुरके द्वारा द्रौपदीसहित युधिष्ठिर, नकुल, सहदेवका हरण तथा भीमसेनद्वारा जटासुर-का वध
 
 
 
उपपर्व: यक्षयुद्ध पर्व
अध्याय 158:  नर-नारायण-आश्रमसे वृषपर्वाके यहाँ होते हुए राजर्षि आर्ष्टि षेणके आश्रमपर जाना
 
अध्याय 159:  प्रश्नके रूपमें आर्ष्टि षेणका युधिष्ठिरके प्रति उपदेश
 
अध्याय 160:  पाण्डवोंका आर्ष्टि षेणके आश्रमपर निवास, द्रौपदीके अनुरोधसे भीमसेनका पर्वतके शिखरपर जाना और यक्षों तथा राक्षसोंसे युद्ध करके मणिमान् का वध करना
 
अध्याय 161:  कुबेरका गन्धमादन पर्वतपर आगमन और युधिष्ठिरसे उनकी भेंट
 
अध्याय 162:  कुबेरका युधिष्ठिर आदिको उपदेश और सान्त्वना देकर अपने भवनको प्रस्थान
 
अध्याय 163:  धौम्यका युधिष्ठिरको मेरु पर्वत तथा उसके शिखरोंपर स्थित ब्रह्मा, विष्णु आदिके स्थानोंका लक्ष्य कराना और सूर्य-चन्द्रमाकी गति एवं प्रभावका वर्णन
 
अध्याय 164:  पाण्डवोंकी अर्जुनके लिये उत्कण्ठा और अर्जुनका आगमन
 
 
 
उपपर्व: निवातकवचयुद्ध पर्व
अध्याय 165:  अर्जुनका गन्धमादन पर्वतपर आकर अपने भाइयोंसे मिलना
 
अध्याय 166:  इन्द्रका पाण्डवोंके पास आना और युधिष्ठिरको सान्त्वना देकर स्वर्गको लौटना
 
अध्याय 167:  अर्जुनके द्वारा अपनी तपस्या-यात्राके वृत्तान्तका वर्णन, भगवान् शिवके साथ संग्राम और पाशुपतास्त्र-प्राप्तिकी कथा
 
अध्याय 168:  अर्जुनद्वारा स्वर्गलोकमें अपनी अस्त्रशिक्षा और निवातकवच दानवोंके साथ युद्धकी तैयारीका कथन
 
अध्याय 169:  अर्जुनका पातालमें प्रवेश और निवातकवचोंके साथ युद्धारम्भ
 
अध्याय 170:  अर्जुन और निवातकवचोंका युद्ध
 
अध्याय 171:  दानवोंके मायामय युद्धका वर्णन
 
अध्याय 172:  निवातकवचोंका संहार
 
अध्याय 173:  अर्जुनद्वारा हिरण्यपुरवासी पौलोम तथा कालकेयोंका वध और इन्द्रद्वारा अर्जुनका अभिनन्दन
 
अध्याय 174:  अर्जुनके मुखसे यात्राका वृत्तान्त सुनकर युधिष्ठिरद्वारा उनका अभिनन्दन और दिव्यास्त्र-दर्शनकी इच्छा प्रकट करना
 
अध्याय 175:  नारद आदिका अर्जुनको दिव्यास्त्रोंके प्रदर्शनसे रोकना
 
 
 
उपपर्व: आजगर पर्व
अध्याय 176:  भीमसनेकी युधिष्ठिरसे बातचीत और पाण्डवोंका गन्धमादनसे प्रस्थान
 
अध्याय 177:  पाण्डवोंका गन्धमादनसे बदरिकाश्रम, सुबाहुनगर और विशाखयूप वनमें होते हुए सरस्वती-तटवर्ती द्वैतवनमें प्रवेश
 
अध्याय 178:  महाबली भीमसेनका हिं सक पशुओंको मारना और अजगरद्वारा पकड़ा जाना
 
अध्याय 179:  भीमसेन और सर्परूपधारी नहुषकी बातचीत, भीमसेनकी चिन्ता तथा युधिष्ठिरद्वारा भीमकी खोज
 
अध्याय 180:  युधिष्ठिरका भीमसेनके पास पहुँचना और सर्परूपधारी नहुषके प्रश्नोंका उत्तर देना
 
