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अध्याय 1: संजयके मुखसे शल्य और दुर्योधनके वधका वृत्तान्त सुनकर राजा धृतराष्ट्रका मूर्च्छित होना और सचेत होनेपर उन्हें विदुरका आश्वासन देना |
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अध्याय 2: राजा धृतराष्ट्रका विलाप करना और संजयसे युद्धका वृत्तान्त पूछना |
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अध्याय 3: कर्णके मारे जानेपर पाण्डवोंके भयसे कौरवसेनाका पलायन, सामना करनेवाले पचीस हजार पैदलोंका भीमसेनद्वारा वध तथा दुर्योधनका अपने सैनिकोंको समझा-बुझाकर पुनः पाण्डवोंके साथ युद्धमें लगाना |
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अध्याय 4: कृपाचार्यका दुर्योधनको संधिके लिये समझाना |
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अध्याय 5: दुर्योधनका कृपाचार्यको उत्तर देते हुए संधि स्वीकार न करके युद्धका ही निश्चय करना |
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अध्याय 6: दुर्योधनके पूछनेपर अश्वत्थामाका शल्यको सेनापति बनानेके लिये प्रस्ताव, दुर्योधनका शल्यसे अनुरोध और शल्यद्वारा उसकी स्वीकृति |
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अध्याय 7: राजा शल्यके वीरोचित उद् गार तथा श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको शल्यवधके लिये उत्साहित करना |
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अध्याय 8: उभयपक्षकी सेनाओंका समरांगणमें उपस्थित होना एवं बची हुई दोनों सेनाओंकी संख्याका वर्णन |
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अध्याय 9: उभय पक्षकी सेनाओंका घमासान युद्ध और कौरव-सेनाका पलायन |
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अध्याय 10: नकुलद्वारा कर्णके तीन पुत्रोंका वध तथा उभय पक्षकी सेनाओंका भयानक युद्ध |
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अध्याय 11: शल्यका पराक्रम, कौरव-पाण्डव-योद्धाओंके द्वन्द्वयुद्ध तथा भीमसेनके द्वारा शल्यकी पराजय |
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अध्याय 12: भीमसेन और शल्यका भयानक गदायुद्ध तथा युधिष्ठिरके साथ शल्यका युद्ध, दुर्योधनद्वारा चेकितानका और युधिष्ठिरद्वारा चन्द्रसेन एवं द्रुमसेनका वध, पुनः युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रोंके साथ शल्यका युद्ध |
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अध्याय 13: मद्रराज शल्यका अद् भुत पराक्रम |
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अध्याय 14: अर्जुन और अश्वत्थामाका युद्ध तथा पांचाल वीर सुरथका वध |
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अध्याय 15: दुर्योधन और धृष्टद्युम्नका एवं अर्जुन और अश्वत्थामाका तथा शल्यके साथ नकुल और सात्यकि आदिका घोर संग्राम |
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अध्याय 16: पाण्डव-सैनिकों और कौरव-सैनिकोंका द्वन्द्व-युद्ध, भीमसेनद्वारा दुर्योधनकी तथा युधिष्ठिरद्वारा शल्यकी पराजय |
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अध्याय 17: भीमसेनद्वारा राजा शल्यके घोड़े और सारथिका तथा युधिष्ठिरद्वारा राजा शल्य और उनके भाईका वध एवं कृतवर्माकी पराजय |
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अध्याय 18: मद्रराजके अनुचरोंका वध और कौरव-सेनाका पलायन |
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अध्याय 19: पाण्डव-सैनिकोंका आपसमें बातचीत करते हुए पाण्डवोंकी प्रशंसा और धृतराष्ट्रकी निन्दा करना तथा कौरव-सेनाका पलायन, भीमद्वारा इक्कीस हजार पैदलोंका संहार और दुर्योधनका अपनी सेनाको उत्साहित करना |
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अध्याय 20: धृष्टद्युम्नद्वारा राजा शाल्वके हाथीका और सात्यकिद्वारा राजा शाल्वका वध |
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अध्याय 21: सात्यकिद्वारा क्षेमधूर्ति का वध, कृतवर्माका युद्ध और उसकी पराजय एवं कौरव- सेनाका पलायन |
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अध्याय 22: दुर्योधनका पराक्रम और उभयपक्षकी सेनाओंका घोर संग्राम |
