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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 19: दावानल पान  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  10.19.4 
तृणैस्तत्खुरदच्छिन्नैर्गोष्पदैरङ्कितैर्गवाम् ।
मार्गमन्वगमन् सर्वे नष्टाजीव्या विचेतस: ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
तृणै:—तिनकों से; तत्—उन गायों के; खुर—खुरों से; दत्—तथा दाँतों से; छिन्नै:—तोड़े गये; गो:-पदै:—गायों के खुरों के निशानों से; अङ्कितै:—पृथ्वी पर बने; गवाम्—गायों के; मार्गम्—रास्ता; अन्वगमन्—पीछा किया; सर्वे—सबों ने; नष्ट- आजीव्या:—अपनी जीविका के नष्ट हो जाने की; विचेतस:—चिन्ता में ।.
 
अनुवाद
 
 तब बालकों ने गौवों के खुरों के चिन्हों तथा उनके खुरों तथा दाँतों से तोड़ी गई घास के तिनकों को देखकर उनके रास्ते का पता लगाना शुरू किया। सारे ग्वालबाल अत्यधिक चिन्तित थे क्योंकि वे अपनी जीविका का साधन खो चुके थे।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