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उपपर्व: जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व |
अध्याय 1: कुरुक्षेत्रमें उभय पक्षके सैनिकोंकी स्थिति तथा युद्धके नियमोंका निर्माण |
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अध्याय 2: वेदव्यासजीके द्वारा संजयको दिव्य दृष्टिका दान तथा भयसूचक उत्पातोंका वर्णन |
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अध्याय 3: व्यासजीके द्वारा अमंगलसूचक उत्पातों तथा विजयसूचक लक्षणोंका वर्णन |
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अध्याय 4: धृतराष्ट्रके पूछनेपर संजयके द्वारा भूमिके महत्त्वका वर्णन |
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अध्याय 5: पंचमहाभूतों तथा सुदर्शनद्वीपका संक्षिप्त वर्णन |
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अध्याय 6: सुदर्शनके वर्ष, पर्वत, मेरुगिरि, गंगानदी तथा शशाकृतिका वर्णन |
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अध्याय 7: उत्तर कुरु, भद्राश्ववर्ष तथा माल्यवान् का वर्णन |
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अध्याय 8: रमणक, हिरण्यक, शृंगवान् पर्वत तथा ऐरावतवर्षका वर्णन |
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अध्याय 9: भारतवर्षकी नदियों, देशों तथा जनपदोंके नाम और भूमिका महत्त्व |
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अध्याय 10: भारतवर्षमें युगोंके अनुसार मनुष्योंकी आयु तथा गुणोंका निरूपण |
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उपपर्व: भूमि पर्व |
अध्याय 11: शाकद्वीपका वर्णन |
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अध्याय 12: कुश, क्रौंच और पुष्कर आदि द्वीपोंका तथा राहु, सूर्य एवं चन्द्रमाके प्रमाणका वर्णन |
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उपपर्व: श्रीमद्भगवद गीता पर्व |
अध्याय 13: संजयका युद्धभूमिसे लौटकर धृतराष्ट्रको भीष्मकी मृत्युका समाचार सुनाना |
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अध्याय 14: धृतराष्ट्रका विलाप करते हुए भीष्मजीके मारे जानेकी घटनाको विस्तारपूर्वक जाननेके लिये संजयसे प्रश्न करना |
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अध्याय 15: संजयका युद्धके वृत्तान्तका वर्णन आरम्भ करना—दुर्योधनका दुःशासनको भीष्मकी रक्षाके लिये समुचित व्यवस्था करनेका आदेश |
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अध्याय 16: दुर्योधनकी सेनाका वर्णन |
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अध्याय 17: कौरवमहारथियोंका युद्धके लिये आगे बढ़ना तथा उनके व्यूह, वाहन और ध्वज आदिका वर्णन |
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अध्याय 18: कौरव-सेनाका कोलाहल तथा भीष्मके रक्षकोंका वर्णन |
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अध्याय 19: व्यूह-निर्माणके विषयमें युधिष्ठिर और अर्जुनकी बातचीत, अर्जुनद्वारा वज्रव्यूहकी रचना, भीमसेनकी अध्यक्षतामें सेनाका आगे बढ़ना |
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अध्याय 20: दोनों सेनाओंकी स्थिति तथा कौरव-सेनाका अभियान |
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अध्याय 21: कौरव-सेनाको देखकर युधिष्ठिरका विषाद करना और ‘श्रीकृष्णकी कृपासे ही विजय होती है’ यह कहकर अर्जुनका उन्हें आश्वासन देना |
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अध्याय 22: युधिष्ठिरकी रणयात्रा, अर्जुन और भीमसेनकी प्रशंसा तथा श्रीकृष्णका अर्जुनसे कौरव-सेनाको मारनेके लिये कहना |
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अध्याय 23: अर्जुनके द्वारा दुर्गादेवीकी स्तुति, वरप्राप्ति और अर्जुनकृत दुर्गास्तवनके पाठकी महिमा |
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अध्याय 24: सैनिकोंके हर्ष और उत्साहके विषयमें धृतराष्ट्र और संजयका संवाद |
