वे मेंढक जो अभी तक मौन पड़े हुए थे, वर्षा ऋतु के बादलों की गर्जना सुनकर अचानक टर्राने लगे मानो शान्त भाव से प्रात:कालीन कृत्य करनेवाले ब्राह्मण विद्यार्थी अपने गुरु द्वारा बुलाए जाने पर अपना पाठ सुनाने लगे हों।
तात्पर्य
श्रील प्रभुपाद ने इसकी टीका इस प्रकार की है : “प्रथम वर्षा के बाद जब बादलों में गर्जना होती है, तो सारे मेंढक टर्राने लगते हैं मानो एकाएक विद्यार्थीगण अपना पाठ पढऩे लगे हों। विद्यार्थी सामान्यत: प्रात:काल जल्दी जग जाते हैं। किन्तु वे स्वेच्छा से नहीं उठते अपितु जब मन्दिर या सांस्कृतिक संस्थान में घंटी बजती है तभी उठते हैं। वे आध्यात्मिक गुरु के आदेश से तुरन्त उठ जाते हैं और प्रात:कालीन नित्यकर्म करने के बाद वेदों का अध्ययन करने या वैदिक मंत्रों का उच्चारण करने बैठ जाते हैं। इसी तरह कलियुग के अंधकार में हर व्यक्ति सोता रहता है किन्तु किसी महान् आचार्य के पुकारते ही वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने के लिए हर व्यक्ति वेदों का अध्ययन करने लगता है।”
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