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अध्याय 18: भगवान् बलराम द्वारा प्रलम्बासुर का वध
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संक्षेप विवरण: इस अध्याय में प्रलम्बासुर के मारे जाने का वर्णन हुआ है। वृन्दावन में आनन्दमय क्रीड़ा करते समय भगवान् बलदेव प्रलम्बासुर के कन्धों पर चढ़ गये और उसके सिर पर मुष्टिक-प्रहार... |
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श्लोक 1: शुकदेव गोस्वामी ने कहा : अपने आनन्द-विभोर साथियों से घिरे हुए, जो निरन्तर उनके यश का गान कर रहे थे, श्रीकृष्ण व्रज ग्राम में प्रविष्ट हुए जो गौवों के झुंडों से मण्डित था। |
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श्लोक 2: जब कृष्ण तथा बलराम इस तरह से सामान्य ग्वालबालों के वेश में वृन्दावन में जीवन का आनन्द ले रहे थे तो शनै-शनै ग्रीष्म ऋतु आ गई। यह ऋतु देहधारियों को अधिक सुहावनी नहीं लगती। |
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श्लोक 3: फिर भी चूँकि साक्षात् भगवान् कृष्ण बलराम सहित वृन्दावन में रह रहे थे अतएव ग्रीष्म ऋतु वसन्त के गुण प्रकट कर रही थी। वृन्दावन की भूमि के ऐसे हैं गुण। |
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श्लोक 4: वृन्दावन में झरनों की तीव्र ध्वनि से झींगुरों की झंकार छिप गई और उन झरनों की फुहार से निरन्तर नम रहते हुए वृक्षों के समूहों ने सम्पूर्ण क्षेत्र को मण्डित कर दिया। |
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श्लोक 5: सरोवरों की लहरों तथा बहती हुई नदियों का स्पर्श करती हुई अनेक प्रकार के कमलों तथा कमलिनियों के पराग-कण अपने साथ लेती हुई वायु सम्पूर्ण वृन्दावन को शीतल बनाती थी। इस तरह वहाँ के निवासियों को ग्रीष्म की जलती धूप तथा मौसमी दावाग्नियों से उत्पन्न गर्मी से कष्ट नहीं उठाना पड़ता था। निस्सन्देह वृन्दावन ताजी हरीभरी घास से भरापुरा था। |
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श्लोक 6: गहरी नदियाँ अपनी उठती लहरों से अपने तटों को तर करके उन्हें गीला तथा दलदला बना देती थीं। इस तरह विष की तरह विकराल सूर्य की किरणें न तो पृथ्वी के रस को उड़ा पातीं न इसकी हरी घास को सुखा पातीं। |
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श्लोक 7: फूलों से वृन्दावन बड़े ही सुन्दर ढंग से सजा हुआ था और नाना प्रकार के पशु तथा पक्षी अपनी ध्वनि से उसे पूरित कर रहे थे। मोर तथा भौंरे गा रहे थे और कोयल तथा सारस कुहू कुहू कर रहे थे। |
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श्लोक 8: क्रीड़ा करने की इच्छा से, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् कृष्ण ग्वालबालों भगवान् बलराम सहित तथा गौवों से घिर कर अपनी बाँसुरी बजाते हुए वृन्दावन के जंगल में प्रविष्ट हुए। |
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श्लोक 9: कोंपलों, मोरपंखों, मालाओं, फूल की कलियों के गुच्छों तथा रंगविरंगे खनिज पदार्थों से अपने आपको सजाकर बलराम, कृष्ण तथा उनके ग्वालमित्र नाचने लगे, कुश्ती लडऩे तथा गाने लगे। |
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श्लोक 10: जब कृष्ण नाचने लगे तो कुछ बालक गाकर और कुछ बाँसुरी, हाथ के मंजीरे तथा भैसों के सींग बजा बजाकर उनका साथ देने लगे तथा कुछ अन्य बालक उनके नाच की प्रशंसा करने लगे। |
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श्लोक 11: हे राजन्, देवताओं ने गोप जाति के सदस्यों का वेश बनाया और जिस तरह नाटक के नर्तक दूसरे नर्तक की प्रशंसा करते हैं उसी तरह उन्होंने ग्वालबालों के रूप में प्रकट हुए कृष्ण तथा बलराम की पूजा की। |
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श्लोक 12: कृष्ण तथा बलराम चक्कर काटते, कूदते, फेंकते, थपथपाते तथा लड़ते भिड़ते हुए अपने ग्वाल सखाओं के साथ खेलने लगे। कभी कभी कृष्ण तथा बलराम बालकों के सिरों की चुटिया खींच लेते थे। |
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श्लोक 13: हे राजन्, जब अन्य बालक नाचते होते तो कृष्ण तथा बलराम कभी कभी गीत तथा वाद्य संगीत से उनका साथ देते और कभी कभी वे दोनों ‘बहुत अच्छा‘’, ‘बहुत अच्छा’ कहकर लडक़ों की प्रशंसा करते थे। |
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श्लोक 14: ग्वालबाल कभी बिल्व या कुम्भ फलों से खेलते और कभी मुट्ठी में आमलक फलों को लेकर खेलते। कभी वे एक दूसरे को छूने का या आँख मिचौनी के समय किसी को पहचानने का खेल खेलते तो कभी वे पशुओं तथा पक्षियों की नकल उतारते। |
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श्लोक 15: कभी कभी वे मेढक़ों की तरह फुदक फुदक कर चलते, कभी तरह तरह के हास परिहास करते, कभी झूले में झूलते और कभी राजाओं की नकल उतारते। |
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श्लोक 16: इस तरह से कृष्ण तथा बलराम वृन्दावन की नदियों, पर्वतों, घाटियों, कुंजों, वृक्षों तथा सरोवरों के बीच घूमते हुए सभी प्रकार के प्रसिद्ध खेल खेलते रहते। |