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अध्याय 25: (श्रीमद्भगवद गीतायां प्रथमोऽध्यायः) दोनों सेनाओंके प्रधान-प्रधान वीरों एवं शंख-ध्वनिका वर्णन तथा स्वजनवधके पापसे भयभीत हुए अर्जुनका विषाद |
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अध्याय 26: (श्रीमद्भगवद गीतायां द्वितीयोऽध्यायः) अर्जुनको युद्धके लिये उत्साहित करते हुए भगवान् के द्वारा नित्यानित्य वस्तुके विवेचनपूर्वक सांख्ययोग, कर्मयोग एवं स्थितप्रज्ञकी स्थिति और महिमाका प्रतिपादन |
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अध्याय 27: (श्रीमद्भगवद गीतायां तृतीयोऽध्यायः) ज्ञानयोग और कर्मयोग आदि समस्त साधनोंके अनुसार कर्तव्यकर्म करनेकी आवश्यकताका प्रतिपादन एवं स्वधर्मपालनकी महिमा तथा कामनिरोधके उपायका वर्णन |
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अध्याय 28: (श्रीमद्भगवद गीतायां चतुर्थोऽध्यायः) सगणु भगवान् के प्रभाव, निष्काम कर्मयोग तथा योगी महात्मा पुरुषोंके आचरण और उनकी महिमाका वर्णन करते हुए विविध यज्ञों एवं ज्ञानकी महिमाका वर्णन |
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अध्याय 29: (श्रीमद्भगवद गीतायां पञ्चमोऽध्यायः) सांख्ययोग, निष्काम कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं भक्तिसहित ध्यानयोगका वर्णन |
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अध्याय 30: (श्रीमद्भगवद गीतायां षष्ठोऽध्यायः) निष्काम कर्मयोगका प्रतिपादन करते हुए आत्मोद्धारके लिये प्रेरणा तथा मनोनिग्रहपूर्वक ध्यानयोग एवं योगभ्रष्टकी गतिका वर्णन |
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अध्याय 31: (श्रीमद्भगवद गीतायां सप्तमोऽध्यायः) ज्ञान-विज्ञान, भगवान् की व्यापकता, अन्य देवताओंकी उपासना एवं भगवान् को प्रभावसहित न जाननेवालोंकी निन्दा और जाननेवालोंकी महिमाका कथन |
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अध्याय 32: (श्रीमद्भगवद गीतायामष्टमोऽध्यायः) ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादिके विषयमें अर्जुनके सात प्रश्न और उनका उत्तर एवं भक्तियोग तथा शुक्ल और कृष्ण मार्गोंका प्रतिपादन |
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अध्याय 33: (श्रीमद्भगवद गीतायां नवमोऽध्यायः) ज्ञान-विज्ञान और जगत् की उत्पत्तिका, आसुरी और दैवी सम्पदावालोंका, प्रभावसहित भगवान् के स्वरूपका, सकाम- निष्काम उपासनाका एवं भगवद्भक्तिकी महिमाका वर्णन |
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अध्याय 34: (श्रीमद्भगवद गीतायां दशमोऽध्यायः) भगवान् की विभूति और योगशक्तिका तथा प्रभावसहित भक्तियोगका कथन, अर्जुनके पूछनेपर भगवान् द्वारा अपनी विभूतियोंका और योगशक्तिका पुनः वर्णन |
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अध्याय 35: (श्रीमद्भगवद गीतायामेकादशोऽध्यायः) विश्वरूपका दर्शन करानेके लिये अर्जुनकी प्रार्थना, भगवान् और संजयद्वारा विश्वरूपका वर्णन, अर्जुनद्वारा भगवान् के विश्वरूपका देखा जाना, भयभीत हुए अर्जुनद्वारा भगवान् की स्तुति-प्रार्थना, भगवान् द्वारा विश्वरूप और चतुर्भुज-रूपके दर्शनकी महिमा और केवल अनन्यभक्तिसे ही भगवान् की प्राप्तिका कथन |
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अध्याय 36: (श्रीमद्भगवद गीतायां द्वादशोऽध्यायः) साकार और निराकारके उपासकोंकी उत्तमताका निर्णय तथा भगवत्प्राप्तिके उपायका एवं भगवत्प्राप्तिवाले पुरुषोंके लक्षणोंका वर्णन |
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अध्याय 37: (श्रीमद्भगवद गीतायां त्रयोदशोऽध्यायः) ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ और प्रकृ ति- पुरुषका वर्णन |
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अध्याय 38: (श्रीमद्भगवद गीतायां चतुर्दशोऽध्यायः) ज्ञानकी महिमा और प्रकृ ति-पुरुषसे जगत् की उत्पत्तिका, सत्त्व, रज, तम—तीनों गुणोंका, भगवत्प्राप्तिके उपायका एवं गुणातीत पुरुषके लक्षणोंका वर्णन |
