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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 19: दावानल पान  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  10.19.10 
नूनं त्वद्ब‍ान्धवा: कृष्ण न चार्हन्त्यवसादितुम् ।
वयं हि सर्वधर्मज्ञ त्वन्नाथास्त्वत्परायणा: ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
नूनम्—अवश्य ही; त्वत्—आपके; बान्धवा:—मित्रगण; कृष्ण—हमारे प्यारे कृष्ण; —कभी नहीं; —और; अर्हन्ति— योग्य हैं; अवसादितुम्—विनष्ट होने के; वयम्—हम; हि—यही नहीं; सर्व-धर्म-ज्ञ—समस्त जीवों को भलीभाँति जाननेवाले; त्वत्-नाथा:—आपको अपने स्वामी के रूप में पाकर; त्वत्-परायण:—आपकी ही भक्ति में लगे हुए ।.
 
अनुवाद
 
 कृष्ण! निस्सन्देह आपके अपने मित्रों को तो नष्ट नहीं होना चाहिए। हे समस्त वस्तुओं की प्रकृति को जाननेवाले, हमने आपको अपना स्वामी मान रखा है और हम आपके शरणागत हैं।
 
 
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  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