अध्याय 181:  युधिष्ठिरद्वारा अपने प्रश्नोंका उचित उत्तर पाकर संतुष्ट हुए सर्परूपधारी नहुषका भीमसेनको छोड़ देना तथा युधिष्ठिरके साथ वार्तालाप करनेके प्रभावसे सर्पयोनिसे मुक्त होकर स्वर्ग जाना
 
 
 
उपपर्व: मार्कण्डेयसमास्या पर्व
अध्याय 182:  वर्षा और शरद्-ऋतुका वर्णन एवं युधिष्ठिर आदिका पुनः द्वैतवनसे काम्यकवनमें प्रवेश
 
अध्याय 183:  काम्यकवनमें पाण्डवोंके पास भगवान् श्रीकृष्ण, मुनिवर मार्ण्कण्डेय तथा नारदजीका आगमन एवं युधिष्ठिरके पूछनेपर मार्कण्डेयजीके द्वारा कर्मफल- भोगका विवेचन
 
अध्याय 184:  तपस्वी तथा स्वधर्मपरायण ब्राह्मणोंका माहात्म्य
 
अध्याय 185:  ब्राह्मणकी महिमाके विषयमें अत्रिमुनि तथा राजा पृथुकी प्रशंसा
 
अध्याय 186:  तार्क्ष्यमुनि और सरस्वतीका संवाद
 
अध्याय 187:  वैवस्वत मनुका चरित्र तथा मत्स्यावतारकी कथा
 
अध्याय 188:  चारों युगोंकी वर्ष-संख्या एवं कलियुगके प्रभावका वर्णन, प्रलयकालका दृश्य और मार्कण्डेयजीको बालमुकुन्दजीके दर्शन, मार्कण्डेयजीका भगवान् के उदरमें प्रवेश कर ब्रह्माण्डदर्शन करना और फिर बाहर निकलकर उनसे वार्तालाप करना
 
अध्याय 189:  भगवान् बालमुकुन्दका मार्कण्डेयको अपने स्वरूपका परिचय देना तथा मार्कण्डेयद्वारा श्रीकृष्णकी महिमाका प्रतिपादन और पाण्डवोंका श्रीकृष्णकी शरणमें जाना
 
अध्याय 190:  युगान्तकालिक कलियुगके समयके बर्तावका तथा कल्कि-अवतारका वर्णन
 
अध्याय 191:  भगवान् कल्किके द्वारा सत्ययुगकी स्थापना और मार्कण्डेयजीका युधिष्ठिरके लिये धर्मोपदेश
 
अध्याय 192:  इक्ष्वाकुवंशी परीक्षित् का मण्डूकराजकी कन्यासे विवाह, शल और दलके चरित्र तथा वामदेव मुनिकी महत्ता
 
अध्याय 193:  इन्द्र और बक मुनिका संवाद
 
अध्याय 194:  क्षत्रिय राजाओंका महत्त्व—सुहोत्र और शिबिकी प्रशंसा
 
अध्याय 195:  राजा ययातिद्वारा ब्राह्मणको सहस्र गौओंका दान
 
अध्याय 196:  सेदुक और वृषदर्भका चरित्र
 
अध्याय 197:  इन्द्र और अग्निद्वारा राजा शिबिकी परीक्षा
 
अध्याय 198:  देवर्षि नारदद्वारा शिबिकी महत्ताका प्रतिपादन
 
अध्याय 199:  राजा इन्द्रद्युम्न तथा अन्य चिरजीवी प्राणियोंकी कथा
 
अध्याय 200:  निन्दित दान, निन्दित जन्म, योग्य दानपात्र, श्राद्धमें ग्राह्य और अग्राह्य ब्राह्मण, दानपात्रके लक्षण, अतिथि-सत्कार, विविध दानोंका महत्त्व, वाणीकी शुद्धि, गायत्री-जप, चित्त-शुद्धि तथा इन्द्रिय-निग्रह आदि विविध विषयोंका वर्णन
 
अध्याय 201:  उत्तंककी तपस्यासे प्रसन्न होकर भगवान् का उन्हें वरदान देना तथा इक्ष्वाकुवंशी राजा कुवलाश्वका धुन्धुमार नाम पड़नेका कारण बताना
 
अध्याय 202:  उत्तंकका राजा बृहदश्वसे धुन्धुका वध करनेके लिये आग्रह
 
अध्याय 203:  ब्रह्माजीकी उत्पत्ति और भगवान् विष्णुके द्वारा मधु-कैटभका वध
 
अध्याय 204:  धुन्धुकी तपस्या और वरप्राप्ति, कुवलाश्वद्वारा धुन्धुका वध और देवताओंका कुवलाश्वको वर देना
 
