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श्री महाभारत  »  पर्व 9: शल्य पर्व  » 
 
 
 
ह्रदप्रवेश पर्वगदा पर्व
 
 
 
 
अध्याय 1:  संजयके मुखसे शल्य और दुर्योधनके वधका वृत्तान्त सुनकर राजा धृतराष्ट्रका मूर्च्छित होना और सचेत होनेपर उन्हें विदुरका आश्वासन देना
 
अध्याय 2:  राजा धृतराष्ट्रका विलाप करना और संजयसे युद्धका वृत्तान्त पूछना
 
अध्याय 3:  कर्णके मारे जानेपर पाण्डवोंके भयसे कौरवसेनाका पलायन, सामना करनेवाले पचीस हजार पैदलोंका भीमसेनद्वारा वध तथा दुर्योधनका अपने सैनिकोंको समझा-बुझाकर पुनः पाण्डवोंके साथ युद्धमें लगाना
 
अध्याय 4:  कृपाचार्यका दुर्योधनको संधिके लिये समझाना
 
अध्याय 5:  दुर्योधनका कृपाचार्यको उत्तर देते हुए संधि स्वीकार न करके युद्धका ही निश्चय करना
 
अध्याय 6:  दुर्योधनके पूछनेपर अश्वत्थामाका शल्यको सेनापति बनानेके लिये प्रस्ताव, दुर्योधनका शल्यसे अनुरोध और शल्यद्वारा उसकी स्वीकृति
 
अध्याय 7:  राजा शल्यके वीरोचित उद् गार तथा श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको शल्यवधके लिये उत्साहित करना
 
अध्याय 8:  उभयपक्षकी सेनाओंका समरांगणमें उपस्थित होना एवं बची हुई दोनों सेनाओंकी संख्याका वर्णन
 
अध्याय 9:  उभय पक्षकी सेनाओंका घमासान युद्ध और कौरव-सेनाका पलायन
 
अध्याय 10:  नकुलद्वारा कर्णके तीन पुत्रोंका वध तथा उभय पक्षकी सेनाओंका भयानक युद्ध
 
अध्याय 11:  शल्यका पराक्रम, कौरव-पाण्डव-योद्धाओंके द्वन्द्वयुद्ध तथा भीमसेनके द्वारा शल्यकी पराजय
 
अध्याय 12:  भीमसेन और शल्यका भयानक गदायुद्ध तथा युधिष्ठिरके साथ शल्यका युद्ध, दुर्योधनद्वारा चेकितानका और युधिष्ठिरद्वारा चन्द्रसेन एवं द्रुमसेनका वध, पुनः युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रोंके साथ शल्यका युद्ध
 
अध्याय 13:  मद्रराज शल्यका अद् भुत पराक्रम
 
अध्याय 14:  अर्जुन और अश्वत्थामाका युद्ध तथा पांचाल वीर सुरथका वध
 
अध्याय 15:  दुर्योधन और धृष्टद्युम्नका एवं अर्जुन और अश्वत्थामाका तथा शल्यके साथ नकुल और सात्यकि आदिका घोर संग्राम
 
अध्याय 16:  पाण्डव-सैनिकों और कौरव-सैनिकोंका द्वन्द्व-युद्ध, भीमसेनद्वारा दुर्योधनकी तथा युधिष्ठिरद्वारा शल्यकी पराजय
 
अध्याय 17:  भीमसेनद्वारा राजा शल्यके घोड़े और सारथिका तथा युधिष्ठिरद्वारा राजा शल्य और उनके भाईका वध एवं कृतवर्माकी पराजय
 
अध्याय 18:  मद्रराजके अनुचरोंका वध और कौरव-सेनाका पलायन
 
अध्याय 19:  पाण्डव-सैनिकोंका आपसमें बातचीत करते हुए पाण्डवोंकी प्रशंसा और धृतराष्ट्रकी निन्दा करना तथा कौरव-सेनाका पलायन, भीमद्वारा इक्कीस हजार पैदलोंका संहार और दुर्योधनका अपनी सेनाको उत्साहित करना
 
अध्याय 20:  धृष्टद्युम्नद्वारा राजा शाल्वके हाथीका और सात्यकिद्वारा राजा शाल्वका वध
 
अध्याय 21:  सात्यकिद्वारा क्षेमधूर्ति का वध, कृतवर्माका युद्ध और उसकी पराजय एवं कौरव- सेनाका पलायन
 