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अध्याय 39: (श्रीमद्भगवद गीतायां पञ्चदशोऽध्यायः) संसारवृक्षका, भगवत्प्राप्तिके उपायका, जीवात्माका, प्रभावसहित परमेश्वरके स्वरूपका एवं क्षर, अक्षर और पुरुषोत्तमके तत्त्वका वर्णन |
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अध्याय 40: (श्रीमद्भगवद गीतायां षोडशोऽध्यायः) फलसहित दैवी और आसुरी सम्पदाका वर्णन तथा शास्त्रविपरीत आचरणोंको त्यागने और शास्त्रके अनुकूल आचरण करनेके लिये प्रेरणा |
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अध्याय 41: (श्रीमद्भगवद गीतायां सप्तदशोऽध्यायः) श्रद्धाका और शास्त्रविपरीत घोर तप करनेवालोंका वर्णन, आहार, यज्ञ, तप और दानके पृथक्-पृथक् भेद तथा ॐ, तत्, सत् के प्रयोगकी व्याख्या |
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अध्याय 42: (श्रीमद्भगवद गीतायामष्टादशोऽध्यायः) त्यागका, सांख्यसिद्धान्तका, फलसहित वर्ण-धर्मका, उपासनासहित ज्ञाननिष्ठाका, भक्तिसहित निष्काम कर्मयोगका एवं गीताके माहात्म्यका वर्णन |
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उपपर्व: भीष्मवध पर्व |
अध्याय 43: गीताका माहात्म्य तथा युधिष्ठिरका भीष्म, द्रोण कृप और शल्यसे अनुमति लेकर युद्धके लिये तैयार होना |
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अध्याय 44: कौरव-पाण्डवोंके प्रथम दिनके युद्धका आरम्भ |
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अध्याय 45: उभयपक्षके सैनिकोंका द्वन्द्व-युद्ध |
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अध्याय 46: कौरव-पाण्डव-सेनाका घमासान युद्ध |
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अध्याय 47: भीष्मके साथ अभिमन्युका भयंकर युद्ध, शल्यके द्वारा उत्तरकुमारका वध और श्वेतका पराक्रम |
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अध्याय 48: श्वेतका महाभयंकर पराक्रम और भीष्मके द्वारा उसका वध |
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अध्याय 49: शंखका युद्ध, भीष्मका प्रचण्ड पराक्रम तथा प्रथम दिनके युद्धकी समाप्ति |
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अध्याय 50: युधिष्ठिरकी चिन्ता, भगवान् श्रीकृष्णद्वारा आश्वासन, धृष्टद्युम्नका उत्साह तथा द्वितीय दिनके युद्धके लिये क्रौंचारुणव्यूहका निर्माण |
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अध्याय 51: कौरव-सेनाकी व्यूह-रचना तथा दोनों दलोंमें शंखध्वनि और सिं हनाद |
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अध्याय 52: भीष्म और अर्जुनका युद्ध |
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अध्याय 53: धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्यका युद्ध |
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अध्याय 54: भीमसेनका कलिं गों और निषादोंसे युद्ध, भीमसेनके द्वारा शक्रदेव, भानुमान् और केतुमान् का वध तथा उनके बहुत-से सैनिकोंका संहार |
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अध्याय 55: अभिमन्यु और अर्जुनका पराक्रम तथा दूसरे दिनके युद्धकी समाप्ति |
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अध्याय 56: तीसरे दिन—कौरव-पाण्डवोंकी व्यूह-रचना तथा युद्धका आरम्भ |
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अध्याय 57: उभयपक्षकी सेनाओंका घमासान युद्ध |
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अध्याय 58: पाण्डव-वीरोंका पराक्रम, कौरव-सेनामें भगदड़ तथा दुर्योधन और भीष्मका संवाद |
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अध्याय 59: भीष्मका पराक्रम, श्रीकृष्णका भीष्मको मारनेके लिये उद्यत होना, अर्जुनकी प्रतिज्ञा और उनके द्वारा कौरव-सेनाकी पराजय, तृतीय दिवसके युद्धकी समाप्ति |
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अध्याय 60: चौथे दिन—दोनों सेनाओंका व्यूह-निर्माण तथा भीष्म और अर्जुनका द्वैरथ-युद्ध |