अध्याय 205:  पतिव्रता स्त्री तथा पिता-माताकी सेवाका माहात्म्य
 
अध्याय 206:  कौशिक ब्राह्मण और पतिव्रताके उपाख्यानके अन्तर्गत ब्राह्मणोंके धर्मका वर्णन
 
अध्याय 207:  कौशिकका धर्मव्याधके पास जाना, धर्मव्याधके द्वारा पतिव्रतासे प्रेषित जान लेनेपर कौशिकको आश्चर्य होना, धर्मव्याधके द्वारा वर्णधर्मका वर्णन, जनकराज्यकी प्रशंसा और शिष्टाचारका वर्णन
 
अध्याय 208:  धर्मव्याधद्वारा हिं सा और अहिं साका विवेचन
 
अध्याय 209:  धर्मकी सूक्ष्मता, शुभाशुभ कर्म और उनके फल तथा ब्रह्मकी प्राप्तिके उपायोंका वर्णन
 
अध्याय 210:  विषयसेवनसे हानि, सत्संगसे लाभ और ब्राह्मी विद्याका वर्णन
 
अध्याय 211:  पंचमहाभूतोंके गुणोंका और इन्द्रियनिग्रहका वर्णन
 
अध्याय 212:  तीनों गुणोंके स्वरूप और फलका वर्णन
 
अध्याय 213:  प्राणवायुकी स्थितिका वर्णन तथा परमात्म-साक्षात्कारके उपाय
 
अध्याय 214:  माता-पिताकी सेवाका दिग्दर्शन
 
अध्याय 215:  धर्मव्याधका कौशिक ब्राह्मणको माता-पिताकी सेवाका उपदेश देकर अपने पूर्वजन्मकी कथा कहते हुए व्याध होनेका कारण बताना
 
अध्याय 216:  कौशिक-धर्मव्याध-संवादका उपसंहार तथा कौशिकका अपने घरको प्रस्थान
 
अध्याय 217:  अग्निका अंगिराको अपना प्रथम पुत्र स्वीकार करना तथा अंगिरासे बृहस्पतिकी उत्पत्ति
 
अध्याय 218:  अंगिराकी संततिका वर्णन
 
अध्याय 219:  बृहस्पतिकी संततिका वर्णन
 
अध्याय 220:  पांचजन्य अग्निकी उत्पत्ति तथा उसकी संततिका वर्णन
 
अध्याय 221:  अग्निस्वरूप तप और भानु (मनुकी) संततिका वर्णन
 
अध्याय 222:  सह नामक अग्निका जलमें प्रवेश और अथर्वा अंगिराद्वारा पुनः उनका प्राकट्य
 
अध्याय 223:  इन्द्रके द्वारा केशीके हाथसे देवसेनाका उद्धार
 
अध्याय 224:  इन्द्रका देवसेनाके साथ ब्रह्माजीके पास तथा ब्रह्मर्षि योंके आश्रमपर जाना, अग्निका मोह और वनगमन
 
अध्याय 225:  स्वाहाका मुनिपत्नियोंके रूपोंमें अग्निके साथ समागम, स्कन्दकी उत्पत्ति तथा उनके द्वारा क्रौंच आदि पर्वतोंका विदारण
 
अध्याय 226:  विश्वामित्रका स्कन्दके जातकर्मादि तेरह संस्कार करना और विश्वामित्रके समझानेपर भी ऋषियोंका अपनी पत्नियोंको स्वीकार न करना तथा अग्निदेव आदिके द्वारा बालक स्कन्दकी रक्षा करना
 
अध्याय 227:  पराजित होकर शरणमें आये हुए इन्द्रसहित देवताओंको स्कन्दका अभयदान
 
अध्याय 228:  स्कन्दके पार्षदोंका वर्णन
 
अध्याय 229:  स्कन्दका इन्द्रके साथ वार्तालाप, देवसेनापतिके पदपर अभिषेक तथा देवसेनाके साथ उनका विवाह
 
अध्याय 230:  कृत्तिकाओंको नक्षत्रमण्डलमें स्थानकी प्राप्ति तथा मनुष्योंको कष्ट देनेवाले विविध ग्रहोंका वर्णन
 
