[भगवान् कृष्ण ने कहा]: तुम सबों ने अपना व्रत रखते हुए नग्न होकर स्नान किया है, जो कि देवताओं के प्रति अपराध है। अत: अपने पाप के निराकरण के लिए तुम सबों को अपने अपने सिर के ऊपर हाथ जोडक़र नमस्कार करना चाहिए। तभी तुम अपने अधोवस्त्र वापस ले सकती हो।
तात्पर्य
कृष्ण गोपियों को पूर्ण समर्पण करते देखना चाहते थे इसलिए उन्होंने आदेश दिया कि वे अपने सिर के ऊपर हाथ जोडक़र नमस्कार करें। दूसरे शब्दों में, गोपियाँ अपने शरीरों को अब ढक नहीं सकती थीं। हमें मूर्खों की तरह यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि भगवान् कृष्ण कोई सामान्य कामान्ध युवक थे, जो गोपियों के नग्न सौन्दर्य का आनन्द लूटना चाहते थे। कृष्ण परब्रह्म हैं और वे वृन्दावन की युवती गोपियों की प्रेम-इच्छा को पूरा करना चाहते थे। इस जगत में ऐसी दशा में हम निश्चित रूप से कामुक हो उठते। किन्तु ईश्वर से अपनी तुलना करना घोर अपराध है और इस अपराध के कारण हम कृष्ण के दिव्य पद को नहीं समझ सकेंगे क्योंकि हम उन्हें अपने ही समान बद्ध मान लेंगे। जो परब्रह्म के आनन्द का भोग करना चाहता है उसके लिए कृष्ण के दिव्य दर्शन से वंचित होना एक बड़ी दुर्घटना होगी।
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