सहसा चारों दिशाओं में महान् दावाग्नि प्रकट हुई जिससे जंगल के समस्त प्राणियों के नष्ट होने का संकट उत्पन्न हो गया। सारथी तुल्य वायु, अग्नि को आगे बढ़ाती जा रही थी और चारों ओर भयानक चिनगारियाँ निकल रही थीं। निस्सन्देह, इस महान् अग्नि ने अपनी ज्वालाओं रूपी जिह्वाओं को समस्त चल और अचर प्राणियों की और लपलपा दिया था।
तात्पर्य
अभी कृष्ण, बलराम तथा ग्वालबाल अपनी गौवें लेकर घर लौटने ही वाले थे कि जो दावाग्नि लगी थी वह काबू के बाहर हो गई और उसने उन सबों को घेर लिया।
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