अध्याय 231:  स्कन्दद्वारा स्वाहादेवीका सत्कार, रुद्रदेवके साथ स्कन्द और देवताओंकी भद्रवट-यात्रा, देवासुर-संग्राम, महिषासुर-वध तथा स्कन्दकी प्रशंसा
 
अध्याय 232:  कार्ति केयके प्रसिद्ध नामोंका वर्णन तथा उनका स्तवन
 
 
 
उपपर्व: द्रौपदीसत्यभामासंवाद पर्व
अध्याय 233:  द्रौपदीका सत्यभामाको सती स्त्रीके कर्तव्यकी शिक्षा देना
 
अध्याय 234:  पतिदेवको अनुकूल करनेका उपाय—पतिकी अनन्यभावसे सेवा
 
अध्याय 235:  सत्यभामाका द्रौपदीको आश्वासन देकर श्रीकृष्णके साथ द्वारकाको प्रस्थान
 
 
 
उपपर्व: घोषयात्रा पर्व
अध्याय 236:  पाण्डवोंका समाचार सुनकर धृतराष्ट्रका खेद और चिन्तापूर्ण उद् गार
 
अध्याय 237:  शकुनि और कर्णका दुर्योधनकी प्रशंसा करते हुए उसे वनमें पाण्डवोंके पास चलनेके लिये उभाड़ना
 
अध्याय 238:  दुर्योधनके द्वारा कर्ण और शकुनिकी मन्त्रणा स्वीकार करना तथा कर्ण आदिका घोषयात्राको निमित्त बनाकर द्वैतवनमें जानेके लिये धृतराष्ट्रसे आज्ञा लेने जाना
 
अध्याय 239:  कर्ण आदिके द्वारा द्वैतवनमें जानेका प्रस्ताव, राजा धृतराष्ट्रकी अस्वीकृति, शकुनिका समझाना, धृतराष्ट्रका अनुमति देना तथा दुर्योधनका प्रस्थान
 
अध्याय 240:  दुर्योधनका सेनासहित वनमें जाकर गौओंकी देखभाल करना और उसके सैनिकों एवं गन्धर्वोंमें परस्पर कटु संवाद
 
अध्याय 241:  कौरवोंका गन्धर्वोंके साथ युद्ध और कर्णकी पराजय
 
अध्याय 242:  गन्धर्वोंद्वारा दुर्योधन आदिकी पराजय और उनका अपहरण
 
अध्याय 243:  युधिष्ठिरका भीमसेनको गन्धर्वोंके हाथसे कौरवोंको छुड़ानेका आदेश और इसके लिये अर्जुनकी प्रतिज्ञा
 
अध्याय 244:  पाण्डवोंका गन्धर्वोंके साथ युद्ध
 
अध्याय 245:  पाण्डवोंके द्वारा गन्धर्वोंकी पराजय
 
अध्याय 246:  चित्रसेन, अर्जुन तथा युधिष्ठिरका संवाद और दुर्योधनका छुटकारा
 
अध्याय 247:  सेनासहित दुर्योधनका मार्गमें ठहरना और कर्णके द्वारा उसका अभिनन्दन
 
अध्याय 248:  दुर्योधनका कर्णको अपनी पराजयका समाचार बताना
 
अध्याय 249:  दुर्योधनका कर्णसे अपनी ग्लानिका वर्णन करते हुए आमरण अनशनका निश्चय, दुःशासनको राजा बननेका आदेश, दुःशासनका दुःख और कर्णका दुर्योधनको समझाना
 
अध्याय 250:  कर्णके समझानेपर भी दुर्योधनका आमरण अनशन करनेका ही निश्चय
 
अध्याय 251:  शकुनिके समझानेपर भी दुर्योधनको प्रायोप-वेशनसे विचलित होते न देखकर दैत्योंका कृत्याद्वारा उसे रसातलमें बुलाना
 
अध्याय 252:  दानवोंका दुर्योधनको समझाना और कर्णके अनुरोध करनेपर दुर्योधनका अनशन त्याग करके हस्तिनापुरको प्रस्थान
 
अध्याय 253:  भीष्मका कर्णकी निन्दा करते हुए दुर्योधनको पाण्डवोंसे संधि करनेका परामर्श देना, कर्णके क्षोभपूर्ण वचन और दिग्विजयके लिये प्रस्थान
 