अध्याय 22:  दुर्योधनका पराक्रम और उभयपक्षकी सेनाओंका घोर संग्राम
 
अध्याय 23:  कौरवपक्षके सात सौ रथियोंका वध, उभय-पक्षकी सेनाओंका मर्यादाशून्य घोर संग्राम तथा शकुनिका कूट युद्ध और उसकी पराजय
 
अध्याय 24:  श्रीकृष्णके सम्मुख अर्जुनद्वारा दुर्योधनके दुराग्रहकी निन्दा और रथियोंकी सेनाका संहार
 
अध्याय 25:  अर्जुन और भीमसेनद्वारा कौरवोंकी रथसेना एवं गजसेनाका संहार, अश्वत्थामा आदिके द्वारा दुर्योधनकी खोज, कौरव-सेनाका पलायन तथा सात्यकिद्वारा संजयका पकड़ा जाना
 
अध्याय 26:  भीमसेनके द्वारा धृतराष्ट्रके ग्यारह पुत्रोंका और बहुत-सी चतुरंगिणी सेनाका वध
 
अध्याय 27:  श्रीकृष्ण और अर्जुनकी बातचीत, अर्जुनद्वारा सत्यकर्मा, सत्येषु तथा पैंतालीस पुत्रों और सेनासहित सुशर्माका वध तथा भीमके द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शनका अन्त
 
अध्याय 28:  सहदेवके द्वारा उलूक और शकुनिका वध एवं बची हुई सेनासहित दुर्योधनका पलायन
 
 
 
उपपर्व: ह्रदप्रवेश पर्व
अध्याय 29:  बची हुई समस्त कौरव-सेनाका वध, संजयका कैदसे छूटना, दुर्योधनका सरोवरमें प्रवेश तथा युयुत्सुका राजमहिलाओंके साथ हस्तिनापुरमें जाना
 
 
 
उपपर्व: गदा पर्व
अध्याय 30:  अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्यका सरोवरपर जाकर दुर्योधनसे युद्ध करनेके विषयमें बातचीत करना, व्याधोंसे दुर्योधनका पता पाकर युधिष्ठिरका सेनासहित सरोवरपर जाना और कृपाचार्य आदिका दूर हट जाना
 
अध्याय 31:  पाण्डवोंका द्वैपायनसरोवरपर जाना, वहाँ युधिष्ठिर और श्रीकृष्णकी बातचीत तथा तालाबमें छिपे हुए दुर्योधनके साथ युधिष्ठिरका संवाद
 
अध्याय 32:  युधिष्ठिरके कहनेसे दुर्योधनका तालाबसे बाहर होकर किसी एक पाण्डवके साथ गदायुद्धके लिये तैयार होना
 
अध्याय 33:  श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको फटकारना, भीमसेनकी प्रशंसा तथा भीम और दुर्योधनमें वाग्युद्ध
 
अध्याय 34:  बलरामजीका आगमन और स्वागत तथा भीमसेन और दुर्योधनके युद्धका आरम्भ
 
अध्याय 35:  बलदेवजीकी तीर्थयात्रा तथा प्रभास-क्षेत्रके प्रभावका वर्णनके प्रसंगमें चन्द्रमाके शापमोचनकी कथा
 
अध्याय 36:  उदपानतीर्थकी उत्पत्तिकी तथा त्रित मुनिके कूपमें गिरने, वहाँ यज्ञ करने और अपने भाइयोंको शाप देनेकी कथा
 
अध्याय 37:  विनशन, सुभूमिक, गन्धर्व, गर्गस्रोत, शंख, द्वैतवन तथा नैमिषेय आदि तीर्थोंमें होते हुए बलभद्रजीका सप्त सारस्वततीर्थमें प्रवेश
 
अध्याय 38:  सप्तसारस्वततीर्थकी उत्पत्ति, महिमा और मंकणक मुनिका चरित्र
 
अध्याय 39:  औशनस एवं कपालमोचनतीर्थकी माहात्म्य-कथा तथा रुषंगुके आश्रम पृथूदकतीर्थकी महिमा
 
अध्याय 40:  आर्ष्टि षेण एवं विश्वामित्रकी तपस्या तथा वरप्राप्ति
 
अध्याय 41:  अवाकीर्ण और यायात तीर्थकी महिमाके प्रसंगमें दाल्भ्यकी कथा और ययातिके यज्ञका वर्णन
 
अध्याय 42:  वसिष्ठापवाहतीर्थकी उत्पत्तिके प्रसंगमें विश्वामित्रका क्रोध और वसिष्ठजीकी सहनशीलता
 
