हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 3: समस्त अवतारों के स्रोत : कृष्ण  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  1.3.44 
तत्र कीर्तयतो विप्रा विप्रर्षेर्भूरितेजस: ।
अहं चाध्यगमं तत्र निविष्टस्तदनुग्रहात् ।
सोऽहं व: श्रावयिष्यामि यथाधीतं यथामति ॥ ४४ ॥
 
शब्दार्थ
तत्र—वहाँ; कीर्तयत:—कीर्तन करते हुए; विप्रा:—हे ब्राह्मणों; विप्र-ऋषे:—ब्रह्मर्षि से; भूरि—अत्यधिक; तेजस:— शक्तिशाली; अहम्—मैं; —भी; अध्यगमम्—समझ सकता हूँ; तत्र—उस सभा में; निविष्ट:—पूर्ण रूप से एकाग्रचित होकर; तत्-अनुग्रहात्—उसकी कृपा से; स:—वही वस्तु; अहम्—मैं; व:—तुमको; श्रावयिष्यामि—सुनाऊँगा; यथा- अधीतम् यथा-मति—अपने अनुभव के आधार पर ।.
 
अनुवाद
 
 हे विद्वान ब्राह्मणों, जब शुकदेव गोस्वामी ने वहाँ पर (महाराज परीक्षित की उपस्थिति में) भागवत सुनाया, तो मैंने अत्यन्त ध्यानपूर्वक सुना और इस तरह उनकी कृपा से मैंने उन महान शक्ति-सम्पन्न ऋषि से भागवत सीखा। अब मैं तुम लोगों को वही सब सुनाने का प्रयत्न करूँगा, जो मैंने उनसे सीखा तथा जैसा मैंने आत्मसात् किया।
 
तात्पर्य
 यदि किसी ने शुकदेव गोस्वामी जैसे स्वरूपसिद्ध महात्मा से भागवत सुना है, तो उसे भागवत के पृष्ठों में भगवान् श्रीकृष्ण के प्रत्यक्ष दर्शन हो सकते हैं। लेकिन यदि कोई चाहे कि वह किसी ऐसे व्यर्थ के, किराये के कथावाचक से भागवत सीख सकेगा, जिसके जीवन का उद्देश्य ऐसे कथावाचन से कुछ धन कमाकर उसे विषय-भोग में लगाना है, तो वैसा सम्भव नहीं है। जो व्यक्ति कामभोग में लगे हुए मनुष्यों का संग करता है, वह श्रीमद्भागवत सीख नहीं सकता है। भागवत के समझने का यही रहस्य है। न ही ऐसे व्यक्ति से भागवत समझा जा सकता है, जो अपने संसारी पाण्डित्य से भागवत की व्याख्या करता हो। यदि कोई भागवत के पृष्ठों में श्रीकृष्ण का दर्शन करना चाहता है, तो उसे शुकदेव गोस्वामी के किसी प्रतिनिधि से ही भागवत समझना होगा, अन्य किसी से नहीं। यही एकमात्र विधि है तथा इसका कोई और विकल्प नहीं है। सूत गोस्वामी शुकदेव गोस्वामी के प्रामाणिक प्रतिनिधि हैं, क्योंकि वे उस सन्देश को प्रस्तुत करना चाहते हैं जिसे उन्होंने विद्वान ब्राह्मण से प्राप्त किया था। शुकदेव गोस्वामी ने भागवत को उसी रूप में प्रस्तुत किया, जिस रूप में उन्होंने अपने महान पिता से सुना था। उसी तरह सूत गोस्वामी भी भागवत को उसी रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिस रूप में उन्होंने शुकदेव गोस्वामी से सुना था। केवल सुनना ही काफी नहीं, मनुष्य को चाहिए कि ध्यानपूर्वक मूल तत्त्व को आत्मसात् करे। निविष्ट शब्द बताता है कि सूत गोस्वामी ने भागवत के रस को अपने कानों से पिया।

भागवत को ग्रहण करने की वास्तविक विधि यही है। मनुष्य को चाहिए कि वास्तविक व्यक्ति से अत्यन्त सावधानी से सुने; तभी उसे हर पृष्ठ में भगवान् कृष्ण की उपस्थिति की अनुभूति हो सकती है। यहाँ पर भागवत को ग्रहण करने के रहस्य का उल्लेख किया गया है। जिसका मन शुद्ध नहीं है, वह सावधानी से नहीं सुन सकता। जो कर्म में शुद्ध नहीं है, उसका मन शुद्ध नहीं हो सकता। जो आहार, शयन, रक्षा तथा मैथुन में शुद्ध नहीं है, वह कर्म में भी शुद्ध नहीं होगा। लेकिन, यदि कोई सही व्यक्ति से ध्यानपूर्वक सुनता है, तो भागवत के प्रारम्भिक पृष्ठों में ही उसे भगवान् श्रीकृष्ण के दर्शन अवश्य ही हो सकते हैं।

 
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कंध के अन्तर्गत “समस्त अवतारों के स्रोत : कृष्ण” नामक तृतीय अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.
   
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