अध्याय 254:  कर्णके द्वारा सारी पृथ्वीपर दिग्विजय और हस्तिनापुरमें उसका सत्कार
 
अध्याय 255:  कर्ण और पुरोहितकी सलाहसे दुर्योधनकी वैष्णवयज्ञके लिये तैयारी
 
अध्याय 256:  दुर्योधनके यज्ञका आरम्भ एवं समाप्ति
 
अध्याय 257:  दुर्योधनके यज्ञके विषयमें लोगोंका मत, कर्णद्वारा अर्जुनके वधकी प्रतिज्ञा, युधिष्ठिरकी चिन्ता तथा दुर्योधनकी शासननीति
 
 
 
उपपर्व: मृगस्वप्नोद्भव पर्व
अध्याय 258:  पाण्डवोंका काम्यकवनमें गमन
 
 
 
उपपर्व: व्रीहिद्रौणिक पर्व
अध्याय 259:  युधिष्ठिरकी चिन्ता, व्यासजीका पाण्डवोंके पास आगमन और दानकी महत्ताका प्रतिपादन
 
अध्याय 260:  दुर्वासाद्वारा महर्षि मुद्गलके दानधर्म एवं धैर्यकी परीक्षा तथा मुद्गलका देवदूतसे कुछ प्रश्न करना
 
अध्याय 261:  देवदूतद्वारा स्वर्गलोकके गुण-दोषोंका तथा दोषरहित विष्णुधामका वर्णन सुनकर मुद् गलका देवदूतको लौटा देना एवं व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाकर अपने आश्रमको लौट जाना
 
 
 
उपपर्व: द्रौपदीहरण पर्व
अध्याय 262:  दुर्योधनका महर्षि दुर्वासाको आतिथ्यसत्कारसे संतुष्ट करके उन्हें युधिष्ठिरके पास भेजकर प्रसन्न होना
 
अध्याय 263:  दुर्वासाका पाण्डवोंके आश्रमपर असमयमें आतिथ्यके लिये जाना, द्रौपदीके द्वारा स्मरण किये जानेपर भगवान् का प्रकट होना तथा पाण्डवोंको दुर्वासाके भयसे मुक्त करना और उनको आश्वासन देकर द्वारका जाना
 
अध्याय 264:  जयद्रथका द्रौपदीको देखकर मोहित होना और उसके पास कोटिकास्यको भेजना
 
अध्याय 265:  कोटिकास्यका द्रौपदीसे जयद्रथ और उसके साथियोंका परिचय देते हुए उसका भी परिचय पूछना
 
अध्याय 266:  द्रौपदीका कोटिकास्यको उत्तर
 
अध्याय 267:  जयद्रथ और द्रौपदीका संवाद
 
अध्याय 268:  द्रौपदीका जयद्रथको फटकारना और जयद्रथ-द्वारा उसका अपहरण
 
अध्याय 269:  पाण्डवोंका आश्रमपर लौटना और धात्रेयिकासे द्रौपदीहरणका वृत्तान्त जानकर जयद्रथका पीछा करना
 
अध्याय 270:  द्रौपदीद्वारा जयद्रथके सामने पाण्डवोंके पराक्रमका वर्णन
 
अध्याय 271:  पाण्डवोंद्वारा जयद्रथकी सेनाका संहार, जयद्रथका पलायन, द्रौपदी तथा नकुल- सहदेवके साथ युधिष्ठिरका आश्रमपर लौटना तथा भीम और अर्जुनका वनमें जयद्रथका पीछा करना
 
 
 
उपपर्व: जयद्रथविमोक्षण पर्व
अध्याय 272:  भीमद्वारा बंदी होकर जयद्रथका युधिष्ठिरके सामने उपस्थित होना, उनकी आज्ञासे छूटकर उसका गंगाद्वारमें तप करके भगवान् शिवसे वरदान पाना तथा भगवान् शिवद्वारा अर्जुनके सहायक भगवान् श्रीकृष्णकी महिमाका वर्णन
 
 
 
उपपर्व: रामोपाख्यान पर्व
अध्याय 273:  अपनी दुरवस्थासे दुःखी हुए युधिष्ठिरका मार्कण्डेय मुनिसे प्रश्न करना
 
अध्याय 274:  श्रीराम आदिका जन्म तथा कुबेरकी उत्पत्ति और उन्हें ऐश्वर्यकी प्राप्ति
 
