श्री व्यासदेव के इस पुत्र की आयु केवल सोलह वर्ष थी। उनके पाँव, हाथ, जाँघें, भुजाएँ, कंधे, ललाट तथा शरीर के अन्य भाग अत्यन्त सुकोमल तथा सुगठित बने थे। उनकी आँखें सुन्दर, बड़ी-बड़ी तथा नाक और कान उठे हुए थे। उनका मुखमण्डल अत्यन्त आकर्षक था और उनकी गर्दन सुगठित एवं शंख जैसी सुन्दर थी।
तात्पर्य
सम्मानित व्यक्ति का वर्णन पाँवों से शुरू किया जाता है और यह सम्मानित प्रणाली शुकदेव गोस्वामी पर भी लागू की गई है। वे केवल सोलह वर्ष के थे। व्यक्ति का सम्मान उसकी उपलब्धियों के लिए किया जाता है, न कि उसकी बड़ी आयु के लिए। व्यक्ति अनुभव के आधार पर अधिक सयाना हो सकता है, आयु से नहीं। श्री शुकदेव गोस्वामी, जिन्हें यहाँ पर व्यासदेव के पुत्र के रूप में बताया गया है, अपने ज्ञान के आधार पर वहाँ उपस्थित समस्त मुनियों से अधिक अनुभवी थे, यद्यपि अभी वे केवल सोलह वर्ष के थे।
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