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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 19: दावानल पान  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  10.19.11 
श्रीशुक उवाच
वचो निशम्य कृपणं बन्धूनां भगवान् हरि: ।
निमीलयत मा भैष्ट लोचनानीत्यभाषत ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
श्री-शुक: उवाच—श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा; वच:—वचन; निशम्य—सुनकर; कृपणम्—दयनीय; बन्धूनाम्—अपने मित्रों के; भगवान्—भगवान्; हरि:—हरि ने; निमीलयत—बन्द कर लो; मा भैष्ट—मत डरो; लोचनानि—आँखों को; इति— इस प्रकार; अभाषत—कहा ।.
 
अनुवाद
 
 शुकदेव गोस्वामी ने कहा : अपने मित्रों के ऐसे दयनीय वचन सुनकर भगवान् कृष्ण ने उनसे कहा : “तुम लोग, बस अपनी आँखें मूँद लो और डरो नहीं।”
 
तात्पर्य
 इस श्लोक से कृष्ण तथा उनके शुद्ध भक्तों के बीच का सरल दिव्य सम्बन्ध स्पष्ट होता है। परम सत्य परम शक्तिमान भगवान् वास्तव में एक तरुण आनन्दमय ग्वालबाल हैं जिसका नाम कृष्ण है। भगवान् असल में तरुण हैं और उनकी प्रकृति खिलाड़ी की है। जब उन्होंने देखा कि उनके प्रिय मित्र दावाग्नि से भयभीत हो चुके हैं, तो उन्होंने उनसे इतना ही कहा कि तुम लोग अपनी आँखें बन्द कर लो और डरो मत। तब कृष्ण ने जो कुछ किया वह अगले श्लोक में बतलाया गया है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