अध्याय 275:  रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण, खर और शूर्पणखाकी उत्पत्ति, तपस्या और वर- प्राप्ति तथा कुबेरका रावणको शाप देना
 
अध्याय 276:  देवताओंका ब्रह्माजीके पास जाकर रावणके अत्याचारसे बचानेके लिये प्रार्थना करना तथा ब्रह्माजीकी आज्ञासे देवताओंका रीछ और वानरयोनिमें संतान उत्पन्न करना एवं दुन्दुभी गन्धर्वीका मन्थरा बनकर आना
 
अध्याय 277:  श्रीरामके राज्याभिषेककी तैयारी, रामवनगमन, भरतकी चित्रकूटयात्रा, रामके द्वारा खर-दूषण आदि राक्षसोंका नाश तथा रावणका मारीचके पास जाना
 
अध्याय 278:  मृगरूपधारी मारीचका वध तथा सीताका अपहरण
 
अध्याय 279:  रावणद्वारा जटायुका वध, श्रीरामद्वारा उसका अन्त्येष्टि-संस्कार, कबन्धका वध तथा उसके दिव्यस्वरूपसे वार्तालाप
 
अध्याय 280:  राम और सुग्रीवकी मित्रता, वाली और सुग्रीवका युद्ध, श्रीरामके द्वारा वालीका वध तथा लंकाकी अशोकवाटिकामें राक्षसियोंद्वारा डरायी हुई सीताको त्रिजटाका आश्वासन
 
अध्याय 281:  रावण और सीताका संवाद
 
अध्याय 282:  श्रीरामका सुग्रीवपर कोप, सुग्रीवका सीताकी खोजमें वानरोंको भेजना तथा श्रीहनुमान् जीका लौटकर अपनी लंकायात्राका वृत्तान्त निवेदन करना
 
अध्याय 283:  वानर-सेनाका संगठन, सेतुका निर्माण, विभीषणका अभिषेक और लंकाकी सीमामें सेनाका प्रवेश तथा अंगदको रावणके पास दूत बनाकर भेजना
 
अध्याय 284:  अंगदका रावणके पास जाकर रामका संदेश सुनाकर लौटना तथा राक्षसों और वानरोंका घोर संग्राम
 
अध्याय 285:  श्रीराम और रावणकी सेनाओंका द्वन्द्वयुद्ध
 
अध्याय 286:  प्रहस्त और धूम्राक्षके वधसे दुःखी हुए रावणका कुम्भकर्णको जगाना और उसे युद्धमें भेजना
 
अध्याय 287:  कुम्भकर्ण, वज्रवेग और प्रमाथीका वध
 
अध्याय 288:  इन्द्रजित् का मायामय युद्ध तथा श्रीराम और लक्ष्मणकी मूर्च्छा
 
अध्याय 289:  श्रीराम-लक्ष्मणका सचेत होकर कुबेरके भेजे हुए अभिमन्त्रित जलसे प्रमुख वानरोंसहित अपने नेत्र धोना, लक्ष्मणद्वारा इन्द्रजितका वध एवं सीताको मारनेके लिये उद्यत हुए रावणका अविन्ध्यके द्वारा निवारण करना
 
अध्याय 290:  राम और रावणका युद्ध तथा रावणका वध
 
अध्याय 291:  श्रीरामका सीताके प्रति संदेह, देवताओंद्वारा सीताकी शुद्धिका समर्थन, श्रीरामका दल-बलसहित लंकासे प्रस्थान एवं किष्किन्धा होते हुए अयोध्यामें पहुँचकर भरतसे मिलना तथा राज्यपर अभिषिक्त होना
 
अध्याय 292:  मार्कण्डेयजीके द्वारा राजा युधिष्ठिरको आश्वासन
 
 
 
उपपर्व: पतिव्रतामाहात्म्य पर्व
अध्याय 293:  राजा अश्वपतिको देवी सावित्रीके वरदानसे सावित्री नामक कन्याकी प्राप्ति तथा सावित्रीका पतिवरणके लिये विभिन्न देशोंमें भ्रमण
 
अध्याय 294:  सावित्रीका सत्यवान् के साथ विवाह करनेका दृढ़ निश्चय
 
अध्याय 295:  सत्यवान् और सावित्रीका विवाह तथा सावित्रीका अपनी सेवाओंद्वारा सबको संतुष्ट करना
 
अध्याय 296:  सावित्रीकी व्रतचर्या तथा सास-ससुर और पतिकी आज्ञा लेकर सत्यवान् के साथ उसका वनमें जाना
 