अध्याय 43:  ऋषियोंके प्रयत्नसे सरस्वतीके शापकी निवृत्ति, जलकी शुद्धि तथा अरुणासंगममें स्नान करनेसे राक्षसों और इन्द्रका संकटमोचन
 
अध्याय 44:  कुमार कार्ति केयका प्राकट् य और उनके अभिषेककी तैयारी
 
अध्याय 45:  स्कन्दका अभिषेक और उनके महापार्षदोंके नाम, रूप आदिका वर्णन
 
अध्याय 46:  मातृकाओंका परिचय तथा स्कन्ददेवकी रणयात्रा और उनके द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्योंका सेनासहित संहार
 
अध्याय 47:  वरुणका अभिषेक तथा अग्नितीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेरतीर्थकी उत्पत्तिका प्रसंग
 
अध्याय 48:  बदरपाचनतीर्थकी महिमाके प्रसंगमें श्रुतावती और अरुन्धतीके तपकी कथा
 
अध्याय 49:  इन्द्रतीर्थ, रामतीर्थ, यमुनातीर्थ और आदित्यतीर्थकी महिमा
 
अध्याय 50:  आदित्यतीर्थकी महिमाके प्रसंगमें असित देवल तथा जैगीषव्य मुनिका चरित्र
 
अध्याय 51:  सारस्वततीर्थकी महिमाके प्रसंगमें दधीच ऋषि और सारस्वत मुनिके चरित्रका वर्णन
 
अध्याय 52:  वृद्ध कन्याका चरित्र, शृंगवान् के साथ उसका विवाह और स्वर्गगमन तथा उस तीर्थका माहात्म्य
 
अध्याय 53:  ऋषियोंद्वारा कुरुक्षेत्रकी सीमा और महिमाका वर्णन
 
अध्याय 54:  प्लक्षप्रस्रवण आदि तीर्थों तथा सरस्वतीकी महिमा एवं नारदजीसे कौरवोंके विनाश और भीम तथा दुर्योधनके युद्धका समाचार सुनकर बलरामजीका उसे देखनेके लिये जाना
 
अध्याय 55:  बलरामजीकी सलाहसे सबका कुरुक्षेत्रके समन्तपंचकतीर्थमें जाना और वहाँ भीम तथा दुर्योधनमें गदायुद्धकी तैयारी
 
अध्याय 56:  दुर्योधनके लिये अपशकुन, भीमसेनका उत्साह तथा भीम और दुर्योधनमें वाग्युद्धके पश्चात् गदायुद्धका आरम्भ
 
अध्याय 57:  भीमसेन और दुर्योधनका गदायुद्ध
 
अध्याय 58:  श्रीकृष्ण और अर्जुनकी बातचीत तथा अर्जुनके संकेतके अनुसार भीमसेनका गदासे दुर्योधनकी जाँघें तोड़कर उसे धराशायी करना एवं भीषण उत्पातोंका प्रकट होना
 
अध्याय 59:  भीमसेनके द्वारा दुर्योधनका तिरस्कार, युधिष्ठिरका भीमसेनको समझाकर अन्यायसे रोकना और दुर्योधनको सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना
 
अध्याय 60:  क्रोधमें भरे हुए बलरामको श्रीकृष्णका समझाना और युधिष्ठिरके साथ श्रीकृष्णकी तथा भीमसेनकी बातचीत
 
अध्याय 61:  पाण्डव-सैनिकोंद्वारा भीमकी स्तुति, श्रीकृष्णका दुर्योधनपर आक्षेप, दुर्योधनका उत्तर तथा श्रीकृष्णके द्वारा पाण्डवोंका समाधान एवं शंखध्वनि
 
अध्याय 62:  पाण्डवोंका कौरव शिबिरमें पहुँचना, अर्जुनके रथका दग्ध होना और पाण्डवोंका भगवान् श्रीकृष्णको हस्तिनापुर भेजना
 
अध्याय 63:  युधिष्ठिरकी प्रेरणासे श्रीकृष्णका हस्तिनापुरमें जाकर धृतराष्ट्र और गान्धारीको आश्वासन दे पुनः पाण्डवोंके पास लौट आना
 
अध्याय 64:  दुर्योधनका संजयके सम्मुख विलाप और वाहकोंद्वारा अपने साथियोंको संदेश भेजना
 
अध्याय 65:  दुर्योधनकी दशा देखकर अश्वत्थामाका विषाद, प्रतिज्ञा और सेनापतिके पदपर अभिषेक
 
 
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