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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 19: दावानल पान  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  10.19.8 
तमापतन्तं परितो दवाग्निं
गोपाश्च गाव: प्रसमीक्ष्य भीता: ।
ऊचुश्च कृष्णं सबलं प्रपन्ना
यथा हरिं मृत्युभयार्दिता जना: ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
तम्—उस; आपतन्तम्—उन पर आन पड़ी हुई; परित:—चारों ओर; दव-अग्निम्—जंगल की आग को; गोपा:—ग्वालबालों ने; —तथा; गाव:—गौवों ने; प्रसमीक्ष्य—ठीक से देखकर; भीता:—डरे हुए; ऊचु:—सम्बोधन किया; —तथा; कृष्णम्— कृष्ण को; स-बलम्—तथा बलराम को; प्रपन्ना:—शरणागत; यथा—जिस प्रकार; हरिम्—भगवान् को; मृत्यु—मृत्यु के; भय—भय से; अर्दिता:—पीडि़त; जना:—व्यक्ति ।.
 
अनुवाद
 
 जब गौवों तथा ग्वालबालों ने चारों ओर से दावाग्नि को अपने ऊपर आक्रमण करते देखा तो वे बहुत डर गये। अत: वे रक्षा के लिए कृष्ण तथा बलराम के निकट गये जिस तरह मृत्यु भय से विचलित लोग भगवान् की शरण में जाते हैं। उन बालकों ने उन्हें इस प्रकार से सम्बोधित किया।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