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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 5: नारद द्वारा व्यासदेव को श्रीमद्भागवत के विषय में आदेश  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  1.5.33 
आमयो यश्च भूतानां जायते येन सुव्रत ।
तदेव ह्यामयं द्रव्यं न पुनाति चिकित्सितम् ॥ ३३ ॥
 
शब्दार्थ
आमय:—व्याधियाँ; य: च—जो भी; भूतानाम्—जीवों की; जायते—सम्भव होती है; येन—जिसके द्वारा; सुव्रत—हे महात्मा; तत्—वह; एव—ही; हि—निश्चय ही; आमयम्—व्याधि; द्रव्यम्—वस्तु; —नहीं; पुनाति—अच्छा करती है; चिकित्सितम्—उपचार की गई ।.
 
अनुवाद
 
 हे श्रेष्ठ पुरुष, क्या भैषज विज्ञान की विधि से प्रयुक्त की गई कोई वस्तु उस रोग को ठीक नहीं कर देती, जिससे ही वह रोग उत्पन्न हुआ हो?
 
तात्पर्य
 कुशल चिकित्सक अपने रोगी की चिकित्सा अनुपान द्वारा करता है। उदाहरणार्थ, कभी-कभी दूध के बने पदार्थ खाने से पेट गड़बड़ा जाता है, किन्तु जब उसी दूध को दही में परिणत करके उसमें कुछ अन्य औषधियाँ मिला दी जाती हैं, तो वह उस गड़बड़ी को दूर कर देता है। इसी प्रकार भौतिक जगत के ताप-त्रय को केवल भौतिक कार्यों से दूर नहीं किया जा सकता। ऐसे कार्यों को उसी तरह आध्यात्मिक बनाने की आवश्यकता है, जिस प्रकार पहले लोहे को अग्नि में तपाकर लाल कर लिया जाता है और तब अग्नि अपना कार्य करती है। इसी प्रकार किसी वस्तु की भौतिक अवधारणा तुरन्त ही बदल जाती है, यदि हम उसे भगवान् की सेवा में लगा देते हैं। आध्यात्मिक सफलता का यही रहस्य है। हमें न तो प्रकृति पर प्रभुत्व जताने का प्रयास करना चाहिए और न ही भौतिक वस्तुओं का परित्याग करना चाहिए। बुरे सौदे के सदुपयोग की सर्वश्रेष्ठ विधि यह है कि सारी की सारी वस्तुओं का उपयोग भगवान् के लिए किया जाये। प्रत्येक वस्तु परमात्मा से उद्भूत है। वे अपनी अचिन्त्य शक्ति से आत्मा को पदार्थ में तथा पदार्थ को आत्मा में बदल सकते हैं। अत: भगवान् की परमेच्छा से कोई भी (तथाकथित) भौतिक वस्तु तुरन्त ही आध्यात्मिक शक्ति में बदल सकती है। ऐसे परिवर्तन के लिए आवश्यक शर्त यह है कि तथाकथित पदार्थ को आत्मा की सेवा में लगाया जाए। अपने भौतिक रोगों का उपचार करने तथा अपने आपको उस आध्यात्मिक स्तर तक उठाने के लिए, जहाँ न दुख है, न शोक और न भय, यही एकमात्र उपाय है। इस प्रकार जब प्रत्येक वस्तु भगवान् की सेवा में लगा दी जाती है, तो हमें अनुभव होता है कि परब्रह्म के अलावा कुछ भी नहीं है। इस प्रकार सर्वं खल्विदं ब्रह्म—यह वैदिक मन्त्र चरितार्थ होता है।
 
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