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अध्याय 61: अभिमन्युका पराक्रम और धृष्टद्युम्नद्वारा शलके पुत्रका वध |
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अध्याय 62: धृष्टद्युम्न और शल्य आदि दोनों पक्षके वीरोंका युद्ध तथा भीमसेनके द्वारा गजसेनाका संहार |
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अध्याय 63: युद्धस्थलमें प्रचण्ड पराक्रमकारी भीमसेनका भीष्मके साथ युद्ध तथा सात्यकि और भूरिश्रवाकी मुठभेड़ |
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अध्याय 64: भीमसेन और घटोत्कचका पराक्रम, कौरवोंकी पराजय तथा चौथे दिनके युद्धकी समाप्ति |
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अध्याय 65: धृतराष्ट्र-संजय-संवादके प्रसंगमें दुर्योधनके द्वारा पाण्डवोंकी विजयका कारण पूछनेपर भीष्मका ब्रह्माजीके द्वारा की हुई भगवत्-स्तुतिका कथन |
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अध्याय 66: नारायणावतार श्रीकृष्ण एवं नरावतार अर्जुनकी महिमाका प्रतिपादन |
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अध्याय 67: भगवान् श्रीकृष्णकी महिमा |
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अध्याय 68: ब्रह्मभूतस्तोत्र तथा श्रीकृष्ण और अर्जुनकी महत्ता |
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अध्याय 69: कौरवोंद्वारा मकरव्यूह तथा पाण्डवोंद्वारा श्येन-व्यूहका निर्माण एवं पाँचवें दिनके युद्धका आरम्भ |
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अध्याय 70: भीष्म और भीमसेनका घमासान युद्ध |
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अध्याय 71: भीष्म, अर्जुन आदि योद्धाओंका घमासान युद्ध |
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अध्याय 72: दोनों सेनाओंका परस्पर घोर युद्ध |
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अध्याय 73: विराट-भीष्म, अश्वत्थामा-अर्जुन, दुर्योधन-भीमसेन तथा अभिमन्यु और लक्ष्मणके द्वन्द्व-युद्ध |
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अध्याय 74: सात्यकि और भूरिश्रवाका युद्ध, भूरिश्रवाद्वारा सात्यकिके दस पुत्रोंका वध, अर्जुनका पराक्रम तथा पाँचवें दिनके युद्धका उपसंहार |
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अध्याय 75: छठे दिनके युद्धका आरम्भ, पाण्डव तथा कौरव-सेनाका क्रमशः मकरव्यूह एवं क्रौंचव्यूह बनाकर युद्धमें प्रवृत्त होना |
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अध्याय 76: धृतराष्ट्रकी चिन्ता |
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अध्याय 77: भीमसेन, धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्यका पराक्रम |
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अध्याय 78: उभय पक्षकी सेनाओंका संकुलयुद्ध |
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अध्याय 79: भीमसेनके द्वारा दुर्योधनकी पराजय, अभिमन्यु और द्रौपदीपुत्रोंका धृतराष्ट्रपुत्रोंके साथ युद्ध तथा छठें दिनके युद्धकी समाप्ति |
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अध्याय 80: भीष्मद्वारा दुर्योधनको आश्वासन तथा सातवें दिनके युद्धके लिये कौरव-सेनाका प्रस्थान |
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अध्याय 81: सातवें दिनके युद्धमें कौरव-पाण्डव-सेनाओंका मण्डल और वज्रव्यूह बनाकर भीषण संघर्ष |
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अध्याय 82: श्रीकृष्ण और अर्जुनसे डरकर कौरव-सेनामें भगदड़, द्रोणाचार्य और विराटका युद्ध, विराट-पुत्र शंखका वध, शिखण्डी और अश्वत्थामाका युद्ध, सात्यकिके द्वारा अलम्बुषकी पराजय, धृष्टद्युम्नके द्वारा दुर्योधनकी हार तथा भीमसेन और कृतवर्माका युद्ध |
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अध्याय 83: इरावान् के द्वारा विन्द और अनुविन्दकी पराजय, भगदत्तसे घटोत्कचका हारना तथा मद्रराजपर नकुल और सहदेवकी विजय |