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श्लोक 17: इस तरह जब उस वृन्दावन के जंगल में राम, कृष्ण तथा उनके ग्वालमित्र गौवें चरा रहे थे तो प्रलम्ब नामक असुर उनके बीच में घुस आया। कृष्ण तथा बलराम का हरण करने के इरादे से उसने ग्वालबाल का वेश बना लिया था। |
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श्लोक 18: चूँकि दशार्ह वंश में उत्पन्न भगवान् श्रीकृष्ण सब कुछ देखते हैं अतएव वे जान गये कि वह असुर कौन है। फिर भी भगवान् ने ऐसा दिखावा किया जैसे कि वे उसे अपना मित्र मान चुके हों जबकि वे गम्भीरतापूर्वक यह विचार कर रहे थे कि उसको कैसे मारा जाय। |
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श्लोक 19: तब समस्त क्रीड़ाओं के ज्ञाता कृष्ण ने सारे ग्वालबालों को बुलाया और उनसे इस प्रकार कहा : हे ग्वालबालो, अब चलो खेलें, हम अपने आपको दो समान टोलियों में बाँट लें। |
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श्लोक 20: ग्वालबालों ने कृष्ण तथा बलराम को दोनों टोलियों का अगुआ (नायक) चुन लिया। कुछ बालक कृष्ण की ओर थे और कुछ बलराम के साथ थे। |
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श्लोक 21: बालकों ने तरह तरह के खेल खेले जिनमें पीठ पर चढऩा तथा उठाना जैसे खेल होते हैं। इन खेलों में जीतने वाले हार जाने वालों की पीठ पर चढ़ते हैं और हारने वाले उन्हें अपनी पीठ पर चढ़ाते हैं। |
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श्लोक 22: इस तरह एक दूसरे पर चढ़ते और चढ़ाते हुए और साथ ही गौवें चराते सारे बालक कृष्ण के पीछे पीछे भाण्डीरक नामक बरगद के पेड़ तक गये। |
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श्लोक 23: हे राजा परीक्षित, जब इन खेलों में भगवान् बलराम की टोली के श्रीदामा, वृषभ तथा अन्य सदस्य विजयी होते तो कृष्ण तथा उनके साथियों को उन सबों को अपने ऊपर चढ़ाना पड़ता था। |
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श्लोक 24: हार कर, भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीदामा को अपने ऊपर चढ़ा लिया। भद्रसेन ने वृषभ को तथा प्रलम्ब ने रोहिणी पुत्र बलराम को चढ़ा लिया। |
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श्लोक 25: भगवान् कृष्ण को दुर्दम सोच कर वह जाना आना असुर (प्रलम्ब), बलराम को तेजी से उस स्थान से बहुत आगे ले गया जहाँ उतारना निश्चित किया गया था। |
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श्लोक 26: जब वह महान् असुर बलराम को लिये जा रहा था, तो वे विशाल सुमेरु पर्वत की तरह भारी हो गये जिससे प्रलम्ब को अपना गति धीमी करनी पड़ी। इसके बाद उसने अपना असली रूप धारण किया—तेजमय शरीर जो सुनहरे आभूषणों से ढका था और उस बादल के समान लग रहा था जिसमें बिजली चमक रही हो और जो अपने साथ चन्द्रमा लिये जा रहा हो। |
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श्लोक 27: जब हलधर भगवान् बलराम ने आकाश में विचरण करते हुए उस असुर की जलती हुई आँखें, अग्नि सदृश बाल, भौंहों तक उठे भयानक दाँत तथा उसके बाजूबन्दों, मुकुट तथा कुंडलों से उत्पन्न आश्चर्यजनक तेज युक्त विराट शरीर को देखा तो वे कुछ कुछ भयभीत से हो गये। |
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श्लोक 28: वास्तविक स्थिति का स्मरण करते हुए निर्भीक बलराम की समझ में आ गया कि यह असुर मेरा अपहरण करके मुझे मेरे साथियों से दूर ले जाने का प्रयास कर रहा है। तब वे क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने असुर के सिर पर अपनी कठोर मुट्ठी से उसी तरह प्रहार किया जिस प्रकार देवताओं के राजा इन्द्र अपने वज्र से पर्वत पर प्रहार करते हैं। |
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श्लोक 29: बलराम की मुट्ठी के प्रहार से प्रलम्ब का सिर तुरन्त ही फट गया। वह मुख से रक्त उगलने लगा और बेहोश हो गया। तत्पश्चात् वह निष्प्राण होकर पृथ्वी पर भीषण धमाके के साथ ऐसे गिर पड़ा मानो इन्द्र द्वारा विनष्ट कोई पर्वत हो। |
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श्लोक 30: ग्वालबाल यह देखकर अत्यन्त चकित थे कि बलशाली बलराम ने किस तरह प्रलम्बासुर को मार डाला और वे सभी “बहुत खूब” “बहुत खूब” कहकर चिल्ला उठे। |
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श्लोक 31: उन्होंने बलराम को खूब आशीर्वाद दिया और सभी तरह की प्रशंसा के पात्र होने के कारण उनकी खूब प्रशंसा की। उनके मन प्रेम से विभोर हो उठे और उन्होंने उनका इस प्रकार आलिंगन किया मानो वे मरकर लौटे हों। |
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श्लोक 32: ” पापी प्रलम्बासुर के मारे जाने पर देवता अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने बलराम पर फूलमालाओं की वर्षा की। उन्होंने उनके उत्तम कार्य की प्रशंसा की। |
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