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अध्याय 23: कौरवपक्षके सात सौ रथियोंका वध, उभय-पक्षकी सेनाओंका मर्यादाशून्य घोर संग्राम तथा शकुनिका कूट युद्ध और उसकी पराजय |
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अध्याय 24: श्रीकृष्णके सम्मुख अर्जुनद्वारा दुर्योधनके दुराग्रहकी निन्दा और रथियोंकी सेनाका संहार |
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अध्याय 25: अर्जुन और भीमसेनद्वारा कौरवोंकी रथसेना एवं गजसेनाका संहार, अश्वत्थामा आदिके द्वारा दुर्योधनकी खोज, कौरव-सेनाका पलायन तथा सात्यकिद्वारा संजयका पकड़ा जाना |
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अध्याय 26: भीमसेनके द्वारा धृतराष्ट्रके ग्यारह पुत्रोंका और बहुत-सी चतुरंगिणी सेनाका वध |
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अध्याय 27: श्रीकृष्ण और अर्जुनकी बातचीत, अर्जुनद्वारा सत्यकर्मा, सत्येषु तथा पैंतालीस पुत्रों और सेनासहित सुशर्माका वध तथा भीमके द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शनका अन्त |
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अध्याय 28: सहदेवके द्वारा उलूक और शकुनिका वध एवं बची हुई सेनासहित दुर्योधनका पलायन |
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उपपर्व: ह्रदप्रवेश पर्व |
अध्याय 29: बची हुई समस्त कौरव-सेनाका वध, संजयका कैदसे छूटना, दुर्योधनका सरोवरमें प्रवेश तथा युयुत्सुका राजमहिलाओंके साथ हस्तिनापुरमें जाना |
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उपपर्व: गदा पर्व |
अध्याय 30: अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्यका सरोवरपर जाकर दुर्योधनसे युद्ध करनेके विषयमें बातचीत करना, व्याधोंसे दुर्योधनका पता पाकर युधिष्ठिरका सेनासहित सरोवरपर जाना और कृपाचार्य आदिका दूर हट जाना |
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अध्याय 31: पाण्डवोंका द्वैपायनसरोवरपर जाना, वहाँ युधिष्ठिर और श्रीकृष्णकी बातचीत तथा तालाबमें छिपे हुए दुर्योधनके साथ युधिष्ठिरका संवाद |
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अध्याय 32: युधिष्ठिरके कहनेसे दुर्योधनका तालाबसे बाहर होकर किसी एक पाण्डवके साथ गदायुद्धके लिये तैयार होना |
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अध्याय 33: श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको फटकारना, भीमसेनकी प्रशंसा तथा भीम और दुर्योधनमें वाग्युद्ध |
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अध्याय 34: बलरामजीका आगमन और स्वागत तथा भीमसेन और दुर्योधनके युद्धका आरम्भ |
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अध्याय 35: बलदेवजीकी तीर्थयात्रा तथा प्रभास-क्षेत्रके प्रभावका वर्णनके प्रसंगमें चन्द्रमाके शापमोचनकी कथा |
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अध्याय 36: उदपानतीर्थकी उत्पत्तिकी तथा त्रित मुनिके कूपमें गिरने, वहाँ यज्ञ करने और अपने भाइयोंको शाप देनेकी कथा |
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अध्याय 37: विनशन, सुभूमिक, गन्धर्व, गर्गस्रोत, शंख, द्वैतवन तथा नैमिषेय आदि तीर्थोंमें होते हुए बलभद्रजीका सप्त सारस्वततीर्थमें प्रवेश |
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अध्याय 38: सप्तसारस्वततीर्थकी उत्पत्ति, महिमा और मंकणक मुनिका चरित्र |
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अध्याय 39: औशनस एवं कपालमोचनतीर्थकी माहात्म्य-कथा तथा रुषंगुके आश्रम पृथूदकतीर्थकी महिमा |
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अध्याय 40: आर्ष्टि षेण एवं विश्वामित्रकी तपस्या तथा वरप्राप्ति |
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अध्याय 41: अवाकीर्ण और यायात तीर्थकी महिमाके प्रसंगमें दाल्भ्यकी कथा और ययातिके यज्ञका वर्णन |
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अध्याय 42: वसिष्ठापवाहतीर्थकी उत्पत्तिके प्रसंगमें विश्वामित्रका क्रोध और वसिष्ठजीकी सहनशीलता |
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अध्याय 43: ऋषियोंके प्रयत्नसे सरस्वतीके शापकी निवृत्ति, जलकी शुद्धि तथा अरुणासंगममें स्नान करनेसे राक्षसों और इन्द्रका संकटमोचन |