अध्याय 297:  सावित्री और यमका संवाद, यमराजका संतुष्ट होकर सावित्रीको अनेक वरदान देते हुए मरे हुए सत्यवान् को भी जीवित कर देना तथा सत्यवान् और सावित्रीका वार्तालाप एवं आश्रमकी ओर प्रस्थान
 
अध्याय 298:  पत्नीसहित राजा द्युमत्सेनकी सत्यवान् के लिये चिन्ता, ऋषियोंका उन्हें आश्वासन देना, सावित्री और सत्यवान् का आगमन तथा सावित्रीद्वारा विलम्बसे आनेके कारणपर प्रकाश डालते हुए वर-प्राप्तिका विवरण बताना
 
अध्याय 299:  शाल्वदेशकी प्रजाके अनुरोधसे महाराज द्युमत्सेनका राज्याभिषेक कराना तथा सावित्रीको सौ पुत्रों और सौ भाइयोंकी प्राप्ति
 
 
 
उपपर्व: कुण्डलाहरण पर्व
अध्याय 300:  सूर्यका स्वप्नमें कर्णको दर्शन देकर उसे इन्द्रको कुण्डल और कवच न देनेके लिये सचेत करना तथा कर्णका आग्रहपूर्वक कुण्डल और कवच देनेका ही निश्चय रखना
 
अध्याय 301:  सूर्यका कर्णको समझाते हुए उसे इन्द्रको कुण्डल न देनेका आदेश देना
 
अध्याय 302:  सूर्य-कर्ण-संवाद, सूर्यकी आज्ञाके अनुसार कर्णका इन्द्रसे शक्ति लेकर ही उन्हें कुण्डल और कवच देनेका निश्चय
 
अध्याय 303:  कुन्तिभोजके यहाँ ब्रह्मर्षि दुर्वासाका आगमन तथा राजाका उनकी सेवाके लिये पृथाको आवश्यक उपदेश देना
 
अध्याय 304:  कुन्तीका पितासे वार्तालाप और ब्राह्मणकी परिचर्या
 
अध्याय 305:  कुन्तीकी सेवासे संतुष्ट होकर तपस्वी ब्राह्मणका उसको मन्त्रका उपदेश देना
 
अध्याय 306:  कुन्तीके द्वारा सूर्यदेवताका आवाहन तथा कुन्ती-सूर्य-संवाद
 
अध्याय 307:  सूर्यद्वारा कुन्तीके उदरमें गर्भस्थापन
 
अध्याय 308:  कर्णका जन्म, कुन्तीका उसे पिटारीमें रखकर जलमें बहा देना और विलाप करना
 
अध्याय 309:  अधिरथ सूत तथा उसकी पत्नी राधाको बालक कर्णकी प्राप्ति, राधाके द्वारा उसका पालन, हस्तिनापुरमें उसकी शिक्षा-दीक्षा तथा कर्णके पास इन्द्रका आगमन
 
अध्याय 310:  इन्द्रका कर्णको अमोघ शक्ति देकर बदलेमें उसके कवच-कुण्डल लेना
 
 
 
उपपर्व: आरणेय पर्व
अध्याय 311:  ब्राह्मणकी अरणि एवं मन्थन-काष्ठका पता लगानेके लिये पाण्डवोंका मृगके पीछे दौड़ना और दुःखी होना
 
अध्याय 312:  पानी लानेके लिये गये हुए नकुल आदि चार भाइयोंका सरोवरके तटपर अचेत होकर गिरना
 
अध्याय 313:  यक्ष और युधिष्ठिरका प्रश्नोत्तर तथा युधिष्ठिरके उत्तरसे संतुष्ट हुए यक्षका चारों भाइयोंके जीवित होनेका वरदान देना
 
अध्याय 314:  यक्षका चारों भाइयोंको जिलाकर धर्मके रूपमें प्रकट हो युधिष्ठिरको वरदान देना
 
अध्याय 315:  अज्ञातवासके लिये अनुमति लेते समय शोका-कुल हुए युधिष्ठिरको महर्षि धौम्यका समझाना, भीमसेनका उत्साह देना तथा आश्रमसे दूर जाकर पाण्डवोंका परस्पर परामर्शके लिये बैठना
 
अध्याय 316:  वनपर्व-श्रवण-महिमा
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
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  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
   
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