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अध्याय 84: युधिष्ठिरसे राजा श्रुतायुका पराजित होना, युद्धमें चेकितान और कृपाचार्यका मूर्छि त होना, भूरिश्रवासे धृष्टकेतुका और अभिमन्युसे चित्रसेन आदिका पराजित होना एवं सुशर्मा आदिसे अर्जुनका युद्धारम्भ |
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अध्याय 85: अर्जुनका पराक्रम, पाण्डवोंका भीष्मपर आक्रमण, युधिष्ठिरका शिखण्डीको उपालम्भ और भीमका पुरुषार्थ |
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अध्याय 86: भीष्म और युधिष्ठिरका युद्ध, धृष्टद्युम्न और सात्यकिके साथ विन्द और अनुविन्दका संग्राम, द्रोण आदिका पराक्रम और सातवें दिनके युद्धकी समाप्ति |
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अध्याय 87: आठवें दिन व्यूहबद्ध कौरव-पाण्डव-सेनाओंकी रणयात्रा और उनका परस्पर घमासान युद्ध |
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अध्याय 88: भीष्मका पराक्रम, भीमसेनके द्वारा धृतराष्ट्रके आठ पुत्रोंका वध तथा दुर्योधन और भीष्मकी युद्धविषयक बातचीत |
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अध्याय 89: कौरव-पाण्डव-सेनाका घमासान युद्ध और भयानक जनसंहार |
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अध्याय 90: इरावान् के द्वारा शकुनिके भाइयोंका तथा राक्षस अलम्बुषके द्वारा इरावान् का वध |
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अध्याय 91: घटोत्कच और दुर्योधनका भयानक युद्ध |
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अध्याय 92: घटोत्कचका दुर्योधन एवं द्रोण आदि प्रमुख वीरोंके साथ भयंकर युद्ध |
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अध्याय 93: घटोत्कचकी रक्षाके लिये आये हुए भीम आदि शूरवीरोंके साथ कौरवोंका युद्ध और उनका पलायन |
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अध्याय 94: दुर्योधन और भीमसेनका एवं अश्वत्थामा और राजा नीलका युद्ध तथा घटोत्कचकी मायासे मोहित होकर कौरव-सेनाका पलायन |
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अध्याय 95: दुर्योधनके अनुरोध और भीष्मजीकी आज्ञासे भगदत्तका घटोत्कच, भीमसेन और पाण्डव-सेनाके साथ घोर युद्ध |
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अध्याय 96: इरावान् के वधसे अर्जुनका दुःखपूर्ण उद् गार, भीमसेनके द्वारा धृतराष्ट्रके नौ पुत्रोंका वध, अभिमन्यु और अम्बष्ठका युद्ध, युद्धकी भयानक स्थितिका वर्णन तथा आठवें दिनके युद्धका उपसंहार |
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अध्याय 97: दुर्योधनका अपने मन्त्रियोंसे सलाह करके भीष्मसे पाण्डवोंको मारने अथवा कर्णको युद्धके लिये आज्ञा देनेका अनुरोध करना |
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अध्याय 98: भीष्मका दुर्योधनको अर्जुनका पराक्रम बताना और भयंकर युद्धके लिये प्रतिज्ञा करना तथा प्रातःकाल दुर्योधनके द्वारा भीष्मकी रक्षाकी व्यवस्था |
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अध्याय 99: नवें दिनके युद्धके लिये उभयपक्षकी सेनाओंकी व्यूह-रचना और उनके घमासान युद्धका आरम्भ तथा विनाशसूचक उत्पातोंका वर्णन |
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अध्याय 100: द्रौपदीके पाँचों पुत्रों और अभिमन्युका राक्षस अलम्बुषके साथ घोर युद्ध एवं अभिमन्युके द्वारा नष्ट होती हुई कौरव-सेनाका युद्धभूमिसे पलायन |
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अध्याय 101: अभिमन्युके द्वारा अलम्बुषकी पराजय, अर्जुनके साथ भीष्मका तथा कृपाचार्य, अश्वत्थामा और द्रोणाचार्यके साथ सात्यकिका युद्ध |
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अध्याय 102: द्रोणाचार्य और सुशर्माके साथ अर्जुनका युद्ध तथा भीमसेनके द्वारा गजसेनाका संहार |
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अध्याय 103: उभय पक्षकी सेनाओंका घमासान युद्ध और रक्तमयी रणनदीका वर्णन |