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अध्याय 44: कुमार कार्ति केयका प्राकट् य और उनके अभिषेककी तैयारी |
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अध्याय 45: स्कन्दका अभिषेक और उनके महापार्षदोंके नाम, रूप आदिका वर्णन |
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अध्याय 46: मातृकाओंका परिचय तथा स्कन्ददेवकी रणयात्रा और उनके द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्योंका सेनासहित संहार |
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अध्याय 47: वरुणका अभिषेक तथा अग्नितीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेरतीर्थकी उत्पत्तिका प्रसंग |
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अध्याय 48: बदरपाचनतीर्थकी महिमाके प्रसंगमें श्रुतावती और अरुन्धतीके तपकी कथा |
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अध्याय 49: इन्द्रतीर्थ, रामतीर्थ, यमुनातीर्थ और आदित्यतीर्थकी महिमा |
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अध्याय 50: आदित्यतीर्थकी महिमाके प्रसंगमें असित देवल तथा जैगीषव्य मुनिका चरित्र |
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अध्याय 51: सारस्वततीर्थकी महिमाके प्रसंगमें दधीच ऋषि और सारस्वत मुनिके चरित्रका वर्णन |
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अध्याय 52: वृद्ध कन्याका चरित्र, शृंगवान् के साथ उसका विवाह और स्वर्गगमन तथा उस तीर्थका माहात्म्य |
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अध्याय 53: ऋषियोंद्वारा कुरुक्षेत्रकी सीमा और महिमाका वर्णन |
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अध्याय 54: प्लक्षप्रस्रवण आदि तीर्थों तथा सरस्वतीकी महिमा एवं नारदजीसे कौरवोंके विनाश और भीम तथा दुर्योधनके युद्धका समाचार सुनकर बलरामजीका उसे देखनेके लिये जाना |
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अध्याय 55: बलरामजीकी सलाहसे सबका कुरुक्षेत्रके समन्तपंचकतीर्थमें जाना और वहाँ भीम तथा दुर्योधनमें गदायुद्धकी तैयारी |
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अध्याय 56: दुर्योधनके लिये अपशकुन, भीमसेनका उत्साह तथा भीम और दुर्योधनमें वाग्युद्धके पश्चात् गदायुद्धका आरम्भ |
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अध्याय 57: भीमसेन और दुर्योधनका गदायुद्ध |
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अध्याय 58: श्रीकृष्ण और अर्जुनकी बातचीत तथा अर्जुनके संकेतके अनुसार भीमसेनका गदासे दुर्योधनकी जाँघें तोड़कर उसे धराशायी करना एवं भीषण उत्पातोंका प्रकट होना |
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अध्याय 59: भीमसेनके द्वारा दुर्योधनका तिरस्कार, युधिष्ठिरका भीमसेनको समझाकर अन्यायसे रोकना और दुर्योधनको सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना |
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अध्याय 60: क्रोधमें भरे हुए बलरामको श्रीकृष्णका समझाना और युधिष्ठिरके साथ श्रीकृष्णकी तथा भीमसेनकी बातचीत |
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अध्याय 61: पाण्डव-सैनिकोंद्वारा भीमकी स्तुति, श्रीकृष्णका दुर्योधनपर आक्षेप, दुर्योधनका उत्तर तथा श्रीकृष्णके द्वारा पाण्डवोंका समाधान एवं शंखध्वनि |
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अध्याय 62: पाण्डवोंका कौरव शिबिरमें पहुँचना, अर्जुनके रथका दग्ध होना और पाण्डवोंका भगवान् श्रीकृष्णको हस्तिनापुर भेजना |
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अध्याय 63: युधिष्ठिरकी प्रेरणासे श्रीकृष्णका हस्तिनापुरमें जाकर धृतराष्ट्र और गान्धारीको आश्वासन दे पुनः पाण्डवोंके पास लौट आना |
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अध्याय 64: दुर्योधनका संजयके सम्मुख विलाप और वाहकोंद्वारा अपने साथियोंको संदेश भेजना |
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अध्याय 65: दुर्योधनकी दशा देखकर अश्वत्थामाका विषाद, प्रतिज्ञा और सेनापतिके पदपर अभिषेक |
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