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अध्याय 104: अर्जुनके द्वारा त्रिगर्तोंकी पराजय, कौरव-पाण्डव सैनिकोंका घोर युद्ध, अभिमन्युसे चित्रसेनकी, द्रोणसे द्रुपदकी और भीमसेनसे बाह्लीककी पराजय तथा सात्यकि और भीष्मका युद्ध |
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अध्याय 105: दुर्योधनका दुःशासनको भीष्मकी रक्षाके लिये आदेश, युधिष्ठिर और नकुल-सहदेवके द्वारा शकुनिकी घुड़सवार-सेनाकी पराजय तथा शल्यके साथ उन सबका युद्ध |
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अध्याय 106: भीष्मके द्वारा पराजित पाण्डव-सेनाका पलायन और भीष्मको मारनेके लिये उद्यत हुए श्रीकृष्णको अर्जुनका रोकना |
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अध्याय 107: नवें दिनके युद्धकी समाप्ति, रातमें पाण्डवोंकी गुप्त मन्त्रणा तथा श्रीकृष्णसहित पाण्डवोंका भीष्मसे मिलकर उनके वधका उपाय जानना |
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अध्याय 108: दसवें दिन उभयपक्षकी सेनाका रणके लिये प्रस्थान तथा भीष्म और शिखण्डीका समागम एवं अर्जुनका शिखण्डीको भीष्मका वध करनेके लिये उत्साहित करना |
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अध्याय 109: भीष्म और दुर्योधनका संवाद तथा भीष्मके द्वारा लाखों सैनिकोंका संहार |
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अध्याय 110: अर्जुनके प्रोत्साहनसे शिखण्डीका भीष्मपर आक्रमण और दोनों सेनाओंके प्रमुख वीरोंका परस्पर युद्ध तथा दुःशासनका अर्जुनके साथ घोर युद्ध |
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अध्याय 111: कौरव-पाण्डवपक्षके प्रमुख महारथियोंके द्वन्द्व-युद्धका वर्णन |
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अध्याय 112: द्रोणाचार्यका अश्वत्थामाको अशुभ शकुनोंकी सूचना देते हुए उसे भीष्मकी रक्षाके लिये धृष्टद्युम्नसे युद्ध करनेका आदेश देना |
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अध्याय 113: कौरवपक्षके दस प्रमुख महारथियोंके साथ अकेले घोर युद्ध करते हुए भीमसेनका अद्भतु पराक्रम |
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अध्याय 114: कौरवपक्षके प्रमुख महारथियोंके साथ युद्धमें भीमसेन और अर्जुनका अद्भतु पुरुषार्थ |
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अध्याय 115: भीष्मके आदेशसे युधिष्ठिरका उनपर आक्रमण तथा कौरव-पाण्डव सैनिकोंका भीषण युद्ध |
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अध्याय 116: कौरव-पाण्डव महारथियोंके द्वन्द्व-युद्धका वर्णन तथा भीष्मका पराक्रम |
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अध्याय 117: उभय पक्षकी सेनाओंका युद्ध, दुःशासनका पराक्रम तथा अर्जुनके द्वारा भीष्मका मूर्च्छित होना |
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अध्याय 118: भीष्मका अद्भतु पराक्रम करते हुए पाण्डव-सेनाका भीषण संहार |
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अध्याय 119: कौरवपक्षके प्रमुख महारथियोंद्वारा सुरक्षित होनेपर भी अर्जुनका भीष्मको रथसे गिराना, शरशय्यापर स्थित भीष्मके समीप हंसरूपधारी ऋषियोंका आगमन एवं उनके कथनसे भीष्मका उत्तरायणकी प्रतीक्षा करते हुए प्राण धारण करना |
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अध्याय 120: भीष्मजीकी महत्ता तथा अर्जुनके द्वारा भीष्मको तकिया देना एवं उभय पक्षकी सेनाओंका अपने शिविरमें जाना और श्रीकृष्ण-युधिष्ठिर-संवाद |
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अध्याय 121: अर्जुनका दिव्य जल प्रकट करके भीष्मजीकी प्यास बुझाना तथा भीष्मजीका अर्जुनकी प्रशंसा करते हुए दुर्योधनको संधिके लिये समझाना |
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अध्याय 122: भीष्म और कर्णका रहस्यमय संवाद |
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